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उत्तर प्रदेश में भाजपा के सामने चुनौती उप चुनाव, उम्मीदवार चयन पर मशक्कत

अमित शाह स्पष्ट कर गए हैं उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य उत्तर प्रदेश सरकार में ही रहेंगे। इससे अब साफ हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केशव मौर्य को त्यागपत्र देना है।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Thu, 03 Aug 2017 10:38 AM (IST)Updated: Thu, 03 Aug 2017 01:33 PM (IST)
उत्तर प्रदेश में भाजपा के सामने चुनौती उप चुनाव, उम्मीदवार चयन पर मशक्कत
उत्तर प्रदेश में भाजपा के सामने चुनौती उप चुनाव, उम्मीदवार चयन पर मशक्कत

लखनऊ [आनन्द राय]। भारतीय जनता पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती उत्तर प्रदेश में आने वाला उप चुनाव है। यह चुनाव राज्य सभा की दो, लोकसभा की दो, विधान सभा की एक और विधान परिषद की चार सीटों के लिए होना है। 

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पहली चुनौती किस सीट पर कौन उम्मीदवार लड़ेगा, इसे लेकर है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के जाने के बाद भाजपा के रणनीतिकार इस पर माथापच्ची कर रहे हैं। यह अलग बात है कि फैसला शीर्ष नेतृत्व से होना है। अमित शाह स्पष्ट कर गए हैं कि उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य उत्तर प्रदेश सरकार में ही रहेंगे। इससे तो अब दो बातें साफ हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केशव मौर्य को त्यागपत्र देना है। उप राष्ट्रपति चुनाव के बाद यह इस्तीफा हो सकता है।

इसके बाद योगी आदित्यनाथ के संसदीय क्षेत्र गोरखपुर और केशव प्रसाद मौर्य के फूलपुर में उप चुनाव होना निश्चित है। कानपुर देहात में विधायक मथुरा प्रसाद पाल के निधन से सिकंदरा सीट रिक्त है। एमएलसी यशवंत सिंह, बुक्कल नवाब और ठाकुर जयवीर सिंह के इस्तीफे से विधान परिषद की तीन सीटों के लिए जबकि, बदायूं में बनवारी यादव के निधन से स्थानीय प्राधिकारी निर्वाचन क्षेत्र की विधान परिषद तथा बसपा प्रमुख मायावती और पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के इस्तीफे के बाद राज्यसभा की दो सीटों पर उप चुनाव होना है। 

विधानसभा का चुनाव लड़ सकते हैं योगी 

इतना तो स्पष्ट है कि सरकार में शामिल लोगों को भाजपा 19 सितंबर से पहले विधान मंडल की सदस्यता दिलाएगी लेकिन, अभी भी बहुत सी स्थिति स्पष्ट नहीं हुई है। भाजपा खेमे में तो यह बात चल रही है कि योगी आदित्यनाथ जनता के बीच से चुनकर विधानसभा में आने की इच्छा रखते हैं। संभव है कि भाजपा सिकंदरा विधानसभा सीट से ही उन्हें मैदान में उतार दे। दूसरा दृष्टिकोण यह है कि भाजपा योगी आदित्यनाथ के चुनाव लडऩे से मैसेज देने का भी काम करेगी इसलिए या तो गोरखपुर में उनके संसदीय क्षेत्र की ही कोई विधानसभा सीट चयन करे या फिर अयोध्या से उन्हें मौका मिले।

अयोध्या से योगी आदित्यनाथ की उम्मीदवारी का बड़ा मैसेज जाएगा। सरकार के बाकी लोगों के लिए विधान परिषद में जाने की बात पक्की मानी जा रही है। योगी व केशव के अलावा उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा, परिवहन मंत्री स्वतंत्र देव सिंह और राज्यमंत्री मोहसिन रजा विधान मंडल के किसी सदन के सदस्य नहीं हैं। 

राज्यसभा और लोकसभा को लेकर कशमकश 

भाजपा में उत्तर प्रदेश से लोकसभा व राज्यसभा के उम्मीदवार के चयन को लेकर कशमकश है। भाजपा में कई पुराने दिग्गज पड़े हैं जिनकी सक्रियता बहुत है। मसलन, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रमापति राम त्रिपाठी ने भाजपा के संकल्प पत्र तैयार करने से लेकर हर अभियान में हिस्सेदारी निभाई तो पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी और प्रदेश महासचिव विद्यासागर सोनकर व सलिल विश्नोई जैसे नेता चुनाव हार चुके हैं। संगठन के विजय बहादुर पाठक और अशोक कटारिया के समायोजन की भी पार्टी पहल कर सकती है।

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बसपा छोड़कर सबसे पहले आने वाले जुगुल किशोर पिछली बार राज्यसभा जाते-जाते रह गए थे। इस बार मायावती की खाली सीट पर उन्हें मौका मिल सकता तो पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की सीट पर भाजपा कोई ब्राह्म्ण उम्मीदवार भी ला सकती है। संगठन में और भी कई दिग्गज हैं जिनके समायोजन की चिंता है। इस बीच भाजपा ने जातीय संतुलन पर भी ध्यान दिया है। 

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दलितों के साथ ओबीसी फैक्टर साधने में पार्टी सक्रिय है लेकिन, सवर्णों को भी मौका देना चाहती है। उधर, फूलपुर में विपक्ष की ओर से मायावती को मैदान में उतारे जाने की चर्चा भर से भाजपा के कान खड़े हो गए हैं।

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हालांकि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को इस बात का भरोसा है कि वह किसी सामान्य कार्यकर्ता को भी मैदान में उतारकर भारी मतों से चुनाव जिता लेंगे। पर, वहां मौका किसे मिले यह भी एक कठिन फैसला होगा।

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गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में अभी तो योगी आदित्यनाथ तो अपराजेय रहे हैं लेकिन, बाकी के साथ मतदाताओं की वैसी आस्था नहीं हो सकती। विपक्ष अगर मोर्चेबंदी कर चुनाव लड़ा और पिछड़े पर दांव लगाया तो लड़ाई कठिन हो सकती है। इस लिहाज से उम्मीदवार चयन पर भी पार्टी मशक्कत कर रही है।


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