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एक बार में तीन तलाक की प्रथा खत्म, सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए प्रचलित एक बार में तीन तलाक को असंवैधानिक करार देकर निरस्त कर दिया।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 22 Aug 2017 05:55 AM (IST)Updated: Wed, 23 Aug 2017 05:18 AM (IST)
एक बार में तीन तलाक की प्रथा खत्म, सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
एक बार में तीन तलाक की प्रथा खत्म, सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मुसलमानों में 1400 वर्षों से प्रचलित एक बार में तीन तलाक यानी तलाक-ए- बिद्दत के चलन को असंवैधानिक करार देकर निरस्त कर दिया। कोर्ट ने तीन-दो के बहुमत से फैसला देते हुए कहा कि एक साथ तीन तलाक संविधान में दिए गए बराबरी के अधिकार का हनन है। तलाक-ए-बिद्दत इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है, इसलिए इसे संविधान में दी गई धार्मिक आजादी (अनुच्छेद 25) में संरक्षण नहीं मिल सकता। इसके साथ ही कोर्ट ने शरीयत कानून 1937 की धारा-2 में एक बार में तीन तलाक को दी गई मान्यता निरस्त कर दी।
इस दूरगामी प्रभाव वाले फैसले का सीधा असर यह होगा कि अब भारत में कोई भी शौहर अपनी बीवी को मनमाने ढंग से तलाक-तलाक-तलाक कह कर नहीं छोड़ पाएगा। मुस्लिम महिलाओं के मन में तलाक को लेकर बैठा भय खत्म होगा। लेकिन, तीन तलाक का दूसरा स्वरूप लागू रहेगा। इसके तहत एक-एक महीने के अंतराल पर तीन महीने में तलाक दिया जा सकता है।
न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन और न्यायमूर्ति यूयू ललित ने बहुमत से फैसला सुनाते हुए एक बार में तीन तलाक को असंवैधानिक और मनमाना ठहराते हुए निरस्त कर दिया। जबकि प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर व न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर ने अल्पमत से फैसला देते हुए कहा कि तलाक-ए-बिद्दत मुस्लिम पर्सनल लॉ का हिस्सा है और इसे संविधान में मिली धार्मिक आजादी (अनुच्छेद 25) में संरक्षण मिलेगा, कोर्ट इसे निरस्त नहीं कर सकता। फैसला देने वाले विभिन्न न्यायाधीशों के बीच मतभिन्नता को देखते हुए बाद में प्रधान न्यायाधीश ने तीन न्यायाधीशों के बहुमत के फैसले को लागू करते हुए तलाक-ए-बिद्दत के प्रचलन को खारिज घोषित किया। जस्टिस जोसेफ ने कहा कि तीन तलाक इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है, इसलिए वह प्रधान न्यायाधीश से सहमत नहीं हैं।

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- सुप्रीम कोर्ट ने 3-2 के बहुमत से 1400 वर्ष पुराने चलन को असंवैधानिक ठहराया, लागू रहेगा दूसरा तरीका

ऐतिहासिक फैसला

- प्रधान न्यायाधीश ने इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ का हिस्सा बताया
- जस्टिस जोसेफ ने कहा- यह इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है

कोर्ट के सामने ऐसे आया मामला
पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह फैसला छह याचिकाओं का निपटारा करते हुए सुनाया है। मामले की शुरुआत सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वयं संज्ञान लेने से हुई थी और बाद में तलाक पीडि़त शायरा बानो, आफरीन रहमान, गुलशन परवीन, इशरत जहां और आतिया साबरी ने भी याचिका दाखिल कर एक बार में तीन तलाक को खत्म करने की गुजारिश की। हालांकि शुरुआत में तीन तलाक के साथ मुसलमानों में प्रचलित निकाह, हलाला (तलाक के बाद दोबारा उसी पति से शादी करने के लिए पत्नी को किसी दूसरे पुरुष से शादी करनी पड़ती है) और बहु विवाह (मुस्लिम पुरुष एक समय में चार बीवियां रख सकता सकता है) का मुद्दा भी था। लेकिन, कोर्ट ने पहले ही साफ कर दिया था कि फिलहाल सिर्फ एक बार में तीन तलाक पर सुनवाई होगी और निकाह, हलाला व बहुविवाह पर बाद में विचार किया जाएगा।

