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मोदी के विरोध से कन्नी काट रहे कांग्रेसी सीएम

मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली सरकार गंवाने के बाद कांग्रेस अब उनकी नीतियों से भी तौबा करने के मूड में है। संप्रग के दस साल के शासन में आर्थिक मुद्दों पर पीपीपी मॉडल व निजीकरण के पक्ष में रही कांग्रेस अब इसके विरोध में लामबंदी की तैयारी कर रही है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 11 Jan 2015 08:19 PM (IST)Updated: Sun, 11 Jan 2015 11:30 PM (IST)
मोदी के विरोध से कन्नी काट रहे कांग्रेसी सीएम

नई दिल्ली। मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली सरकार गंवाने के बाद कांग्रेस अब उनकी नीतियों से भी तौबा करने के मूड में है। संप्रग के दस साल के शासन में आर्थिक मुद्दों पर पीपीपी मॉडलनिजीकरण के पक्ष में रही कांग्रेस अब इसके विरोध में लामबंदी की तैयारी कर रही है। हालांकि, इस मामले पर उसे अपनी ही सरकारों से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है। पार्टी शासित राज्यों ने इस मामले पर पार्टी की बजाय केंद्र सरकार के साथ कदमताल करना उचित समझा है। इस मुद्दे को लेकर जमीनी संघर्ष में उतरने की तैयारी कर रहे पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी के कार्यक्रमों से भी पार्टी शासित राज्य कन्नी काट रहे हैं।

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भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर अपने ही राज्यों से झटका

भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर मोदी सरकार से मोर्चेबंदी की तैयारी कर रही कांग्रेस को राज्यों से तगड़ा झटका लगा है। कर्नाटक, केरल, असम व हिमाचल सहित पार्टी शासित ज्यादातर राज्य इस मामले पर चलाए जाने वाले राहुल गांधी के अभियान से दूरी रखना चाह रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक ये राज्य अपने यहां राहुल का कार्यक्रम नहीं चाहते। जबकि, कांग्रेस इस लड़ाई को उद्योगपति बनाम आम आदमी बनाने में जुट गई है। कांग्रेस शासित पहाड़ी राज्यों में से एक के मुख्यमंत्री का कहना है कि राज्य पहले ही अर्थिक समस्यायों से घिरा हुआ है। इस प्रकार के आंदोलन से निवेश प्रभावित होता है। राज्यों का भविष्य केंद्र से जुड़कर ही है।

गुजरात में आए निवेश पर श्वेत पत्र की मांग

कांग्रेस वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन से लेकर सरकार की आर्थिक नीतियों तक के खिलाफ मुखर होना चाह रही है। पार्टी मनरेगा के मुद्दे पर पहले ही आक्रामक है। अब गुजरात में आने वाले निवेश पर भी सवाल उठा रही है। पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह ने तो गुजरात में इन सम्मेलनों के माध्यम से आए निवेश को लेकर श्वेतपत्र की मंाग की है। हालांकि, पार्टी की इस मुहिम को पलीता भी कांग्रेसी राज्यों से ही लगता दिख रहा है।

संप्रग दो की नीतियों का पहले भी रहा है विरोध

वैसे कांग्रेस में पहले भी विनिवेश व उद्योगों को लेकर संप्रग सरकार की नीतियों का विरोध रहा है। महासचिव जनार्दन द्विवेदी तो कांग्रेस की वर्तमान दशा के लिए संप्रग दो को जिम्मेदार ठहराते हैं। पीपीपी मॉडल के मुखर विरोधी द्विवेदी सवाल उठाते हैं कि इन निजी कंपनियों को लीज पर दी जाने वाली जमीन कभी वापस नहीं ली जा पाएगी। ऐसे में यह एकतरफा रास्ता न सिर्फ आम जनता को बल्कि सरकारों को भी भविष्य में संसाधन विहीन कर देगा। द्विवेदी ने कहा कि भूमि अधिग्रहण विधेयक में शिथिल किए गए नियम किसान विरोधी हैं। इसका नुकसान पहले किसान व बाद में देश को भुगतना होगा।


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