जाने क्यों बन गया, मां का दूध जहर
शिशु के लिए मां का दूध सवरेत्तम आहार माना गया है और इससे बड़ी कोई औषधि नहीं होती, लेकिन कीटनाशकों के प्रभाव से मां का यही दूध अब जहरीला होता जा रहा है। विषाक्त हुए दूध में कीटनाशकों की मात्र 1966 के मुकाबले 2008 तक 17 गुणा बढ़ चुकी थी।
सिरसा (सुधीर आर्य)। शिशु के लिए मां का दूध सर्वोत्तम आहार माना गया है और इससे बड़ी कोई औषधि नहीं होती, लेकिन कीटनाशकों के प्रभाव से मां का यही दूध अब जहरीला होता जा रहा है। विषाक्त हुए दूध में कीटनाशकों की मात्र 1966 के मुकाबले 2008 तक 17 गुणा बढ़ चुकी थी। वर्तमान में स्थिति और बुरी है।
यह खुलासा हुआ है चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय सिरसा के पर्यावरण विज्ञान विभाग द्वारा कराए गए शोध में। इसके मुताबिक फसलों में उपयोग किए जाने वाले कीटनाशकों का प्रभाव मां के दूध पर अत्याधिक प्रभाव डाल रहा है। शहरी महिलाओं की अपेक्षा ग्रामीण महिलाओं के दूध में यह मात्र अधिक पाई गई है।
2007-08 में शुरू हुए शोध में सिरसा की 40 महिलाओं व 80 बच्चों को शामिल किया गया। सभी बच्चों की उम्र 8 से 12 माह व दो से दस साल के बीच रही। डब्ल्यूएचओ के मापदंडों के अनुसार मां के दूध में कीटनाशक की अधिकतम मात्र 0.05 एमजी प्रति किलोग्राम हो सकती है लेकिन सिरसा में यह मात्र 0.120 एमजी प्रति किलो पाई गई है।
बच्चे पर बुरा प्रभाव : पर्यावरण विज्ञान विभाग की प्रभारी डॉ. रानी देवी बताती हैं कि पांच साल से अधिक समय तक मां के दूध पर शोध किया गया जो गत वर्ष पूरा हो चुका है। शोध में मां के दूध में अधिक मात्र में पेस्टीसाइड पाया गया जो खतरनाक है।
इससे न्यू बोर्न सेल बनने की रफ्तार धीमी होती है। बच्चे की ग्रोथ पर असर पड़ता है और जिस गति से शरीर को विकास करना चाहिए, वो नहीं हो पाता। पेस्टीसाइड का सबसे अधिक नुकसान मस्तिष्क पर होता है। ब्रेन का कोई भी हिस्सा कम काम करने लगता है और शरीर पर दिमाग का नियंत्रण कमजोर होता जाता है।
बड़ों पर भी प्रभाव : कीटनाशक स्वस्थ आदमी को भी नुकसान पहुंचाते हंै। शरीर में अधिक मात्र में कीटनाशक जाएंगे तो स्टेमिना कम होगा, सहन शक्ति कम होगी और गुस्सा जल्द आएगा। स्मरण शक्ति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है और समझने की शक्ति कम होती है। आंखें कमजोर हो जाती हैं और एक स्टेज के बाद कैंसर का भी खतरा पैदा हो जाता है। लीवर पर प्रभाव पड़ता है और चमड़ी रोग भी हो सकता है।
घर में पैदा करें सब्जी : डॉ. रानी देवी का कहना है कि कपास और धान उत्पादक क्षेत्र में पेस्टीसाइड की मात्र अधिक है जो खाद्य वस्तुओं के माध्यम से हमारे शरीर में जा रही है। वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए बदलाव अचानक नजर नहीं आता इसीलिए हर परिवार बाहरी सब्जियों पर निर्भर न रहकर अपने घर में सब्जियां पैदा करे। घर के आंगन में या फिर छत पर इतनी सब्जी पैदा कर सकते हैं कि बाहर से नहीं खरीदनी पड़े। घर की सब्जी में पेस्टीसाइड नहीं होगा।