इन भैंसों के ठाठ हैं निराले, केवल एसी कमरों में रह पाती हैं ये!
वदेशी नस्ल के कुत्ते- बिल्ली को पालने के शौकीन लोगों की दुनिया में कमी नहीं है। कुछ ऐसे भी लोग मिलेंगे जो इन जानवरों को अपने बच्चों की तरह समझते हैं और इनके रख-रखाव व खान-पान पर खुशी-खुशी लाखों रुपये खर्च कर देते हैं। लेकिन दिल्ली देहात के ढिचाऊ कलां गांव में दो ऐसे भैंसे [झोटे] हैं जो
पश्चिमी दिल्ली , [ऋषिपाल टोंकवाल]। विदेशी नस्ल के कुत्ते- बिल्ली को पालने के शौकीन लोगों की दुनिया में कमी नहीं है। कुछ ऐसे भी लोग मिलेंगे जो इन जानवरों को अपने बच्चों की तरह समझते हैं और इनके रख-रखाव व खान-पान पर खुशी-खुशी लाखों रुपये खर्च कर देते हैं। लेकिन दिल्ली देहात के ढिचाऊ कलां गांव में दो ऐसे भैंसे [झोटे] हैं जो न केवल वातानुकूलित कमरे में रहते हैं, बल्कि इन्हें देसी घी, दूध, मक्खन, गेंहू, चना, मेवा के लड्डू व फल खाने को दिए जाते हैं। यह कोई आम भैंसे नहीं हैं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में ये दर्जनों इनाम भी जीत चुके हैं। रोचक बात यह है कि इनके मालिक इन्हें अपने बेटों की तरह प्यार करते हैं।
मालिक ओमप्रकाश व उनकी पत्नी सरोज का कहना है कि उनके यहां कोई औलाद नहीं हुई, इसलिए हीरा-मोती को ही बेटा मान लिया।
मुर्रा नस्ल के हैं हीरा-मोतीओमप्रकाश बताते हैं कि हीरा-मोती मुर्रा नस्ल के हैं। इन भैंसों की मां भी इनके पास है। उसने अभी तक 27 बच्चों को जन्म दिया है। हीरा-मोती 26 व 27वें नंबर पर पैदा हुए हैं। मोती की कीमत तीन करोड़ रुपये लगाई गई है। ओमप्रकाश ने बताया कि वह मुर्रा नस्ल की प्रजाति को आगे बढ़ाना चाहते हैं।
कई प्रतियोगिता में जीते हैं इनाम
हीरा-मोती दिल्ली सहित अन्य राच्यों में आयोजित राष्ट्रीय स्तर की पशु प्रदर्शनी में 10 से अधिक इनाम जीत चुके हैं। अधिकतर प्रदर्शनी में दोनों ने प्रथम अथवा द्वितीय स्थान प्राप्त किया।
बेटों की तरह हैं हीरा-मोती
सरोज ने बताया कि हमने हीरा-मोती को औलाद की तरह पाला है। ये हमारे लिए पशु नहीं, बल्कि परिवार के सदस्य हैं। प्रतियोगिता में पुरस्कार जीतकर यह हमारा नाम रोशन करते हैं। इसलिए इन्हें वातानुकूलित कमरों में रखा जाता है और इनके खान-पान पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
खाने में 15 लीटर दूध व अन्य सामान
हीरा-मोती को हर रोज खाने में 15 लीटर दूध, सेब, चना, गेहूं, सोयाबीन दिया जाता है। वहीं, सर्दियों में बाजरा व मेवा से बने लड्डू दिए जाते हैं।
छह घरेलू सहायक रहते हैं सेवा में
हीरा-मोती को कोई परेशानी न हो इसलिए छह घरेलू सहायक उनकी सेवा में हरदम तैयार रहते हैं। सरोज का कहना है कि वह खुद सुबह चार बजे से उनकी देखरेख में लग जाती हैं। घरेलू सहायक इन्हें नहलाते हैं और इनकी मालिश करते हैं।
खेती से निकलता है खर्च
सरोज बताती हैं कि उन्होंने हीरा-मोती पर होने वाले खर्च की कभी गणना नहीं की। उन्होंने कहा कि 150 किले [5 बीघा का एक किला] की खेती से उनका व अपना खर्च निकलता है। पशु प्रतियोगिता में कई पुरस्कार जीत चुके हैं हीरा व मोती।