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भाजपा-शिवसेना में खींचतान जारी, मोदी को साधने में जुटे उद्धव

महाराष्ट्र में पुराने साथी शिवसेना के रुख ने भाजपा के लिए मुश्किल पैदा कर दी है। सीटों को लेकर दोनों पक्षों का अड़ियल रवैया जहां टूट की ओर इशारा करने लगा है वहीं इसे बचाने की बड़ी जिम्मेदारी सेना ने भाजपा पर डाल दी है। दोनों दलों में मुंबई से दिल्ली तक चल रही बैठकों के दौर के बीच यूं तो भाजपा का एक धड़ा अकेले ही चलने के पक्ष में है लेकिन पार्टी थोड़ा मोलभाव कर गठबंधन बचाने की आखिरी कोशिश कर रही है। अगले एक-दो दिनों में और गहन वार्ता के जरिये शिवसेना को नरम कर

By Edited By: Published: Sun, 21 Sep 2014 09:02 PM (IST)Updated: Mon, 22 Sep 2014 09:04 AM (IST)
भाजपा-शिवसेना में खींचतान जारी, मोदी को साधने में जुटे उद्धव

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। महाराष्ट्र में पुराने साथी शिवसेना के रुख ने भाजपा के लिए मुश्किल पैदा कर दी है। सीटों को लेकर दोनों पक्षों का अड़ियल रवैया जहां टूट की ओर इशारा करने लगा है वहीं इसे बचाने की बड़ी जिम्मेदारी सेना ने भाजपा पर डाल दी है। दोनों दलों में मुंबई से दिल्ली तक चल रही बैठकों के दौर के बीच यूं तो भाजपा का एक धड़ा अकेले ही चलने के पक्ष में है लेकिन पार्टी थोड़ा मोलभाव कर गठबंधन बचाने की आखिरी कोशिश कर रही है। अगले एक-दो दिनों में और गहन वार्ता के जरिये शिवसेना को नरम करने और पिछली बार के मुकाबले सात से दस सीटें ज्यादा लेने की कोशिश होगी। वरना 'आत्मसम्मान' के नाम पर 25 साल पुराना गठबंधन टूट भी सकता है।

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शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बातचीत की बजाय सार्वजनिक मंच से भाजपा पर दबाव बढ़ाने की कोशिश की तो भाजपा ने भी दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है। अकेले ही मैदान में उतरने तक की बात होने लगी है। भाजपा सूत्रों की मानें तो प्रदेश नेतृत्व ने केंद्रीय नेतृत्व को संकेत दिया है कि पार्टी अकेले चुनाव लड़कर भी 160 सीटें तक ला सकती है जो बहुमत से ऊपर होगा। रविवार को हुई शीर्ष नेताओं की बैठक में प्रदेश के नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह तक यह संदेश दे दिया है। दिल्ली पहुंचे प्रदेश के भाजपा नेता विनोद तावड़े और नेता विपक्ष एकनाथ खड़से ने भी सेना को याद दिलाया कि गठबंधन बरकरार रखना केवल भाजपा की जिम्मेदारी नहीं है। ऐसी 59 सीटें है जिसपर शिवसेना कभी नहीं जीत सकी पर सेना किसी भी कीमत में भाजपा के सामने झुकते हुए भी दिखना नहीं चाहती है। बड़ा मुद्दा मुख्यमंत्री पद का है। गौरतलब है कि शिवसेना के बार-बार के दावे के बावजूद भाजपा ने अब तक यह नहीं माना है कि मुख्यमंत्री उम्मीदवार उद्धव ठाकरे या सेना का कोई अन्य नेता होगा।

सेना की ओर से खुद मोदी को यह याद दिलाया जाने लगा है कि बाला साहेब ठाकरे उनके मुश्किल दौर में साथ खड़े थे। विचारधारा के लिहाज से भी शिवसेना-भाजपा के साथ खड़ी रही है। फिर मोलभाव क्यों?

गौरतलब है कि महाराष्ट्र में राजग पंद्रह साल बाद सत्ता में वापसी को लेकर आश्वस्त है, लेकिन इसी विश्वास ने बाधा भी खड़ी कर दी है। दरअसल सेना को इसका अहसास है कि लाख दावों के बावजूद मुख्यमंत्री पद तभी मिलेगा जब सबसे ज्यादा सीटें हों। पिछली बार शिवसेना 159 सीटों पर चुनाव लड़ी थी जबकि भाजपा को 119 सीटें मिली थी। सेना ने दोनों के 135-135 सीटों पर लड़ने का प्रस्ताव पहले ही खारिज चुकी है। बंद कमरे से बाहर आकर सार्वजनिक रूप से सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने स्पष्ट कर दिया है कि भाजपा को 119 से ज्यादा सीटें नहीं दी जाएंगी। अंतिम प्रस्ताव यह है कि 288 सीटों की विधानसभा के लिए सेना 151 पर लड़ेगी और 18 सीटें दूसरे छोटे गठबंधन साथियों को देगी।

यूं तो वार्ता का दौर जारी है, भाजपा ने महाराष्ट्र के लिए उम्मीदवार तय करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। बताते हैं कि पार्टी मुख्यालय में हुई केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में भाजपा ने सभी 288 सीटों पर चर्चा कर दबाव बढ़ाने की कोशिश की है। दिल्ली में केद्रीय चुनाव समिति की बैठक भी शुरू हो गई। माना जा रहा है कि सेना ने सात-दस सीटें और दे दी तो गठबंधन बरकरार रहेगा। पार्टी के एक नेता ने कहा- 'हमें सिर्फ सीटों की ही नहीं छवि की भी चिंता है। हरियाणा में कुलदीप बिश्नोई के साथ रिश्ता टूटने के बाद यह संदेश ठीक नहीं होगा कि भाजपा महाराष्ट्र में उस सहयोगी से भी संबंध तोड़ रही है जो न सिर्फ सबसे पुरानी है बल्कि विचारधारा के स्तर पर भी सबसे नजदीक है। बहरहाल, आत्मसम्मान से कोई समझौता नहीं होगा।' उधर उद्धव ठाकरे ने भी मुंबई स्थित अपने आवास मातोश्री पर 15 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों की सूची को अंतिम रूप देने के लिए सेना के जिलाध्यक्षों व स्थानीय नेताओं के साथ बैठक की है।

संभावना जताई जा रही है कि सोमवार तक अंतिम निर्णय हो जाएगा। शीर्ष स्तर पर बातचीत हो रही है। उद्धव सीधे मोदी को साधने की कोशिश में जुटे हैं। दरअसल, पिछले कुछ दिनों में हुई बैठकों में उद्वव खुद न आकर अपने पुत्र को भेजते रहे हैं।

पढ़ें: गठबंधन बचाने में जुटी भाजपा-शिवसेना

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