अपने विरोध में बड़ा गुट नहीं बनने देगी भाजपा
जीत की हैट्रिक और जोश अभी भाजपा के होश पर हावी नहीं हो सका है। पार्टी को इसका पूरा अहसास है कि चतुष्कोणीय और पंचकोणीय मुकाबले में 31-33 फीसद वोट ने ही उसे बहुमत तक लाकर खड़ा कर दिया है। जीत का सिलसिला कायम रखना है तो भाजपा विरोधी खेमे का बंटा होना भी जरूरी है और अपने मतदाताओं को समेटे रखना भी।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। जीत की हैट्रिक और जोश अभी भाजपा के होश पर हावी नहीं हो सका है। पार्टी को इसका पूरा अहसास है कि चतुष्कोणीय और पंचकोणीय मुकाबले में 31-33 फीसद वोट ने ही उसे बहुमत तक लाकर खड़ा कर दिया है। जीत का सिलसिला कायम रखना है तो भाजपा विरोधी खेमे का बंटा होना भी जरूरी है और अपने मतदाताओं को समेटे रखना भी। सदस्यता अभियान में भाजपा ने मतदाताओं को समेटने की कवायद शुरू कर दी है। वहीं आगामी चुनावों में छोटे दलों को साथ लाकर भाजपा विरोधी बड़ा खेमा बनने से भी रोका जा सकता है। हालांकि यह सबकुछ पार्टी अपनी शर्तो पर करेगी।
लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा और महाराष्ट्र भी भाजपा की झोली में है। पार्टी को आशातीत सफलता मिली। एक नवंबर से भाजपा जिस तरह सदस्यता अभियान शुरू कर रही है उसका साफ संकेत है कि वह जीत से संतुष्ट होकर चुप बैठने के बजाय समय रहते अपना वोट दुरुस्त कर लेना चाहती है। एसएमएस के जरिये बड़ी संख्या में सदस्य बनेंगे और कार्यकर्ता उन्हें पार्टी के सांचे में ढाल लेंगे। सदस्यता अभियान सीधे बूथों से जुड़ेगा। जाहिर है कि पार्टी सधी हुई रणनीति के साथ सदस्यता अभियान चलाएगी।
दूसरे स्तर पर चुनावी रणनीति और गठबंधन को साधा जाएगा। दरअसल यह सचाई भी पार्टी से छिपी नहीं है कि ऐतिहासिक जीत में भी लगभग एक तिहाई वोट ही मिले थे। वोटों के बिखराव ने भी अपनी भूमिका निभाई थी। अब तक पार्टी जहां भी लड़ी वहां मुकाबले चतुष्कोणीय या पंचकोणीय थे। जम्मू-कश्मीर में यूं तो त्रिकोणीय मुकाबला तय है लेकिन वह चतुष्कोणीय भी हो सकता है। पार्टी चाहेगी कि झारखंड और उसके बाद आने वाले बिहार और अन्य चुनावों में भी मुकाबला कुछ ऐसा ही हो। संभव है कि भाजपा इन राज्यों में छोटे दलों को अपना पाले में खड़ा करे। बिहार में पहले ही दो छोटे दल साथ हैं। झारखंड में झाविमो को साथ लाने की कोशिश हो रही है। ध्यान रहे कि बिहार में राजद, जदयू और कांग्रेस इकट्ठी हुई है तो दूसरी ओर टूटा दिल लेकर समाजवादी भी एक मंच पर दिखने लगे हैं।