तीन जजों ने कहा- यह बराबरी के हक का हनन

बहुमत से दिए गए तीन न्यायाधीशों के फैसले में जस्टिस कुरियन जोसेफ ने अलग से फैसला लिखा है, जबकि जस्टिस नरीमन और जस्टिस यूयू ललित की ओर से एक साथ फैसला दिया गया है, जिसे जस्टिस नरीमन ने लिखा है। फैसले में जस्टिस नरीमन और ललित ने तलाक-ए-बिद्दत को असंवैधानिक ठहराते हुए कहा कि एक साथ तीन तलाक तत्काल और खत्म न किए जाने वाला तलाक होता है। इसमें दोनों परिवार के दो मध्यस्थों द्वारा पति-पत्नी के बीच सुलह कराने की कोई गुंजाइश नहीं होती। तलाक का यह तरीका गलत और मनमाना है। इसमें मुस्लिम पति स्वेच्छाचारी और मनमाने ढंग से कभी भी शादी के बंधन को तोड़ सकता है। इसमें समझौते के जरिये शादी को बचाने की कोशिश भी नहीं हो सकती। इसलिए तलाक का यह तरीका संविधान के अनुच्छेद-14 में मिले बराबरी के हक का उल्लंघन करता है। पीठ ने कहा कि एक साथ तीन तलाक को मान्यता देने वाला शरीयत कानून 1937 संविधान के अनुच्छेद 13(1) के तहत लागू कानून माना जाएगा। कोर्ट ने शरीयत कानून की धारा-2 में तीन तलाक को दी गई मान्यता को शून्य घोषित करते हुए रद कर दिया।

जस्टिस कुरियन, जस्टिस नरीमन और जस्टिस ललित

दो जजों ने कहा-सरकार के कानून बनाने तक लागू रहे रोक

हालांकि अल्पमत से फैसला देने वाले दोनों न्यायाधीशों यानी प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर और न्यायाधीश एस. अब्दुल नजीर ने भी तलाक-ए-बिद्दत के प्रचलन को लिंग आधारित भेदभाव माना है और सुप्रीम कोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 142 में मिली विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए सरकार को इस बारे में उचित कानून बनाने पर विचार करने को कहा है। साथ ही उम्मीद जताई कि कानून बनाते समय दुनिया के अन्य मुस्लिम देशों में बने कानूनों और मुस्लिम पर्सनल लॉ और शरीयत की प्रगति को भी ध्यान में रखा जाएगा। दोनों न्यायाधीशों ने राजनीतिक दलों से कहा है कि कानून पर विचार होते समय वे अपने राजनीतिक फायदों को एक किनारे रख कर कानून की दिशा में जरूरी उपाय करें। उन्होंने कानून बनने तक एक बार में तीन तलाक देने पर रोक लगाई है। उन्होंने कहा कि जब तक इस बारे में कानून बनता है, तब तक शौहर अपनी बीवियों को एक साथ तीन तलाक नहीं कहेंगे।

जस्टिस अब्दुल नजीर और सीजेआइ खेहर

'तीन तलाक पर माननीय सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक है। यह मुस्लिम महिलाओं को समानता प्रदान करता है और महिला सशक्तीकरण की दिशा में उठाया गया शक्तिशाली कदम है' - नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री।

क्या कहा कोर्ट ने

  • एक साथ तीन तलाक असंवैधानिक। सुप्रीम कोर्ट ने तीन - दो के बहुमत से सुनाया फ़ैसला। 
  • तीन तलाक पर 6 महीने की रोक।
  • मुख्य न्यायधीश जेएस खेहर और जस्टिस अब्दुल नज़ीर ने कहा ये 1400 साल पुरानी प्रथा और मुस्लिम धर्म का अभिन्न हिस्सा। कोर्ट नहीं कर सकता रद।
  • जस्टिस कुरियन जोसेफ़, जस्टिस आरएएफ़ नारिमन और जस्टिस यूयू ललित ने एक बार मे तीन तलाक को असंवैधानिक ठहराया और इसे खारिज कर दिया।
  • तीनों जजों ने 3 तलाक को संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करार दिया। जजों ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार देता है।
  • जस्टिस नजीर और चीफ जस्टिस खेहर ने नहीं माना था असंवैधानिक। चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस नजीर ने अल्पमत में दिए फैसले में कहा कि तीन तलाक धार्मिक प्रैक्टिस है, इसलिए कोर्ट इसमें दखल नहीं देगा। दोनों ने कहा कि तीन तलाक पर छह महीने का स्टे लगाया जाना चाहिए, इस बीच में सरकार कानून बना ले और अगर छह महीने में कानून नहीं बनता है तो स्टे जारी रहेगा। हालांकि, दोनों जजों ने माना कि यह पाप है।
  • अगर 6 महीने के अंदर तीन तलाक पर कानून नहीं लाया जाता है तो तीन तलाक पर रोक जारी रहेगी।

