Move to Jagran APP

उत्‍तर कोरिया से एक संधि करके चीन ने बांध लिए अपने हाथ, जानें कैसे

उत्‍तर कोरिया अौर चीन के बीच कुछ ऐसा खास है जिसे जानना बेहद जरूरी है। इस वजह से उत्‍तर कोरिया के मुद्दे पर चीन के हाथ बंधे हुए दिखाई देते हैं, जानें क्‍यों

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 15 May 2017 01:12 PM (IST)Updated: Tue, 16 May 2017 11:50 AM (IST)
उत्‍तर कोरिया से एक संधि करके चीन ने बांध लिए अपने हाथ, जानें कैसे
उत्‍तर कोरिया से एक संधि करके चीन ने बांध लिए अपने हाथ, जानें कैसे

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। उत्‍तर कोरिया की वजह से समूचे दक्षिण पूर्वी एशिया में जो संकट मंडरा रहा है उसकी वजह सभी को मालूम है। कभी जापान का हिस्‍सा रहा उत्‍तर कोरिया आज किम जोंग उन के नेतृत्‍व में लगातार अपनी परमाणु बम बनाने की क्षमता में वृद्धि कर रहा है। अमेरिका से भले ही उसका छत्‍तीस का आंकड़ा हो लेकिन इस क्षेत्र में उसका सबसे बड़ा दुश्‍मन दक्षिण कोरिया ही है। 2006 से ही उत्‍तर कोरिया लगातार परमाणु और मिसाइल प‍रीक्षण कर क्षेत्र में तनाव बढ़ाने का काम करता रहा है। रविवार को ही उसने बैलेस्टिक मिसाइल का परीक्षण कर एक बार फिर से तनाव को बढ़ाने में मदद की है। यह सब कुछ उस समय में हो रहा है जब कुछ समय पहले ही उत्‍तर कोरिया-चीन और अमेरिका ने क्षेत्र में शांति की अोर कदम बढ़ाने के लिए वार्ता करने की जरूरत और इसकी अहमियत बताई थी। लेकिन ताजा मिसाइल परीक्षण ने एक बार फिर से हालातों को बदलने का काम किया है।

loksabha election banner

चीन की भूमिका

बहरहाल, मौजूदा समय में बढ़ते तनाव के बीच यह जानना सभ्‍ाी के लिए बेहद दिलचस्‍प होगा कि आखिर दक्षिण कोरिया-उत्‍तर कोरिया और अमेरिका के बीच उभरे इस तनाव में चीन की भूमिका क्‍या होगी। यहां पर एक बात साफ कर देनी बेहद जरूरी है कि चीन और उत्‍तर कोरिया के बीच शुरुआती दौर से ही व्‍यापारिक और राजनयिक संबंध कायम हैं। इतना ही नहीं कोरियाई युद्ध के दौरान चीन उत्‍तर कोरिया के समर्थन में लड़ भी चुका है। यदि उस वक्‍त अमेरिका संयुक्‍त राष्‍ट्र में प्रस्‍ताव पास करवाकर अचानक न आ धमकता तो उत्‍तर कोरिया दक्षिण कोरिया को कब का निगल चुका होता। उत्‍तर कोरिया और चीन का यह बेहद दिलचस्‍प पहलू है।

चीन की मजबूरी

वहीं हाल में उभरे तनाव के बीच चीन बार-बार वार्ता पर जोर देता रहा है। यह शांति बनाए रखने के लिए उसका अच्‍छा कदम कहा जा सकता है। लेकिन इसके पीछे कुछ राजनीतिक और कुछ कुटनीतिक मजबूरियां भी छिपी हैं। इनमें से पहली मजबूरी यह है कि चीन मौजूदा समय में जबकि वह खुद दक्षिण चीन सागर पर चारों और से घिरा है, अमेरिका से दुश्‍मनी मोल नहीं लेना चाहेगा। दूसरी मजबूरी यह भी है कि चीन और उत्‍तर कोरिया के बीच 1949 से ही व्‍यापारिक और राजनयिक संबंध्‍ा हैं। ऐसे में चीन इन रिश्‍तों को पूरी तरह से खत्‍म नहीं करना चाहेगा। 1995 से लेकर 2009 तक दोनों देशों के बीच व्‍यापार लगातार बढ़ा ही है। वर्ष 2009 में दोनों देशों ने आपसी संबंधों के साठ वर्ष पूरा होने की खुशी में 2009 को उत्‍तर कोरिया-चीन की दोस्‍ती का नाम दिया था। चीन की उत्‍तर कोरिया से करीब 1416 किमी की सीमा भी लगती है। इसके बाद भी मौजूदा राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग कभी उत्‍तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन से नहीं मिले हैं। यह इस दोस्‍ती का दूसरा दिलचस्‍प पहलू है।

