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तीन तलाक: सरकार को मिला शिवसेना का साथ, कहा- मुस्लिम महिलाओं को मिलेगी आजादी

शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में कहा है कि अगर केंद्र सरकार तीन तलाक पर रोक लगाने के लिए कानून लेकर आती है तो ये सराहनीय कदम होगा।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Published: Fri, 24 Nov 2017 02:54 PM (IST)Updated: Fri, 24 Nov 2017 03:38 PM (IST)
तीन तलाक: सरकार को मिला शिवसेना का साथ, कहा- मुस्लिम महिलाओं को मिलेगी आजादी
तीन तलाक: सरकार को मिला शिवसेना का साथ, कहा- मुस्लिम महिलाओं को मिलेगी आजादी

मुंबई, पीटीआई। तीन तलाक पर पाबंदी को लेकर शिवसेना ने सरकार की सराहना की है। शिवसेना ने कहा है कि अगर तीन तलाक पर पाबंदी को लेकर अगर सरकार इस शीतकालीन सत्र के दौरान कानून लेकर आती है तो इससे मुस्लिम महिलाओं को फायदा मिलेगा और वो हमेशा के लिए फ्री हो जाएंगी।

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तीन तलाक पर रोक लगाने के लिए कानून बनाने पर सरकार कर रही विचार 

दरअसल मोदी सरकार तीन तलाक पर रोक लगाने के लिए कानून बनाने पर विचार कर रही है। इस पर रोक लगाने के लिए सरकार शीतकालीन सत्र के दौरान विधेयक पेश कर सकती है। पिछले दिनों ही सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर रोक लगाते हुए सरकार को कानून बनाने की सलाह दी थी। 

सरकार के कदम को शिवसेना ने सराहा

इस मामले पर शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में कहा है कि अगर केंद्र सरकार तीन तलाक पर रोक लगाने के लिए कानून लेकर आती है तो ये सराहनीय कदम होगा और मुस्लिम महिलाएं हमेशा के लिए आजाद हो जाएंगी। सामना में आगे कहा गया है कि इस पंपरा को हमेशा के लिए बंद कर देना चाहिए और इसको अपराध की श्रेणी में डाला जाना चाहिए। 

इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के जजों ने कहा था कि यह पाप है, इसलिए सरकार को इसमें दखल देना चाहिए और तलाक के लिए कानून बनाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि तीन तलाक पर छह महीने का स्टे लगाया जाना चाहिए, इस बीच में सरकार कानून बना ले और अगर छह महीने में कानून नहीं बनता है तो स्टे जारी रहेगा। यह भी कहा गया था कि सभी पार्टियों को राजनीति को अलग रखकर इस मामले पर फैसला लेना चाहिए।

पर्सनल लॉ का टर्निंग प्वॉइंट

शायरा बानो बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और इससे जुड़े दूसरे मामलों (WP (C) No.118/2016) में 22 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में मुस्लिम पतियों द्वारा अपनी पत्नियों को तीन तलाक देने पर रोक लगा दी थी। देश के पर्सनल लॉज में यह फैसला वास्तव में एक टर्निंग पॉइंट है। यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को मिले समान अधिकार और समान सुरक्षा को कायम रखता है, भले ही व्यक्ति अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक।

इस फैसले के बाद अब महिलाओं को तलाक-ए-बिद्दत की व्यवस्था से छुटकारा पाने में काफी मदद मिलेगी। गौरतलब है कि इस एकतरफा व्यवस्था में पति बड़ी आसानी से तीन तलाक दे देते थे और महिलाएं कुछ नहीं कर पाती थीं।

मुस्लिम समुदाय ने उठाई पर्नल लॉ में सुधार की मांग

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद से ऐसा माना जा रहा था कि सरकार जल्द ही कानून बनाने की दिशा में आगे बढ़ सकती है। कानून बनने के बाद एक बार में तीन तलाक अपराध की श्रेणी में आ जाएगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि पर्सनल लॉ में सुधार की मांग मुस्लिम समुदाय की ओर से ही उठाई गई थी।

वैसे, सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले के बाद भी तलाक-ए-बिद्दत के द्वारा तलाक देने के कई मामले सामने आए हैं। मुस्लिम पतियों को सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की जानकारी नहीं होने के कारण ऐसा हो सकता है। इस तरह से तलाक देने पर दंडित किए जाने का प्रावधान नहीं होने के कारण भी ऐसा हो सकता है। मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा विरोध करने के बावजूद तलाक-ए-बिद्दत के जरिए तलाक देने के चलन में कोई कमी नहीं आई है।

वॉट्सएप और एसएमएस से हो रहे हैं तलाक

हाल ही में खबर आई थी कि एक बड़े शैक्षिक संस्थान से जुड़े एक शख्स ने वॉट्सएप और एसएमएस से अपनी पत्नी को तलाक दे दिया था। इसके बाद पत्नी ने पुलिस से इसकी शिकायत की थी। माना जा रहा है कि देश में ऐसे कई मामले हो सकते हैं, जो सामने नहीं आए हों।

कानून में प्रावधान नहीं होने से पुलिस है लाचार

मौजूदा कानून के तहत तलाक-ए-बिद्दत के पीड़ितों के पास पुलिस के पास जाकर शिकायत दर्ज कराने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं होता है क्योंकि मौलवी भी उनकी कोई मदद नहीं करते हैं। कानून में प्रावधान नहीं होने के कारण पुलिस भी ऐसे पतियों के खिलाफ कोई कड़ा कदम नहीं उठा पाती है।

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