बिन भारत चीन का 'OBOR' का सपना नहीं हो सकेगा साकार, जानें क्यों
वन बेल्ट वन रोड की नीति के जरिए चीन अब भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है। लेकिन जानकार कहते हैं भारत के बिना ओबीओआर का कोई महत्व नहीं है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । क्या चीन और भारत एक दूसरे के दोस्त हो सकते हैं। क्या चीन 1962 की दगाबाजी को एक बार फिर नहीं दोहराएगा। क्या पाकिस्तान की नापाक सोच में चीन सहभागी नहीं बनेगा, ये ऐसे सवाल हैं जिसका जवाब न केवल भारतीय रणनीतिकार तलाशते हैं बल्कि भारत के आम लोग भी सोचते हैं। वन बेल्ट, वन रोड के जरिए चीन अपनी बादशाहत कायम करना चाहता है। दक्षिण एशिया से लेकर दक्षिण पूर्व एशिया में वो अपना दबदबा कायम करना चाहता है। चीन ने भारत को इस समिट में शामिल होने का न्यौता भेजा था। लेकिन भारत ने अपने रुख को साफ करते हुए कहा कि चीन- पाक आर्थिक गलियारे पर चीन का निवेश भारतीय संप्रभुता के खिलाफ है।
'वन बेल्ट, वन रोड', नापाक मकसद
चीन के रणनीतिकार मानते हैं कि 'वन बेल्ट, वन रोड' परियोजना के जरिए वो दुनिया पर राज कर सकेगा। लेकिन इसका दूसरा पक्ष और कुढ बयां करता है। भारत इकलौता ऐसा देश नहीं है जिसे चीन के इरादों पर शक है। जिन 65 देशों को इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बनाने की बात हो रही है उनमें सिर्फ 25 देश चीन की इस योजना में दिलचस्पी ले रहे हैं। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के विशेष निमंत्रण को 65 में से 44 देशों ने तवज्जो नहीं दी है इन 44 देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने भी भारत की ही तरह वन बेल्ट वन रोड फोरम समिट से व्यक्तिगत तौर से किनारा कर लिया है। चीन की कूटनीतिक कोशिशों के बावजूद इन देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने खुद शिरकत करने की बजाय अपने राजनयिकों को ही सम्मेलन में भेजना बेहतर समझा।
बिना भारत अधूरा रहेगा चीन का सपना
वन बेल्ट वन रोड परियोजना में नेपाल, श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देश शामिल हैं। लेकिन भारत को शामिल किए बगैर चीन के लिए इस परियोजना को अंजाम तक पहुंचाना आसान नहीं होगा। भारत का मानना है कि चीन की वन बेल्ट वन रोड परियोजना का बड़ा हिस्सा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) से गुजरता है। चीन ने इस गलियारे के लिए भारत से इजाजत नहीं ली, जो उसकी संप्रभुता का उल्लंघन करता है। इसके अलावा भारत को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के नाम पर भी आपत्ति है। बताया जाता है कि भारत के एतराज के बाद चीन इसका नाम बदलने को राजी हो गया था, लेकिन बाद में मुकर गया। चीन को भारत के सहयोग की दरकार इसलिए भी है क्योंकि अमेरिका समेत कई दिग्गज देश चीनी मंसूबों को शक की नजर से देखते हैं।
भारत को घेरने की चीनी चाल
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने साल 2013 में वन बेल्ट वन रोड परियोजना के आइडिया को दुनिया के सामने रखने के पहले से ही भारत को घेरने की रणनीति बना ली थी। लेकिन चीन अब तक पूरी तरह कामयाब नहीं हो पाए है। भारत के पड़ोसी देश नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान में चीन की ओर से किए जा रहे निवेश इसी रणनीति का हिस्सा हैं। चीनी रणनीतिकारों का मानना है कि इस कूटनीति के सहारे भारत को घेरने में कामयाब हो जाएगा और अपनी शर्तों पर वन बेल्ट वन रोड परियोजना में भारत को शामिल होने के लिए राजी कर लेगा।लेकिन भारत की कुटनीतिक वार का कोई समाधान चीन के पास फिलहाल नहीं दिखाई दे रहा है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगे चीन की एक नहीं चल पा रही है।
