न्यूक्लियर रिएक्टर से बिजली उत्पादन के मामले में भारत में स्थिति जस की तस
फिलहाल हालात 2009 जैसे ही हैं, जब भारत और अमेरिका के बीच न्यूक्लियर डील पूरी हुई थी।
नई दिल्ली। हाल ही में स्वदेशी परमाणु रिऐक्टरों से बिजली उत्पादन के मुद्दे पर केंद्र सरकार की कैबिनेट ने बड़ा फैसला लिया। लेकिन इस इंडस्ट्री से जुड़े विशेषज्ञ मानते हैं कि न्यूक्लियर पावर से बिजली उत्पादन की दिशा में तमाम कोशिशों के बावजूद भारत के हालात 6-7 साल पहले जैसे ही हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक न्यूक्लियर लायबिलिटी लॉ के झंझटों की वजह से भारत ने परमाणु ऊर्जा आधारित बिजली के क्षेत्र में काफी वक्त गंवा दिया, जिसका असर भारत के घरेलू न्यूक्लियर इंडस्ट्री पर भी पड़ा।
कैबिनेट ने इस हफ्ते 10 न्यूक्लियर रिएक्टर बनाने का फैसला किया। इससे पहले, जापानी संसद के निचले सदन ने भारत-जापान न्यूक्लियर समझौते को मंजूरी दे दी जिसे एक बड़ी उपलब्धि कहा जा सकता है। भारत को ऑस्ट्रेलिया से यूरेनियम की पहली सप्लाई मिलने का इंतजार है।
फिलहाल हालात 2009 जैसे ही हैं, जब भारत और अमेरिका के बीच न्यूक्लियर डील पूरी हुई थी। इसके बाद 2010 में न्यूक्लियर लायबिलिटी लॉ के पचड़े ने न केवल विदेशी निवेशकों को डरा दिया, बल्कि घरेलू न्यूक्लियर इंडस्ट्री पर भी बुरा असर पड़ा।
इस कानून की वजह से किसी भी भारतीय कंपनी ने न्यूक्लियर पावर प्रॉजेक्ट में हाथ डालने से इनकार कर दिया। इन कानूनों से सालों तक निपटने के बाद भारत सरकार वहीं है, जहां से शुरूआत हुई थी।
कैबिनेट का हालिया फैसला न्यूक्लियर पावर जनरेशन प्रोजेक्ट को फिर से पटरी पर लाने की दिशा में उठाया गया कदम है। माना जा रहा है कि इन 10 रिएक्टर्स के शुरू होने से घरेलू इंडस्ट्री और सप्लायर्स को काफी फायदा होगा।
हालांकि, इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का मानना है कि इस प्रॉजेक्ट की दिशा में सबसे कमजोर कड़ी न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) है। जानकारों की अगर माने तो NPCIL के पास संसाधनों की कमी है।बता दें कि हरियाणा के गोरखपुर में परमाणु रिएक्टर शुरू होने का सालों से इंतजार है।
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