बंगाल में राष्ट्रवाद और धर्म की पटरी पर दौड़ेगी भाजपा
जेएनयू के बहाने ही सही, महिषासुर के महिमामंडन पर हो रही चर्चा का असर पश्चिम बंगाल चुनाव तक दिख सकता है। राष्ट्रवाद और धर्म की पटरी को दुरुस्त कर भाजपा वाम दलों को चुनावी मैदान में घसीटने की तैयारी में है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। जेएनयू के बहाने ही सही, महिषासुर के महिमामंडन पर हो रही चर्चा का असर पश्चिम बंगाल चुनाव तक दिख सकता है। राष्ट्रवाद और धर्म की पटरी को दुरुस्त कर भाजपा वाम दलों को चुनावी मैदान में घसीटने की तैयारी में है। कांग्रेस और वामदलों के बीच प्रत्यक्ष या परोक्ष गठबंधन हुआ, तो कांग्रेस को भी कठघरे में खड़ा किया जाएगा। लिहाजा कांग्रेस पहले से ही बचाव की मुद्रा में है।
पिछले दो दिनों से संसद में महिषासुर शहादत दिवस को लेकर चर्चा छिड़ी है। जेएनयू प्रकरण पर चर्चा के दौरान मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ने कैंपस के वाम संगठनों के बारे में कहा था कि वह महिषासुर शहादत दिवस मनाते हैं और मां दुर्गा को कलंकित करते हैं। यह सोची समझी रणनीति का हिस्सा हो या न हो, लेकिन इशारा साफ है। इसी बहाने वाम दलों को धर्म की कसौटी पर खड़ा कर दिया गया है। वाम दलों की ओर से अभी तक इस बाबत कोई सफाई नहीं आई है। हालांकि, माकपा नेता सीताराम येचुरी का मानना है कि यह संस्कृति का हिस्सा है। लेकिन कांग्रेस थोड़ी असहज है।
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यही कारण है कि राज्यसभा में कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा ने तत्काल आपत्ति जताते हुए इसे ईशनिंदा करार दिया था। उन्होंने इसे रिकार्ड से हटाने की मांग की थी। सूत्रों के अनुसार, पश्चिम बंगाल में हिंदुत्व के नरमपंथी चेहरे को आगे रखकर चल रही भाजपा की चुनावी रणनीति में अब वाम संगठनों का 'महिषासुर प्रकरण' भी शामिल हो सकता है। गौरतलब है कि राष्ट्रवाद और हिंदुत्व को भाजपा की पिच माना जाता है। पिछले दिनों आए उप चुनाव के नतीजों में यह दिखा भी था कि भाजपा को थोड़ी बढ़त मिली है। पश्चिम बंगाल में जनता के रुख से भाजपा भी अवगत है। उसे पता है कि वहां के लोग धर्म को लेकर बहुत उग्र नहीं हैं। लेकिन यह भी सच्चाई है कि मां दुर्गा को लेकर प्रदेश में गहरी भावनाएं हैं।
गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल के खिलाफ कांग्रेस और वाम दल गठबंधन की राह पर हैं। लेकिन यह भी सच्चाई है कि वाम दल जहां पश्चिम बंगाल और केरल तक सीमित हैं, वहीं कांग्रेस और भाजपा का सामना कई राज्यों में होता है। कांग्रेस भी नहीं चाहेगी कि जेएनयू के बहाने राष्ट्रवाद पर मुखर भाजपा को उसके खिलाफ धर्म से जुड़ा कोई मुद्दा मिले। दूसरी तरफ, तृणमूल ने इस मुद्दे से थोड़ी दूरी बना ली है।