नौसेना के मुख्य विमान मिग-29 पर कैग ने उठाए सवालिया निशान
कैग ने विमान मिग-29 की कार्यक्षमता पर सवाल उठाए हैं। रिपोर्ट में जिक्र है कि जरुरत पड़ने पर इन विमानों को सही ढंग से इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
नई दिल्ली। भारतीय नौसेना समुद्री तटरेखा से सुदूर इलाकों तक अपनी दमदार उपस्थिति के लिए रूस से खरीदे हुए अपने एकमात्र लड़ाकू जेट मिग-29 के पर काफी हद तक निर्भर है। लेकिन नियंत्रण एवं महालेखापरीक्षक (कैग) के मुताबिक इसकी स्थिति इतनी खराब है कि यह वास्तव में उपयोग के लिए ही उपलब्ध नहीं है।
इस संबंध में दो दिन पहले कैग ने अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की है। नेवी के मिग-29 कार्यक्रम का ऑडिट करने के बाद यह रिपोर्ट पेश की गई है। उसमें कैग ने कहा है कि मल्टी रोल और नौसेना बेड़े के एयर डिफेंस का अहम हिस्सा मिग-29 के में कई खामियां हैं। इसके इंजन में खराबियों समेत कई दिक्कते हैं। इसका मतलब है कि जब भी इसे तैनात किए जाने की जरूरत होगी तो बेहतर से बेहतर स्थिति में भी ऑपरेशनों के लिए 50 प्रतिशत से भी कम मामलों के लिए ही यह पूरी तरह फिट रहेगा।
अभी भी तलाश है उस आवाज की, जो AN-32 विमान की खोज के लिए है जरूरी
भारत ने 2004-10 के दौरान इस तरह के 45 लड़ाकू विमानों को खरीदा था। इसे देश के प्रमुख युद्धपोत आईएनएस विक्रांत पर तैनात किया गया है। कोच्चि में निर्मित हो रहे विमानवाहक पोत विक्रांत का भी यह मुख्य लड़ाकू विमान होगा। इस बात की भी पूरी संभावना है कि यह अभी डिजाइन स्तर पर चल रहे तीसरे विमानवाहक पोत विशाल का भी मुख्य लड़ाकू विमान होगा।
कैग की रिपोर्ट कहती है कि 2010 में जब से मिग-29के विमान सेवा में शामिल किए गए हैं, तब से इनमें से आधे के इंजनों में डिजाइन संबंधी खामियां पाई गई हैं। इसके चलते इसकी सुरक्षित उड़ान एक गंभीर मसला है।
इसके अलावा विमानवाहक पोत के संकरे डेक पर उतरने की प्रक्रिया के दौरान भी यह पूरी तरह से सहज नहीं है। इस दौरान भी इसको कई दिक्कतों का सामना करते देखा गया है। इसके साथ ही कैग रिपोर्ट में यह जोड़ा गया है कि डिजाइन में अनेक संशोधनों और सुधारों के बावजूद कई खामियां पाई गई हैं।इन खामियों के बारंबार उत्पन्न होने के चलते नौसेना पायलटों के ट्रेनिंग कार्यक्रम पर बुरा असर पड़ा है।
AN-32 का अब तक न मिल पाना किसी अनहोनी की ओर इशारा: पर्रिकर
एक अंग्रेजी अखबार के मुताबिक नौसेना अधिकारियों ने माना है कि इसका तात्कालिक कोई समाधान नजर नहीं आता। उनका यह भी कहना है कि मिग-29 के विकल्प की खरीद पर भी बहुत कहने की स्थिति में नहीं हैं क्योंकि इसकी खरीद एक 'पैकेज डील' का हिस्सा थी जिसमें विमानवाहक पोत गोर्शकोव के हस्तांतरण और नवीकरण की योजना भी शामिल थी। गोर्शकोव को नौसेना ने आईएनएस विक्रमादित्य के रूप में अपने बेड़े में शामिल किया है।
उनका यह भी कहना है जब इसको विमानवाहक पोत पर तैनात नहीं किया गया था तो गोवा में स्थित इसके बेस पर रूसी निर्माता के इंजीनियरों की एक टीम को तकनीकी दिक्कतों का समाधान करने के लिए भेजा गया था। वरिष्ठ अधिकारी इस तरफ भी इशारा करते हैं कि मिग-29 के को शामिल करने वाला भारत पहला ऑपरेटर था। यहां तक कि रूसी नेवी से भी पहले इसे यहां शामिल किया गया।
यद्यपि उनका यह भी कहना है कि नए प्लेटफॉर्म की दिक्कतों से निपटने में समय लगता है लेकिन इसके लिए बहुत चिंतित होने की जरूरत नहीं है क्योंकि रूस ने भी अपने सुखोई की जगह इसी मिग-29के को बेड़े में शामिल करने का फैसला किया है। हालांकि भारतीय नौसेना के सूत्र हिचकिचाते हुए यह भी कहते हैं कि बार बार होने वाली दिक्कतों को सुधारने और इसे बेहतर करने के भारतीय अनुभवों से बेशक रूस को भी फायदा होगा।