बिहार चुनाव: अभी रैली की चर्चा, टिकट की नहीं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की परिवर्तन रैली के लिए आने वाले नेता भागलपुर में भी टिकटार्थियों से परहेज करेंगे और टिकट की चर्चा पर दूरी बनाकर रखेंगे। भागलपुर प्रवास में संभावित टिकटार्थियों के 'आतिथ्य’ से भी अलग रहेंगे। हाल के दिनों में मुजïफ्फरपुर, गया व सहरसा में भाजपा की रैलियां हुई
भागलपुर, [राम प्रकाश गुप्ता]। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की परिवर्तन रैली के लिए आने वाले नेता भागलपुर में भी टिकटार्थियों से परहेज करेंगे और टिकट की चर्चा पर दूरी बनाकर रखेंगे। भागलपुर प्रवास में संभावित टिकटार्थियों के 'आतिथ्य’ से भी अलग रहेंगे। हाल के दिनों में मुजफ्फरपुर, गया व सहरसा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की रैलियां हुई हैं। वहां पहुंचे कई नेताओं ने तो स्थानीय टिकटार्थियों से टिकट के संबंध में कोई बात भी नहीं की है। इसी तर्ज पर बड़े नेता भागलपुर में भी काम करेंगे।
आतिथ्य स्वीकार करने के चक्कर में बदनामी का भी डर है। पार्टी के प्रदेश स्तर के एक नेता ने कहा कि विधानसभा चुनाव नजदीक है। न केवल सीटिंग सीट बल्कि दूसरी सीटों पर भी दावेदारों की लंबी फौज है। सीटिंग विधायकों की आलोचना कर अपनी रोटी सेंकने का काम भी चल रहा है। हर नेता अभी से ही अपनी टिकट सुनिश्चित करने में बड़े नेताओं की आवभगत करने में जुट गए हैं। लेकिन इनसे भी तेज पटना व दिल्ली के नेता हैं।
पार्टी की ओर से हिदायत भी है कि अभी सिर्फ मोदी की रैली को सफल बनाने के एजेंडे पर काम करना है। दूसरे किसी एजेंडे पर अभी बात करने का समय नहीं है। स्थानीय टिकटार्थी जो अभी से ही ख्याली पुलाव पका रहे हैं उन्हें निराशा हाथ लगने वाली है। स्थानीय कुछ नेता सुशील कुमार मोदी, नंद किशोर यादव, मंगल पांडेय, डॉ. सीपी ठाकुर, केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूढ़ी, राम कृपाल यादव, राधा मोहन सिंह से अपना तार जोड़ने में लगे हैं। कुछ ऐसे भी नेता हैं, जो केंद्रीय मंत्री व घटक दल के राम विलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा से पैरवी का जुगाड़ लगा रहे हैं। जातिगत समीकरण का हवाला देने का भी तर्क दिया जा रहा है। भागलपुर विधानसभा सीट पर अभी भाजपा का विधायक नहीं है, इसलिए यहां सबसे अधिक दावेदारी है। इस दावेदारी में केंद्र सरकार की सेवा में काम कर रहे युवा नेता अपनी नौकरी तक छोड़ने को तैयार हैं।
हाल ही में उन्होंने भाजपा के आनुषांगिक संगठन के कुछ नेताओं को अपना संदेश भी दिया है। टिकट के दावेदारों की अपनी गणित है। बैनर व होर्डिंग के माध्यम से शहरवासियों के बीच प्रचार तेज है। भले ही मोदी की रैली के नाम पर होर्डिंग्स में ही उपस्थिति दिखाई दे रही है। सोशल मीडिया को भी माध्यम बनाने से टिकटार्थी पीछे नहीं हैं। इस दौर में महिला नेत्रियां भी पीछे नहीं है। कई महिला नेत्री भी यह कहकर दावा कर रही हैं कि एक तिहाई आरक्षण के तहत कम से कम दो सीटें मिलनी चाहिए। आने वाले दिनों में कुछ पुराने (दिवंगत) नेताओं के रिश्तेदार भी टिकट चाहने वालों की सूची में शामिल होने वाले हैं।