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कांग्रेस बिहार में अपने पुराने आधार की तलाश में नये दांव पर गंभीर

बिहार में अपने पुराने परंपरागत वोट बैंक को वापस लाने को कांग्रेस सवर्ण चेहरे को अध्यक्ष बनाने पर मंथन कर रही है

By Kishor JoshiEdited By: Published: Tue, 30 May 2017 05:09 AM (IST)Updated: Tue, 30 May 2017 05:09 AM (IST)
कांग्रेस बिहार में अपने पुराने आधार की तलाश में नये दांव पर गंभीर
कांग्रेस बिहार में अपने पुराने आधार की तलाश में नये दांव पर गंभीर

संजय मिश्र, नई दिल्ली। महागठबंधन की सत्ता की साझेदार होने के बावजूद बिहार में कांग्रेस संगठन की कमजोर जमीनी पैठ से चिंतित पार्टी हाईकमान प्रदेश कांग्रेस का चेहरा बदलेगी। बिहार में पार्टी के नए अध्यक्ष की तलाश में जुटे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी संगठन को जीवंत रखने वाले चेहरे के साथ सूबे के सामाजिक समीकरणों को साधने की रणनीति पर भी मंथन कर रहे हैं। राहुल की सूबे के नेताओं से हुई बातचीत से मिले संकेतों से साफ है कि अपनी राजनीतिक ताकत बढ़ाने के लिए पार्टी संगठन की कमान सर्वण चेहरे को सौंपने पर विचार कर रही है। प्रदेश के मौजूदा सियासी समीकरण में जदयू और राजद की बजाय कांग्रेस भाजपा में गए अपने परंपरागत आधार वोट बैंक को वापस खींचने की रणनीति पर आगे बढ़ने को गंभीर है।

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पार्टी सूत्रों के अनुसार हाईकमान सूबे के नेताओं के इस आकलन से काफी हद तक सहमत है कि कांग्रेस के लिए बिहार में जदयू-राजद की बजाय भाजपा के सामाजिक आधार को तोड़ने की रणनीति पर फोकस करना फायदेमंद रहेगा। पिछले कुछ समय से बिहार के नेता राहुल से प्रदेश संगठन में बदलाव को लेकर मुलाकात करते रहे हैं। इस दौरान ही हाईकमान को यह तर्क दिया गया है कि जदयू और राजद दोनों का सामाजिक आधार ओबीसी है। भाजपा भी सूबे में ओबीसी चेहरे को ही आगे कर अपना सियासी दांव चल रही है। ऐसे में कांग्रेस के पास ब्राह्मण सहित सवर्ण वोटों को अपने पास लाने का मौका है। पार्टी नेताओं ने हाईकमान के यहां यह दावा भी किया है कि भाजपा के अंदर बेचैनी महसूस कर रहे सर्वण कांग्रेस को विकल्प के रुप में देख रहे हैं। इसलिए प्रदेश कांग्रेस की कमान इस बार सवर्ण और विशेषकर ब्राह्मण को देने पर विचार किया जाना चाहिए।

बिहार कांग्रेस के नए अध्यक्ष की दौड़ में शामिल कई नेताओं से पिछले कुछ समय के दौरान राहुल की मुलाकात हो चुकी है। इसमें वरिष्ठ नेता पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री अखिलेश सिंह, बिहार में मंत्री अवधेश सिंह और डा अशोक राम आदि शामिल हैं। जबकि ब्राह्मण चेहरे के रुप में प्रदेश अध्यक्ष की होड़ में किशोर कुमार झा और प्रेमचंद्र मिश्रा दावेदारों में हैं। प्रदेश कांग्रेस नेताओं का मानना है कि सवर्ण चेहरे को कमान देने से दलित और मुस्लिम भी फिर से वापस पार्टी की ओर लौटेंगे।

प्रदेश नेताओं ने हाईकमान से सूबे में अध्यक्ष बदलने का तर्क देते हुए यह भी कहा है कि मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी ने मंत्री बनने के बाद बीते ढाई साल में संगठन के विस्तार का कोई काम नहीं किया है। इसकी वजह से महागठबंधन सरकार में कांग्रेस की धाक कमजोर हुई है। राजद और जदयू ने पार्टी के कई सम्मेलन किए हैं तो भाजपा बूथ स्तर पर काम कर रही है। जबकि प्रदेश कांग्रेस अपने मुख्यालय से आगे नहीं बढ़ी।

बिहार की सरकार में शामिल कांग्रेस के मंत्रियों की भी संगठन और कार्यकर्ताओं को तवज्जो नहीं दिए जाने की आम शिकायत हाईकमान से की गई है। कांग्रेसी मंत्रियों के अपने गृह जिले से बाहर दूसरे इलाकों में पार्टी के विस्तार के लिए नहीं जाने की बातें भी कही गई हैं। राहुल से मुलाकात करने वाले एक नेता ने यह दावा करते हुए कहा कि मंत्रियों की इस भूमिका की भी हाईकमान समीक्षा करेगा।

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