बसपा के ताजा रुख से विपक्षी एकता को धक्का!
बीमा विधेयक और काले धन पर सरकार के खिलाफ विपक्षी एकता के प्रयास को बसपा ने हल्का झटका दे दिया है। वाम दल, सपा, जदयू और तृणमूल कांग्रेस जहां बीमा विधेयक पर सरकार के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल चुके हैं, वहीं बसपा इस गठजोड़ से खुद को अलग दिखा रही
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। बीमा विधेयक और काले धन पर सरकार के खिलाफ विपक्षी एकता के प्रयास को बसपा ने हल्का झटका दे दिया है। वाम दल, सपा, जदयू और तृणमूल कांग्रेस जहां बीमा विधेयक पर सरकार के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल चुके हैं, वहीं बसपा इस गठजोड़ से खुद को अलग दिखा रही है। बसपा ने संकेत दिया है कि पार्टी बेवजह इस बिल का संसद में विरोध नहीं करेगी। बसपा सुप्रीमो मायावती ने हालांकि यह भी स्पष्ट कर दिया कि यदि प्रवर समिति पार्टी के सुझाव मान लेती है, तो हम विधेयक की राह का रोड़ा नहीं बनेंगे। जब विधेयक राज्य सभा में आएगा तभी पार्टी इसपर फैसला करेगी। बहरहाल, राज्यसभा में मंगलवार को इस अहम मसले पर हंगामा होना तय है। बीमा विधेयक पर गठित प्रवर समिति से जेपी नड्डा और मुख्तार अब्बास नकवी की जगह दो नए नामांकन भी होने हैं। इन दोनों की जगह नए सदस्यों के नाम को लेकर भी विपक्ष सरकार से भिडऩे की तैयारी कर चुका है।
तृणमूल कांग्र्रेस और जनता दल (यू) ने प्रश्नोत्तर काल स्थगित कर सदन में चर्चा कराए जाने का पहले ही नोटिस दे रखा है। तृणमूल ने तो संसद परिसर में धरना-प्रदर्शन का भी एलान किया है। शिवसेना के रुख ने भी सरकार की चिंता बढ़ा दी है। पार्टी ने अपना संशोधन मंजूर नहीं किए जाने की स्थिति में विधेयक का विरोध करने का फैसला लिया है। पार्टी प्रवक्ता अरविंद सावंत ने विदेशी निवेश की जरूरत पर भी सवाल उठाया है।
बीमा संशोधन विधेयक-2008 के पारित हो जाने पर घरेलू बीमा कंपनियों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) की मौजूदा सीमा 26 फीसद से बढ़कर 49 फीसद तक हो जाएगी। यह विधेयक कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने वर्ष 2008 में पेश किया था। उस समय भाजपा समेत तमाम विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया था। मौजूदा राजग सरकार मूल विधेयक को 97 संशोधनों के साथ पेश करेगी।
विपक्षी एकता को मजूबत करने का दायित्व संभाले तृणमूल कांग्रेस और जनता दल (यू) ने अन्य सभी राजनीतिक दलों से विरोध करने का आग्रह किया है। सपा और वामदलों ने पहले ही विरोध करने की घोषणा कर रखी है। कांग्रेस की अनिश्चितता और बसपा के रुख से विरोधी दलों की एकता में दरार पड़ती दिख रही है।