नीतीश और मिशन 2019: विपक्ष के लिए जरूरी है बिहार का महागठबंधन
एक मजबूत विपक्ष के लिए बिहार महागठबंधन का बने रहना बहुत जरूरी है। एेसे में लालू का साथ नीतीश के लिए जरूरी है तो वहीं नीतीश को अपनी छवि भी प्यारी है।
पटना [काजल]। बिहार में महागठबंधन में चल रहे सियासी संकट से विपक्ष के कमजोर होने का असर दूरगामी होगा। एक तरफ राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद अपने डिप्टी सीएम बेटे तेजस्वी के इस्तीफा के मुद्दे पर झुकने को तैयार नहीं हैं तो वहीं सीएम नीतीश अपनी स्वच्छ छवि की यूएसपी से समझौता नहीं कर सकते।
नीतीश कुमार जानते हैं कि अगर वे अपनी छवि को लेकर कोई समझौता करते हैं तो वे अगले लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी के निशाने पर रहेंगे। साथ ही, नीतीश में दिखता विपक्ष का वह नेता भी नहीं रहेगा, जो मोदी को 2019 में चुनौती दे सकता है। ऐसे में विपक्ष के लिए यह जरूरी है कि तेजस्वी मुद्दे पर कोई सहमति बने और बिहार का महागठबंधन जिंदा व मजबूत बना रहे।
एेसे में सोनिया गांधी की पहल और दोनों दल के नेताओं के बीच तल्ख बयानबाजी को शांत कर कोई सही रास्ता निकालने की कवायद इस ओर इशारा कर रही है कि बिहार में महागठबंधन बिखरा तो विपक्ष के पास 2019 का चुनाव जीतना आसान नहीं होगा।
बिहार की महागठबंधन सरकार जो दो विपरीत सोच और एक दूसरे के धुर विरोधी रहे नेताओं के बीच बना एेसा गठबंधन है जिसने विधानसभा चुनाव में एनडीए को करारी शिकस्त दी, लेकिन फिलहाल के कुछ महीनों में अपनी-अपनी विचारधारा को लेकर एक-दूसरे से जुबानी जंग की वजह से दोनों के बीच दूरी गहराती जा रही है। महागठबंधन की शर्तों को अनदेखा कर ये दोनों दल महागठबंधन के लिए हमेशा ही संशय की स्थिति बना रहे हैं।
पिछले कुछ दिनों से चल रहे सियासी तूफान ने एक बार फिर महागठबंधन की नींव हिला दी है। राजद और जदयू के बीच चल रही तकरार इतनी बढ़ गई है कि उनके बीच सुलह कराने के लिए कांग्रेस अ्ध्यक्ष सोनिया गांधी को पहल करनी पड़ी।
लालू यादव पर रेलमंत्री रहते हुए रेल होटल घोटाले का आरोप लगा और इस मामले में सीबीआइ ने उनकी पत्नी राबड़ी देवी और छोटे बेटे तेजस्वी यादव, जो बिहार के उपमुख्यमंत्री हैं, पर एफआइआर दर्ज कर दिया, जिसके बाद एक ओर बीजेपी नीतीश से उनका इस्तीफा लेने का दबाव बनाने लगी तो नीतीश ने भी तेजस्वी से कहा कि वो जनता के बीच जाकर सफाई दें।
राजद प्रमुख लालू यादव और उनके परिवार पर कई तरह की बेनामी संपत्तियों के लिए गंभीर आरोप सामने आए हैं। लेकिन तेजस्वी पर लगे आरोप के बाद प्रमुख विपक्षी पार्टी बीजेपी का कहना है कि नीतीश भ्रष्टाचार को कभी बर्दाश्त नहीं करते, इससे पहले मंत्रियों और विधायकों पर आरोप लगने के बाद उनका इस्तीफा ले लिया तो तेजस्वी से इस्तीफा क्यों नहीं लेते।
वही बीजेपी की हां में हां मिलाते हुए जदयू का भी यही कहना है कि तेजस्वी अपने ऊपर लगे आरोपों को लेकर जनता के बीच जाएं और अपनी सफाई दें। एेसे में नीतीश कुमार के सामने यह दुविधा है कि वो अगर तेजस्वी पर कार्रवाई नहीं करते तो उनकी छवि खराब होती है और यदि कार्रवाई करते हैं तो महागठबंधन पर असर पड़ता है।