यह भी पढ़ें: जापान में नहीं मिल रहे मजदूर तो कंपनियों ने निकाला ये नायाब तरीका

दोनों देशों के बीच अहम संधि बनीं मजबूरी

इन सभी के बीच दोनों देशों के बीच 1979 में हुई वह संधि है जो इन दोनों के बीच की दोस्‍ती को साफतौर पर दर्शाती है। यह संधि मिलिट्री सहयोग को लेकर की गई थी। इस संंधि के तहत उत्‍तर कोरिया पर कहीं से भी हमला होने की सूरत में चीन को सहयोग के तौर पर सैन्‍य मदद भेजनी होगी। यही चीज चीन पर हमला होने की सूरत में उत्‍तर कोरिया पर भी लागू होती है। इस संधि को दो बार 1981 और फिर 2001 में समय की मांग को देखते हुए आगे बढ़ाया गया है। मौजूदा समय में यह संधि वर्ष 2021 तक के लिए है। इस संधि का असर सीधेतौर पर इस तनाव पर दिखाई देता है।

वक्‍त बदल गया है

चीन के लिए यहां पर संकट की बात इसलिए भी है कि वह संधि से पीछे हट भी नहीं रहा है और अमेरिका से दुश्‍मनी मोल लेना वक्‍त की मांग नहीं है। इस मामले पर विदेश मामलों की जानकार अलका आचार्य का मानना है कि जिस वक्‍त चीन और उत्‍तर कोरिया के बीच यह संधि हुई थी उस वक्‍त और आज की तुलना में हालात बेहद अलग हैं। उनके मुताबिक चीन को यदि यह फायदे का सौदा नहीं लगा तो वह इससे पीछे भी हट सकता है। इसकी बड़ी वजह यह है कि यदि तनाव बढ़ा और युद्ध के मुहाने पर उत्‍तर कोरिया और अमेरिका खड़े हुए तो इसका सीधा असर चीन पर भी पड़ेगा, जो चीन को मंजूर नहीं होगा। लिहाजा इस संधि को लेकर वह इतना गंभीर शायद ही होगा।

यह भी पढ़ें: जानें दक्षिण पूर्वी एशिया को संकट में डालने वाले उत्‍तर कोरिया से कैसे हैं भारत के संबंध

चीन को भी नहीं बख्‍श्‍ता उत्‍तर कोरिया

वहीं दूसरी तरफ एक तथ्‍य यह भी है कि चीन को लेकर उत्‍तर कोरिया कई बार विरोधी कार्रवाई करता रहा है। उत्‍तर कोरिया के इस रवैये से खफा होकर चीन ने उत्तर कोरिया से कोयले के आयात को पूरे साल के लिए रद्द कर दिया था। उत्तर कोरिया के लिए कोयला विदेशी मुद्रा अर्जित करने का अहम स्रोत है। वहीं हाल के कुछ वर्षों में चीन की सरकारी मीडिया लगातार उत्तर कोरिया पर कड़े प्रतिबंध लगाने की मांग करती रही है। चीन ने इस बाबत उत्‍तर कोरिया को किसी तरह का परमाणु परीक्षण कर क्षेत्र में तनाव बढ़ाने से बचने की भी नसीहत दी है। चीन बार बार यह कहता रहा है कि उसके उत्‍तर कोरिया से दोस्‍ताना संबंध हैं लेकिन वह उसके परमाणु कार्यक्रम का समर्थन नहीं करता है। हालांकि उत्‍तर कोरिया ने कभी भी इसको माना नहीं है। वहीं उलटा उत्‍तर कोरिया चीन को चुप रहने की धमकी तक देता रहा है।
 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.