बिहार चुनाव में अपनी ताकत दिखाएंगे कागजों पर मिटे गरीब
मुंगेर के गोगाचक निवासी मनोरमा देवी का महीनों से पंचायत और ब्लॉक के चक्कर लगा रही हैं। उनकी शिकायत है कि उनका राशन कार्ड नहीं बना है। पहले उनका बीपीएल का राशन कार्ड था लेकिन अब उनका सिर्फ एपीएल का राशन कार्ड बना है।
हरिकिशन शर्मा, भागलपुर। मुंगेर के गोगाचक निवासी मनोरमा देवी का महीनों से पंचायत और ब्लॉक के चक्कर लगा रही हैं। उनकी शिकायत है कि उनका राशन कार्ड नहीं बना है। पहले उनका बीपीएल का राशन कार्ड था लेकिन अब उनका सिर्फ एपीएल का राशन कार्ड बना है।
इसलिए जब भी वह राशन लेने जाती हैं तो राशन डीलर उन्हें केरोसिन देकर टरका देता है। उनके साथ ऐसा क्यों हो रहा है, उन्हें यह बात समझ नहीं आ रही है। मनोरमा से मिलती-जुलती कहानी जमुई जिले के पूर्णाखैरा गांव के मटुकधारी रविदास की है। रविदास का कहना है कि उनके गांव में इंदिरा आवास योजना का कोटा कम हो गया है। दरअसल यह कहानी सिर्फ मनोरमा या मटुकधारी की नहीं बल्कि बिहार के उन गरीबों की है जिनकी हालात भले ही न बदला हो लेकिन कागजों में जिन्हें गरीबी रेखा से ऊपर मान लिया गया है।
यह स्थिति पूर्ववर्ती योजना आयोग के जमाने में उस वक्त आई जब उसने दावा किया कि दो साल के भीतर बिहार में गरीबों की संख्या में रिकार्ड 1.85 करोड़ की कमी आई। हालांकि जमीनी स्तर पर लोगों को ये आंकड़े सच नहीं लगते हैं। उनका कहना है कि गरीबी में गुजर बसर कर रहे लोगों की जिन्दगी मंे कोई क्रांतिकारी बदलाव नहीं आया है। दरअसल योजना आयोग ने 19 मार्च 2011 को एक आधिकारिक विज्ञप्ति जारी की थी जिसमें कहा गया था कि बिहार में गरीबी की संख्या 5.43 करोड़ और गरीबी 53.5 प्रतिशत है। उस समय देश में सर्वाधिक गरीबी बिहार में ही थी। राज्य का हर दूसरा नागरिक गरीब था। लेकिन इसके दो साल बाद योजना आयोग ने 22 जुलाई 2013 को फिर एक प्रैस नोट जारी किया जिसमें बिहार में गरीबी मात्र 33.74 प्रतिशत और गरीबों की कुल संख्या 3.58 करोड़ होने की बात कही गई।
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इस तरह मात्र दो साल के भीतर ही बिहार में अचानक पौने दो करोड़ से अधिक गरीब कम हो गए। सरकारी आंकड़ों में महज दो साल में बिहार में गरीबी में लगभग 20 प्रतिशत कम हो गयी। संप्रग के नेताओं ने देश में गरीबी कम होने का सेहरा अपने सिर बांधना शुरु कर दिया, वहीं बिहार के नेता भी राज्य में गरीबी में रिकार्ड गिरावट का श्रेय लेने में पीछे नहीं रहे। दूसरी ओर मनोरमा और मटुकधारी की तकलीफें सुनकर पता चलता है कि सरकारी आंकड़ों में गरीबी के जोड़-घटाव से दूर जमीनी स्तर पर गरीबों के जीवन में कोई व्यापक बदलाव नहीं आया। यही वजह है कि रंगराजन समिति ने गरीबी में इस गिरावट का सच उजागर करते हुए जून 2014 मंे अपनी रिपोर्ट में कहा था कि बिहार में गरीबी 41.3 प्रतिशत है और गरीबों की संख्या 4.38 लाख है। इस तरह रंगराजन समिति की रिपोर्ट भी बिहार में गरीबी में सर्वाधिक गिरावट के दावों को झुठलाती है।
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