उत्तर प्रदेश की सियासी उठापटक पर भारतीय जनता पार्टी की पैनी नजर
भाजपा का मानना था कि मुस्लिम वोट बैंक काफी हद तक सपा के साथ रहेगी, ऐसे में जाति समीकरण को अपने पक्ष में कर मैदान जीता जा सकता है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली : सपा में मचे घमासान से लेकर उत्तर प्रदेश की हर छोटी-बड़ी राजनीतिक गतिविधियों पर भाजपा की पैनी नजर है। सार्वजनिक तौर पर भाजपा भले ही सपा के विवाद को तवज्जो नहीं दे रही है, लेकिन नई राजनीतिक परिस्थितियों में उप्र विधानसभा चुनाव को लेकर अपनी मौजूदा रणनीति पर फिर से विचार करने की जरूरत पूरी गंभीरता से महसूस कर रही है। भाजपा एक रणनीति के तहत बसपा को अभी तक अहम प्रतिद्वंदी नहीं मान रही थी। लेकिन सपा के बिखरते कुनबे का फायदा बसपा को मिलने की आशंका से वह सर्तक हो गई है।
एक सोची-समझी रणनीति के तहत भाजपा उत्तर प्रदेश में सपा को ही अपना प्रतिद्वंदी बता रही थी और परिवर्तन के नारे के साथ जनता के बीच जाने की तैयारी में थी। इसके लिए पांच नवंबर से प्रदेश में चार स्थानों से परिवर्तन यात्रा निकालने जा रही है। भाजपा का मानना था कि मुस्लिम वोट बैंक काफी हद तक सपा के साथ रहेगी, ऐसे में जाति समीकरण को अपने पक्ष में कर मैदान आसानी से जीता जा सकता है।
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दूसरी पार्टियों से विभिन्न जातियों के बड़े नेताओं को भाजपा में शामिल कराना इसी रणनीति का हिस्सा है। लेकिन सपा की अंदरूनी लड़ाई के कारण मुस्लिम वोट बैंक के बसपा के साथ एकजुट होने का खतरा बढ़ गया है। मुस्लिम वोट बैंक के एकजुट होने की स्थिति में मायावती को अपने छिटकते दलित वोट बैंक को जोड़े रखने में कामयाबी मिल सकती है। ऐसी स्थिति में भाजपा का चुनावी गणित गड़बड़ा सकता है।
खतरा सिर्फ बसपा की ओर से नहीं है। राष्ट्रीय लोकदल, जदयू और कांग्रेस उत्तर प्रदेश में नई राजनीतिक गठजोड़ की कोशिश में लगे हैं। कांग्रेस ने अखिलेश यादव का साथ देने का एलान कर इसका साफ संकेत भी दे दिया है। जाहिर है भाजपा को ऐसी हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना होगा। बदली परिस्थिति में भाजपा की नई रणनीति की झलक पांच नवंबर से शुरू होने जा रहे परिवर्तन यात्रा के दौरान देखने को मिल सकती है।