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'समझौते के बाद भी खत्म नहीं होगा रेप केस'

सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि दुष्कर्म के मामले में दोनों पक्षों के बीच समझौता होने पर भी केस खत्म नहीं होगा। जस्टिस रंजना देसाई व जस्टिस एनवी रमण ने आईपीसी की धारा 4

By Edited By: Published: Tue, 29 Jul 2014 11:52 AM (IST)Updated: Tue, 29 Jul 2014 01:41 PM (IST)
'समझौते के बाद भी खत्म नहीं होगा रेप केस'

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि दुष्कर्म के मामले में दोनों पक्षों के बीच समझौता होने पर भी केस खत्म नहीं होगा। जस्टिस रंजना देसाई व जस्टिस एनवी रमण ने आईपीसी की धारा 498 के तहत आने वाले अपराधों व दुष्कर्म तथा हत्या जैसे अपराधों के बीच का अंतर स्पष्ट करते हुए यह बात कही। हालांकि तीनों श्रेणियों के अपराध नॉन-कम्पाउंडेबल हैं, यानी इनमें केस दर्ज होने के बाद समझौता नहीं किया जा सकता है।

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खंडपीठ के मुताबिक, दहेज प्रताड़ना पूरी तरह से व्यक्तिगत मामला है और पति-पत्नी या दोनों पक्ष किसी समझौते पर पहुंच जाएं तो केस खत्म किया जा सकता है, लेकिन दुष्कर्म के मामलों में ऐसा नहीं होगा।

सर्वोच्च अदालत के मुताबिक, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 320 में उन अपराधों की सूची दी गई है, जिनमें दोनों पक्षों के समझौते पर पहुंचने पर समाधान हो सकता है। ये समझौते अदालतों को भी मान्य होंगे।

जस्टिस देसाई ने अपने फैसले में कहा कि आईपीसी की धारा 498-ए व दहेज निरोधक कानून की धारा 4 के तहत आने वाले अपराधों में समाधान की अनुमति देना संभव नहीं है। हालांकि यदि पति-पत्नी के बीच वाजिब समझौता हुआ है तो पारिवारिक कलह के चलते दर्ज हुई आपराधिक शिकायत अमान्य घोषित हो सकती है, चाहे अपराध नॉन-कम्पाउंडेबल हो, क्योंकि ऐसे अपराध व्यक्तिगत होते हैं। दुष्कर्म व हत्या जैसे जघन्य अपराधों की तरह इनका समाज पर कोई बुरा असर नहीं पड़ता।

मध्य प्रदेश से जुड़े मामले में फैसला:

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी मध्य प्रदेश से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान आई है। महिला ने धारा 498-ए व दहेज निरोधक कानून की धारा 4 के तहत अपने पति व सास-ससुर के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी।

मप्र हाई कोर्ट ने सास-ससुर को बरी कर दिया था और पति को दोषी ठहराया था, लेकिन उसकी सजा घटाकर छह माह कर दी थी। निचली अदालत ने दो साल की कैद की सजा सुनाई थी।

केस जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो पति-पत्नी में समझौता हो गया। पति 2.5 लाख रुपये व मुकदमेबाजी के खर्च का भुगतान करने को राजी हो गया। महिला ने सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश की कि पति के खिलाफ केस का खात्मा कर दिया जाए। वहीं, सरकारी वकील ने इसका विरोध किया।

सुप्रीम कोर्ट की उक्त बेंच ने विचार किया कि क्या ट्रायल कोर्ट व हाई कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए जाए जाने के बाद सर्वोच्च अदालत सजा कम कर सकती है। कोर्ट ने पाया कि यद्यपि आईपीसी की धारा 498-ए में न्यूनतम सजा का उल्लेख नहीं है, लेकिन दहेज निरोधक कानून की धारा 4 में न्यूनतम छह माह की सजा का जिक्र है।

आखिरी में लंबे पुनर्विचार के बाद जजों ने प्रदेश सरकार का विरोध खारिज कर दिया और कहा कि हमें कोई कारण दिखाई नहीं देता कि हम पति की सजा न घटा सकें। आखिरी में पति की सजा घटाकर सात दिन कर दी गई, जो वह पहले ही काट चुका है। कोर्ट की नजर में यह पति-पत्नी का वाजिब समझौता है।

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