कारोबार की राह में पाक लगाता है अड़चनें
भारत ने पाकिस्तान पर आरोप लगाया है कि डब्लूटीओ के नीतियों के खिलाफ जा कर भारत के साथ द्विपक्षीय कारोबार की राह में अड़चन पैदा कर रहा है।
नई दिल्ली। चीन की मदद से गुलाम कश्मीर के बड़े भू-भाग में बनाने जाने वाले चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरीडोर (सीपीईसी) में विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) की मदद लेने की पाकिस्तान की तैयारियों का भारत ने कड़ा विरोध किया है।
भारत ने पाकिस्तान पर आरोप लगाया है कि डब्लूटीओ के नीतियों के खिलाफ जा कर भारत के साथ द्विपक्षीय कारोबार की राह में अड़चन पैदा कर रहा है। भारत ने पाकिस्तान की तरफ से प्रमुख वरीयता प्राप्त राष्ट्र (एमएफएन) का दर्जा नहीं मिलने का भी मुद्दा उठाया है। इस आधार पर भारत का मानना है कि पाकिस्तान को डब्लूटीओ की मदद लेने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने बताया कि पाकिस्तान की तरफ से दक्षिण एशिया में कई गैर व्यापारिक बाधाएं (एनटीबी) खड़ी की जाती हैं। जबकि पाकिस्तान के लिए कोई अड़चन नहीं खड़ी की गई है बल्कि स्वयं पाक इस तरह के कदम उठाते हैं।
वाघा सीमा से पाकिस्तान भारत से सभी वस्तुओं के आयात की इजाजत नहीं देता। असलियत में भारत वाघा सीमा के जरिये सिर्फ 138 वस्तुओं का ही निर्यात कर सकता है। इसका नतीजा यह है कि भारत से हजारों वस्तुएं कराची पोर्ट होकर ही निर्यात किये जा सकते हैं। इससे इनकी लागत बढ़ती है जो पाकिस्तान की जनता पर भी भारी पड़ती है।
यही नहीं भारत ने बीस वर्ष पहले पाकिस्तान को एमएफएन का दर्जा दिया था लेकिन अभी तक पाकिस्तान की तरफ से भारत को यह दर्जा नहीं दिया गया। सनद रहे कि वर्ष 2012 में पाकिस्तान सरकार ने भारत को एमएफएन दर्जा देने पर एक समिति गठित की थी। इस समिति ने सकारात्मक सुझाव दिए थे।
ऐसा बताया गया था कि कुछ ही दिनों में फैसला हो जाएगा लेकिन कुछ नहीं हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिसंबर, 2015 में पाकिस्तान जाने के बाद समग्र्र वार्ता की तैयारियां जब शुरू हुई थी, तब यह माना गया था कि द्विपक्षीय कारोबार के बीच अड़चनों को समाप्त करने पर भी विचार विमर्श होगा। लेकिन पठानकोट हमले के बाद समग्र्र वार्ता पटरी से उतर गई।
सनद रहे कि हाल ही में पाकिस्तान ने डब्लूटीओ से सीपीईसी के निर्माण में मदद मांगी है ताकि वह अपने इलाके के छोटे व मझोले इकाइयों को बढ़ावा दे सके। भारत का कहना है कि पाक सार्क का सदस्य देश है लेकिन वह सार्क देशों के बीच संचार व नेटवर्क बनाने के लिए जो कोशिशें हो रही है, उसमें मदद करता नहीं है।
जबकि सीपीईसी को बढ़ावा दे रहा है जिसका एक अहम हिस्सा गुलाम कश्मीर से जाएगा, जिसे भारत अपना हिस्सा मानता है।