130 देशों के शामिल होने का दावा
चीन का दावा है कि इस समिट में 130 देशों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं। लेकिन सवाल ये है कि जब यह परियोजना 65 देशों को जोड़ेगी, तो 130 देशों को बुलाने की क्या जरूरत थी। चीन इस समिट के जरिए अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान खींचने की पूरी कोशिश कर रहा है। इसके जरिए वह भारत समेत दूसरे देशों पर दबाव बनाना चाहता है। शी जिनपिंग ने वन बेल्ट वन रोड परियोजना समिट के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि यह परियोजना वैश्विक शांति और समृद्धि का प्रतीक बनेगी। जबकि हकीकत यह है कि चीन की ये बातें कई देशों के गले नहीं उतर रही हैं। दक्षिण चीन सागर, तिब्बत और अरुणाचल के मसले चीनी रुख राष्ट्रपति जिनपिंग के दावों से मेल नहीं खाता है।
चीन चाहता है दबदबा रहे कायम
चीन का तर्क है कि 'वन बेल्ट, वन रोड' परियोजना से दुनिया के देशों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ेगा और वैश्विक मंदी के असर से निपटने में मदद मिलेगी। लेकिन भारत और अमेरिका चीन की इस सोच से इत्तेफाक नहीं रखते हैं। चीन के विदेशी निवेश पर नजर डालने पर एक बात बड़ी साफ है कि कई देश उसके कर्ज में बुरी तरह फंसे हुए हैं। चीन ने खुद को मंदी से उबारने के न्यू सिल्क रोड का सहारा लिया है। वन बेल्ट, वन रोड के जरिए वो 65 देशों में सीधे निवेश कर सकेगा यानी इन देशों की अर्थव्यवस्था पर चीन का सीधा दखल होगा।
क्या है सिल्क रूट का इतिहास
असल में सिल्क रोड या सिल्क रूट वह पुराना मार्ग है जो सदियों पहले व्यापार के लिए इस्तेमाल किया जाता था। यह रास्ता सदियों तक व्यापार का मुख्य मार्ग रहा और इसी रास्ते के जरिए तमाम संस्कृतियां भी एक-दूसरे के संपर्क में आयीं। इस रूट के जरिए पूर्व में कोरिया और जापान का संपर्क भूमध्य सागर के दूसरी तरफ के देशों से हुआ।
हालांकि आधुनिक युग में सिल्क रूट का अभिप्राय चीन में हान वंश के राज के समय की सड़क से है, जिसके जरिए रेशम और घोड़ों का व्यापार होता था। चीनी अपने व्यापार को लेकर शुरू से ही काफी संजीदा रहे हैं और इसी को ध्यान में रखते हुए चीन की महान दीवार का भी निर्माण किया गया था, ताकि व्यापार आसानी से हो और बाहरी आक्रमणकारी व्यापार को नुकसान न पहुंचा सकें। 5वीं से 8वीं सदी तक चीनी, अरबी, तुर्की, भारतीय, पारसी, सोमालियाई, रोमन, सीरिया और अरमेनियाई आदि व्यापारियों ने इस सिल्क रूट का काफी इस्तेमाल किया। साल 2014 में यूनेस्को ने इसी पुराने सिल्क रूट के एक हिस्से को विश्व धरोहर के रूप में मान्यता भी दी।
जानकार की राय
रक्षा मामलों के जानकार अनिल कौल ने जागरण.कॉम को बताया कि जब तक भारत मजबूती के साथ अपनी बात अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने नहीं रखेगा चीन इस तरह की चाल चलता रहेगा। उन्होंने कहा कि चीन को स्पष्ट संदेश देने के लिए भारत को पाकिस्तान के खिलाफ अब पुख्ता कार्रवाई करनी होगी।
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