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स्कूल बैग के साथ पानी की बोतल ढोने से बच्चों को मिलेगी छुट्टी

सरकार स्कूली बच्चों के बस्ते में से डेढ़ से दो किलो वजन घटाने की पहल कर रही है।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Sat, 22 Jul 2017 09:42 AM (IST)Updated: Sat, 22 Jul 2017 10:12 AM (IST)
स्कूल बैग के साथ पानी की बोतल ढोने से बच्चों को मिलेगी छुट्टी
स्कूल बैग के साथ पानी की बोतल ढोने से बच्चों को मिलेगी छुट्टी

अरविंद पांडेय, नई दिल्ली। स्कूली बच्चों के बस्ते में शामिल पीने के पानी की भारी -भरकम बोलतों से उन्हें अब जल्द ही मुक्ति मिल सकती है। केंद्र सरकार ने इसकी पहल शुरु कर दी है। फिलहाल इसकी शुरुआत सीबीएसई से संबद्ध स्कूलों से होगी। जिसके लिए सीबीएसई ने काम शुरु कर दिया है। साथ ही संबद्ध सभी स्कूलों को निर्देश दिया है, कि वह स्कूलों में बच्चों के पीने के लिए जल्द ही स्वच्छ पानी के इंतजाम करे। वहीं बच्चों को इस बात की समझाइश भी दें,कि वह स्कूलों में पानी की भारी-भरकम बोलतों को न लाए।

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यूं तो सीबीएसई के अधिकतर स्कूल स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने में सक्षम हैं लेकिन छात्रों के साथ साथ माता पिता को आश्वस्त करना बहुत आसान नहीं होगा कि स्कूलों में पूर्णरूपेण स्वच्छ जल उपलब्ध है। लिहाजा स्कूल के यह संदेश देकर उन्हें आश्वस्त किया जाएगा। व्यवस्था बनाने और छात्रों को इसके लिए सहमत करने की जरुरत है। मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों की मानें तो यदि यह व्यवस्था सीबीएसई स्कूलों में सफलता से लागू हो जाती है, तो इसको बाकी स्कूलों में भी विस्तार दिया जा सकता है। देश में मौजूदा समय में सीबीएसई से संबद्ध करीब 19294 स्कूल संचालित है। इनमें सबसे ज्यादा प्राइवेट है।

बता दें कि केंद्र सरकार के स्तर पर स्कूली बच्चों के बस्ते का वजन कम करने के लिए पहले भी तमाम कोशिशें हो चुकी है। जिसमें छोटी कक्षाओं के पाठ्यक्रम में बदलाव के साथ किताबों की संख्या में भी कमी की गई है। इसके अलावा डिजीटल अध्ययन को भी स्कूलों में तेजी से बढावा दिया जा रहा है। सीबीएसई से जुड़े अधिकारियों की मानें तो स्कूलों में यदि यह व्यवस्था लागू हो जाती है, तो बस्ते का वजन एक से दो किलो तक कम हो जाएगा।

राज्यों में मौजूद सरकारी स्कूलों में अमल की होगी चुनौती

मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों की मानें तो बस्ते से पानी को बोलतों को हटाने की असली चुनौती राज्यों में मौजूद सरकारी स्कूलों में होगी। जहां संसाधनों का भारी आभाव है।ग्रामीण क्षेत्रों के ज्यादातर स्कूल तो ऐसे है,जहां पीने के पानी की कोई व्यवस्था ही नहीं है।

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