अभी के समय में अगर महागठबंधन पर असर पड़ता है तो विपक्ष की धार कुंद हो जाएगी और एक कमजोर विपक्ष होने का फायदा आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भाजपा को मिल जाएगा। सभी जानते हैं कि नीतीश कुमार की छवि मायावती, मुलायम सिंह यादव या लालू जैसे अन्य क्षेत्रीय नेताओं से अलग हैं।
इन नेताओं ने जहां पिछड़ी जाति, दलित एकजुटता और धर्मनिरपेक्षता की वकालत कर अपनी छवि बनाई है तो वहीं नीतीश कुमार इन सबसे अलग अपनी साफ छवि, भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस नीति और सुशासन बाबू के रूप में जाने जाते हैं और बिहार की जनता उन्हें इसी छवि के कारण बार-बार अपना नेता चुनती रही है।
यही कारण है कि, 2014 में, बिहार के लोगों ने लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को वोट दिया, लेकिन वहीं एक साल बाद विधानसभा के चुनाव में नीतीश को स्वीकार किया और राजद-कांग्रेस के साथ उनके गठबंधन को भी अपनी सहमति दे दी।
लेकिन सच्चाई यह भी है कि नीतीश कुमार अकेले अपने दम पर चुनाव नहीं लड़ सकते, वो गठबंधन के साथ ही चुनाव जीत सकते हैं, वो गठबंधन बीजेपी के साथ हो या राजद-कांग्रेस के साथ। अब अगर नीतीश को सत्ता में बने रहना है तो उन्हें मजबूत विपक्ष के लिए लालू से समझौता करना होगा या बीजेपी के साथ जाना होगा।
नीतीश और लालू मिलकर ही विपक्ष को मजबूती दे सकते हैं और 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार को चुनौती दे सकते हैं और फिर बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव में फिर से जीत हासिल कर सकते हैं। एेसे में नीतीश विपक्ष का चेहरा बन सकते हैं।
हालांकि अगर लालू का साथ छोड़कर नीतीश बीजेपी का दामन पकड़ते हैं तो बीजेपी बाहर से समर्थन देकर नीतीश की सरकार को गिरने से बचा लेगी और नीतीश मुख्य्मंत्री बने रहेंगे, लेकिन नीतीश को भी पता है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार चलाना उतना आसान नहीं होगा जितना आसान वाजपेयी और आडवाणी के साथ चला लिया था और इसके साथ ही यह भी जरूरी नहीं कि 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी सत्ता नीतीश के हाथों में ही सौंपे?
एेसे में लालू और नीतीश का एक-दूसरे के साथ बने रहना मजबूरी है। तेजस्वी यादव को इस्तीफा देकर महागठबंधन को चलते रहते देना चाहिए, क्योंकि तेजस्वी ने अभी अपनी राजनीतिक पारी की शुरूआत ही की है और उन्हें अभी बहुत आगे तक जाना है। लालू अपने उसूलों की लड़ाई लड़ते रहे हैं और दलित और धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ जो आवाज उठाते रहे हैं वो अगर विपक्ष कमजोर पड़ा तो खत्म हो जाएगा।
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एेेसे में यदि अभी के इस वक्त में बिहार में महागठबंधन टूटता है तो विपक्ष को 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत क्या कहीं से भी एनडीए को चुनौती देने का एक मजबूत आधार भी नहीं बचेगा। इसीलिए विपक्षी पार्टियों की एक ही ख्वाहिश होगी कि बिहार में महागठबंधन की सरकार चलती रहे और गठबंधन बना रहे ताकि भाजपा से कड़ा मुकाबला किया जा सके।
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