अगर सिंधु जल संधि टूटती है तो तब भी 12 साल लगेंगे पानी रोकने में
भारत ने भले ही सिंधु जल संधि की समीक्षा करने के संकेत दिए हों, लेकिन इस समझौते को अगर रद भी किया जाता है तो तब भी पानी रोकने में कम से कम 12 साल लगेंगे।
इंदौर, रुमनी घोष। उरी आतंकी हमले के बाद गुस्से से उबल रहे देशवासियों के दिल में उस समय ठंडक पड़ गई, जब सरकार ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि की समीक्षा करने की बात कही। सुनते ही लगता है कि यह सबकुछ तुरंत हो जाएगा, पर जम्मूकश्मीर में सिंधु जलसंधि के साथ पावर प्रोजेक्ट के पूर्व चीफ इंजीनियर, जम्मू कश्मीर चेंबर ऑफ इंडस्ट्री के पूर्व अध्यक्ष और आर्थिक विश्लेषकों की मानें तो यह तत्काल संभव नहीं है।संधि टूट भी गई तो पानी रोकने में कम से कम 12 साल लगेंगे। कैसे और क्यों? पढ़िए रपट -
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डेढ़ मीटर ऊंची दीवार तुड़वा दी थी
हमारे सहयोगी प्रकाशन, नईदुनिया ने जब जम्मू-कश्मीर में पानी और बिजली के मुद्दे को लेकर 25 साल से लड़ रहे चेंबर ऑफ इंडस्ट्रीज कश्मीर के पूर्व अध्यक्ष शकील कलंदर से बात की तो यह साफ हो गया कि जहां यह सब होगा, वहां किसी को भी इस बात पर यकीन नहीं है। उनका दूसरा वाक्य और चौंकाने वाला था कि सिंधु संधि के सबसे ज्यादा पीड़ित हम जम्मूकश्मीर के उधोगपति हैं। ऐसा हो जाता तो सबसे ज्यादा फायदा हमें मिलेगा। फिर भी हम कह रहे हैं यह संभव नहीं है। जम्मू से निकलने वाली तीन नदियों चिनाब, झेलम और सिंध नदी पर लगभग 19 बांध हैं। इनमें पांच बड़े बांध हैं। शकील कलंदर कहते हैं ताजा उदाहरण है चिनाब पर बने बगलिहार पावर प्रोजेक्ट का। तीन साल पहले जब यह बन रहा था तो पाकिस्तान ने विश्व बैंक के समक्ष आपत्ति जताई। तुरत- फुरत वहां से टीम आई। जांच हुई और बांध की दीवार की ऊंचाई कम करना पड़ी। ऐसे में पानी कैसे रोकेंगे?
संधि का तकाजा है सिंधु पर बांध नहीं बना सकते
जम्मू-कश्मीर सरकार में बगलिहार पावर प्रोजेक्ट्स और वॉटर मैनेजमेंट से जुड़े रहे रिटायर्ड चीफ इंजीनियर बहूर अहमद चाट पूछते हैं कि पानी रोक लेते हैं, फिर कहां ले जाएंगे? हमारे पास पानी रोककर उसे स्टोर करने के लिए कोई जगह नहीं है। संधि के मुताबिक हम 11.80 लाख एकड़ फीट पानी स्टोर कर सकते हैं। 1962 में स्टोरेज साइट की जगह ढूंढ़ने के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू हुआ था। अभी तक उसकी डीपीआर बनकर सबमिट नहीं हो पाई। यहां से निकलने वाली किसी नदी पर बांध नहीं है। जो पावर प्रोजेक्ट बने हैं उसमें सिर्फ 10-12 मीटर ऊंची दीवार बनाई गई है, ताकि पानी को ऊपर से ले जाकर गिराया जा सके और बिजली बन सके। फिर भी यदि मान लिया जाए कि पानी रोकने की अनुमति मिल जाती है तो भी इसमें कम से कम 12 साल लगेंगे। इसमें 2 साल मौके पर रिसर्च कर रिपोर्ट सबमिट करने में लगेंगे। टोपोग्राफी सर्वे, ऊंचाई, जमीन अधिग्रहण और कम से कम 10 साल कॉन्ट्रैक्ट मिलने से निर्माण तक। हालांकि संधि के मुताबिक सिंधु नदी पर भारत बांध नहीं बना सकता।
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बिजली से हो सकती है 50 हजार करोड़ की आय
आर्थिक विश्लेषक और कश्मीर के मुद्दों को लेकर 25 साल से लड़ रहे प्रो. निसार अली कहते हैं यदि इन नदियों पर बिजली बनाने की अनुमति दी जाए तो 24 हजार मेगावाट बिजली सालाना उत्पादन हो सकता है और 50 हजार करोड़ की आय हो सकती है, पर संधि के कारण ही हमें अनुमति नहीं मिल रही है। केंद्र सरकार को रिपोर्ट सौंपी जा चुकी है, लेकिन कोई हल नहीं निकला।
(साभार- नई दुनिया)