वहीं कोर्ट के निर्णय पर सरकार की तरफ से प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि यह मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में अच्छा फैसला है।

उत्तराखंड के काशीपुर की शायरा बानो ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर तीन तलाक और निकाह हलाला के चलन की संवैधानिकता को चुनौती दी थी। 


मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर की पीठ ने एक बार में तीन तलाक की वैधानिकता पर बहस सुनी।

- पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुनाया फैसला
- सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था

इस पर सुनवाई तो कोर्ट ने स्वयं संज्ञान लेकर शुरू की थी, लेकिन बाद में छह अन्य याचिकाएं भी दाखिल हुईं जिसमें से पांच में तीन तलाक को रद करने की मांग है। मामले में तीन तलाक का विरोध कर रहे महिला संगठनों और पीड़िताओं के अलावा इस पर सुनवाई का विरोध कर रहे मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत ए उलेमा ए हिंद की ओर से दलीलें रखी गईं। केंद्र सरकार ने भी इसे महिलाओं के साथ भेदभाव बताते हुए रद करने की मांग की है।
सुनवाई के दौरान पीठ ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से पूछा था कि क्या शादी के वक्त ही मॉडल निकाहनामे में महिला को तीन तलाक न स्वीकारने का विकल्प दिया जा सकता है। बोर्ड ने कोर्ट को बताया था कि निकाह के समय न सिर्फ लड़की को तीन तलाक को न कहने के विकल्प की जानकारी दी जाएगी, बल्कि मॉडल निकाहनामा में इसे एक विकल्प के तौर पर भी शामिल किया जाएगा। कोर्ट के कहने पर बोर्ड ने इस संबंध में हलफनामा भी दाखिल किया था।
याचिकाकर्ताओं की दलीलें
1-तीन तलाक महिलाओं के साथ भेदभाव है। इसे खत्म किया जाए।
2-महिलाओं को तलाक लेने के लिए कोर्ट जाना पड़ता है जबकि पुरुषों को मनमाना हक दिया गया है।
3-कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है।
4-यह गैरकानूनी और असंवैधानिक है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत की दलीलें
1-तीन तलाक अवांछित है, लेकिन वैध।
2-यह पर्सनल लॉ का हिस्सा है। कोर्ट इसमें दखल नहीं दे सकता।
3-1400 साल से चल रही प्रथा है। यह आस्था का विषय है, संवैधानिक नैतिकता और बराबरी का सिद्धांत इस पर लागू नहीं होगा।
4-पर्सनल लॉ में इसे मान्यता दी गई है। तलाक के बाद उस पत्नी के साथ रहना पाप है। धर्मनिरपेक्ष अदालत इस पाप के लिए मजबूर नहीं कर सकती।
5-पर्सनल लॉ को मौलिक अधिकारों की कसौटी पर नहीं परखा जा सकता।

केंद्र सरकार की दलीलें
1-तीन तलाक महिलाओं को संविधान में मिले बराबरी और गरिमा से जीवन जीने के हक का हनन है।
2-यह धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है, इसलिए इसे धार्मिक आजादी के मौलिक अधिकार में संरक्षण नहीं दिया जा सकता।
3-पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित 22 मुस्लिम देश इसे खत्म कर चुके हैं।
4-धार्मिक आजादी का अधिकार बराबरी और सम्मान से जीवन जीने के अधिकार के अधीन है।
5-सुप्रीम कोर्ट मौलिक अधिकारों का संरक्षक है। कोर्ट को विशाखा की तरह फैसला देकर इसे खत्म करना चाहिए।
6-अगर कोर्ट ने हर तरह का तलाक खत्म कर दिया तो सरकार नया कानून लाएगी।

कोर्ट की टिप्पणियां
1-जो चीज ईश्वर की नजर में पाप है वह इंसान द्वारा बनाए कानून में वैध कैसे हो सकती है।
2-क्या तीन तलाक इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है।
3-क्या निकाहनामे में महिला को तीन तलाक को न कहने का हक दिया जा सकता है।
4-अगर हर तरह का तलाक खत्म कर दिया जाएगा तो पुरुषों के पास क्या विकल्प होगा।

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