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प्रदेश कांग्रेस में अंदरखाने जारी है रार

दिल्ली की सियासत रोज रंग बदल रही है। सवा डेढ़ महीने पहले कांग्रेस का दामन छोड़ने को तैयार बताए जा रहे पार्टी के छह विधायक पार्टी हाईकमान के दबाव और सूबे की ताजा सियासी परिस्थितियों के मद्देनजर भले एकजुटता दिखा रहे हों, लेकिन उनके नए तेवर प्रदेश कांग्रेस के वर्तमान नेतृत्व के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर सक

By Edited By: Published: Wed, 23 Jul 2014 09:16 AM (IST)Updated: Wed, 23 Jul 2014 09:24 AM (IST)
प्रदेश कांग्रेस में अंदरखाने जारी है रार

नई दिल्ली [राज्य ब्यूरो]। दिल्ली की सियासत रोज रंग बदल रही है। सवा डेढ़ महीने पहले कांग्रेस का दामन छोड़ने को तैयार बताए जा रहे पार्टी के छह विधायक पार्टी हाईकमान के दबाव और सूबे की ताजा सियासी परिस्थितियों के मद्देनजर भले एकजुटता दिखा रहे हों, लेकिन उनके नए तेवर प्रदेश कांग्रेस के वर्तमान नेतृत्व के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकते हैं।

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सीलमपुर से पार्टी विधायक मतीन अहमद और ओखला के विधायक आसिफ मोहम्मद खान ने मंगलवार को पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की और सूबे की पूर्व मुख्यमंत्री एवं फिलहाल केरल की राज्यपाल शीला दीक्षित को दोबारा दिल्ली की कमान सौंपने की मांग की।

मतीन अहमद ने बताया कि उन्होंने पार्टी अध्यक्ष से कहा कि यदि दिल्ली में चुनाव हुए तो कांग्रेस को दीक्षित ही विजय दिला सकती हैं। दिल्ली की जनता का उनसे लगाव कायम है। कांग्रेस अध्यक्ष का फैसला क्या होगा यह तो विधायकों को नहीं मालूम लेकिन इतना जरूर है कि शीला दीक्षित की अगुवाई में चुनाव लड़ने की इच्छा जताकर इन विधायकों ने प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली और विधायक दल के नेता हारून यूसुफ के नेतृत्व पर सवाल जरूर खड़े कर दिए हैं।

आपको बता दें कि इन विधायकों की पहले से भी यही शिकायत रही है कि जब सूबे में कांग्रेस की सरकार चलती रही तो लवली और हारून मंत्री रहे और जब पार्टी हार गई तो संगठन के दोनों महत्वपूर्ण पद भी उन्हें थमा दिए गए। बाकी विधायक भी तीन-तीन, चार-चार बार से लगातार चुनाव जीतते रहे लेकिन उन्हें कोई महत्वपूर्ण पद नहीं दिया गया। कांग्रेस ने लगातार तीन विधानसभा चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की अगुवाई में लड़े और शानदार जीत भी दर्ज की। लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार भी उतनी ही जोरदार हुई।

खुद दीक्षित भारी अंतर से अरविंद केजरीवाल के हाथों पराजित हो गईं। उसके बाद उन्हें केरल का राच्यपाल बना दिया गया। अब फिर से उन्हें दिल्ली में पार्टी का नेतृत्व देने की मांग करने का मतलब यह है कि कांग्रेसी विधायकों ने एक साथ आकर एकजुटता भले दिखाई हो लेकिन अंदरखाने जोरदार लड़ाई हो रही है।

जानकारों की मानें तो पार्टी के चार अन्य विधायक भी सोनिया गांधी से मिल चुके हैं और प्रदेश नेतृत्व को लेकर सवाल उठा चुके हैं। वहीं पार्टी के कुछ अन्य नेताओं का कहना है कि प्रदेश अध्यक्ष लवली ने ऐसे समय में पार्टी को संघर्ष करने के लिए तैयार किया, जब कार्यकर्ता हताश होकर घर बैठ गए थे।

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