सेवानिवृत्ति के बाद निशुल्क संवार रहे हैं बच्चों का भविष्य
संझौली प्रखंड के सिकठी निवासी 67 वर्षीय रामप्रवेश सिंह। सेवानिवृति भी इनके शिक्षादान के जुनून को रोक नहीं पाई।
रोहतास (ब्युरो)। कहते हैं कि शिक्षक कभी रिटायर नहीं होता। सरकार भले ही उन्हें सेवानिवृत्त कर दें , लेकिन वास्तविक शिक्षक अपने किरदार को आजीवन जीवंत बनाए रखते हैं। शिक्षा की ज्योति फैलाने की दृढ़ता उनमें अंतिम सांस तक रहती है। ऐसे ही एक शिक्षक हैं संझौली प्रखंड के सिकठी निवासी 67 वर्षीय रामप्रवेश सिंह।
सेवानिवृति भी इनके शिक्षादान के जुनून को रोक नहीं पाई।
बन गए हैं ‘चलंत मुफ्त शिक्षा सेवा’: 31 जुलाई 2011 को सेवानिवृत्ति के बाद से ही ये स्वतंत्र रूप से शिक्षा साधना में जुट गए। प्रतिदिन किसी न किसी विद्यालय में पहुंचकर छात्रों को शिक्षा देते हैं। 1975 में बीएड करने के बाद स्वामी शिवानंद उच्च विद्यालय करहंसी ( दिनारा) में पांच जनवरी 1977 से 30 दिसंबर 1981 तक शिक्षक रहे। रिटायर होने के गत पांच वर्षों से संझौली, बिक्रमगंज, नोखा व काराकाट प्रखंड के कई सरकारी व निजी विद्यालयों में घूम-घूमकर छात्रों को पढ़ाते हैं। पढ़ाने का शौक ऐसा कि राह चलते भी बच्चे जिज्ञासा प्रकट करते तो वे वहीं उसका उत्तर बताने लगते हैं। शिक्षा जगत में उन्हें ‘चलंत मुफ्त शिक्षा सेवा’ के नाम से जाना जाता है। कई बार शिक्षक भी इनसे समस्या का समाधान पूछते हैं।
शिक्षादान से राष्ट्र निर्माण
संझौली के बीईओ ललित मोहन सिंह कहते हैं कि सेवानिवृति के बाद भी रामप्रवेश सिंह शिक्षादान के जरिए राष्ट्र निर्माण में अपनी महती भूमिका निभा रहे हैं। उनके इस समर्पण पर शिक्षकों को गर्व होता है। बुढ़ापे में भी साइकिल से स्कूल पहुंचने का जुनून उनके समर्पण को बयां करता है।
छुट्टी पर गए शिक्षक की भरपाई करते सेवानिवृत्त रामप्रवेश बाबू
रामप्रवेश ने बताया कि किसी विद्यालय में जब कोई शिक्षक छुट्टी पर चले जाते हैं, तो उनकी भरपाई के लिए उन्हें बुलाया जाता है। अगले दिन वे साइकिल से उस विद्यालय में पहुंच जाते हैं और पूरे समय तक बच्चों को पढ़ाते हैं। रामप्रवेश की साइकिल अगले दिन किसी अन्य मध्य या उच्च विद्यालय का रुख कर लेती है। यह सिलसिला हर दिन चलता रहता है। रामप्रवेश मूल रूप से छात्रों को अंग्रेजी व संस्कृत पढ़ाते हैं। जरूरत पड़ने पर अन्य विषयों को भी पढ़ाते हैं। कहते हैं कि जब जिंदगी में शिक्षक का किरदार मिल गया, तो उसको आजीवन निभाने का संकल्प ले लिया। गरीब व असहाय बच्चों को पढ़ाने में बेहद प्रसन्नता महसूस होती है।
-प्रमोद टैगोर
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