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कांग्रेस से हर कीमत पर दोस्ती को राजी राकांपा

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के तेवरों और महाराष्ट्र के कांग्रेसियों की लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने की जोर पकड़ती मांग से राकांपा असहज तो महसूस कर रही है लेकिन वह कांग्रेस से दोस्ती बरकरार रखना चाहती है। पार्टी का कहना है कि सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता पर काबिज होने से रोकने के लिए राकांपा किसी

By Edited By: Published: Thu, 26 Sep 2013 09:34 PM (IST)Updated: Thu, 26 Sep 2013 09:37 PM (IST)
कांग्रेस से हर कीमत पर दोस्ती को राजी राकांपा

मुंबई [जागरण संवाददाता]। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के तेवरों और महाराष्ट्र के कांग्रेसियों की लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने की जोर पकड़ती मांग से राकांपा असहज तो महसूस कर रही है लेकिन वह कांग्रेस से दोस्ती बरकरार रखना चाहती है। पार्टी का कहना है कि सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता पर काबिज होने से रोकने के लिए राकांपा किसी भी हाल में कांग्रेस से गठबंधन को तैयार है।

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राकांपा के प्रदेश प्रवक्ता नवाब मलिक ने गुरुवार को पत्रकारों से कहा,1996 से देश में जो हालात बने हैं, उनमें कोई भी दल अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं कर सकता है। इसलिए दोनों दलों के सामने समझौते के अलावा कोई विकल्प नहीं है। राकांपा किसी भी हाल में कांग्रेस से दोस्ती को तैयार है। यह पूछने पर कि क्या कांग्रेस की मर्जी के अनुसार राकांपा 19 सीटें लेकर समझौता करेगी? मलिक ने कहा, सीटें हमारे लिए मायने नहीं रखतीं। सांप्रदायिक शक्तियों को रोकने के लिए राज्य में कांग्रेस-राकांपा गठबंधन जरूरी है।

महाराष्ट्र के पार्टी कार्यकर्ता बार बार पार्टी नेतृत्व से राकांपा से तौबा करने और आगामी लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने की मांग कर रहे हैं। राहुल से बंद कमरे में हुई मुलाकात में पुणे, नागपुर के ज्यादातर कांग्रेसियों ने लोस चुनाव अकेले लड़ने की इच्छा जताई। राहुल ने भी कार्यकर्ताओं का मन भांपते हुए जिला स्तर पर पार्टी को मजबूत करने की सलाह दी और कहा,यदि कांग्रेस अपने दम पर 272 सीटें जीतने में कामयाब होती है, तो उसे किसी और दल को साथ लेकर सरकार बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। ज्ञात हो कि राहुल को पूर्व के मुंबई दौरे में भी राकांपा से तौबा करने की सलाह दी गई थी। कार्यकर्ताओं की ओर से बार बार यह मांग इस तर्क के साथ उठाई जाती है कि राकांपा से दोस्ती से संगठन को नुकसान हो रहा है। राकांपा के प्रभाव वाले क्षेत्रों में कांग्रेस निरंतर कमजोर हो रही है। पार्टी का प्रदेश नेतृत्व भी राकांपा संग सीटों के बंटवारे को लेकर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सका है, जबकि शिवसेना-भाजपा में यह समझौता हो चुका है।

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