हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच से योगी आदित्यनाथ सरकार को झटका
प्रदेश में शिया वक्फ बोर्ड में घोटाले की शिकायत के बाद प्रदेश सरकार ने छह सदस्यों को बोर्ड से हटा दिया था। इसके बाद हटाए गए सभी सदस्य हाई कोर्ट पहुंचे थे।
लखनऊ (जेएनएन)। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच से उत्तर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार को तगड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने शिया वक्फ बोर्ड के हटाए गए सभी छह सदस्यों को बहाल कर दिया है।
प्रदेश में शिया वक्फ बोर्ड में घोटाले की शिकायत के बाद प्रदेश सरकार ने छह सदस्यों को बोर्ड से हटा दिया था। इसके बाद हटाए गए सभी सदस्य हाई कोर्ट पहुंचे थे। इस फैसले से योगी सरकार को बड़ा झटका लगा है।
प्रदेश में योगी सरकार के आने के बाद शिया-सुन्नी वक्फ बोर्ड में होने वाली हेरा-फेरी सामने आई थी। जिसके बाद मंत्री मोहसिन रजा ने इस मामले को उठाया था। वक्फ मंत्री ने भी बोर्ड में हेरा-फेरी की बात कही और मामले में सीएम योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखा था।
राज्य सरकार के शिया वक्फ बोर्ड के नामित सदस्यों को हटाने के 16 जून के आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने तकनीकी आधार पर रद कर दिया है। हालांकि कोर्ट ने सरकार को फिर से नियमानुसार कार्यवाही शुरू करने की छूट दी है।
जस्टिस राजन राय व जस्टिस एनएन अग्निहोत्री की अवकाशकालीन पीठ ने यह आदेश आलिमा जैदी व अन्य सदस्यों की ओर से सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को मंजूर करते हुए कल यह आदेश पारित किया। प्रदेश सरकार ने 16 जून को बोर्ड के नामित सदस्य अख्तर हसन रिजवी, सैयद वली हैदर, आसफा जैदी, मौलाना अजीम हुसैन जैदी, आलिमा जैदी व नजमुल हसन रिजवी को वक्फ संपत्ति में धांधली व अनियमितताओं की शिकायत की वजह से हटा दिया था। इन सदस्यों को पिछली अखिलेश सरकार में नामित किया गया था।
यह भी पढ़ें: सीएम योगी अादित्यनाथ 2024 तक बन सकते हैं पीएम: रामभद्राचार्य
याचियों के वकील गौरव मेहरोत्रा का तर्क था कि चेयरमैन व सदस्यों को वक्फ अधिनियम-1995 की धारा 20 व 20-ए के तहत हटाया जा सकता है लेकिन, सरकार ने प्रक्रिया का पालन करते हुए सदस्यों को हटाने से पहले उन्हें सुनवाई का कोई मौका नहीं दिया।
यह भी पढ़ें: काशी के आर्यन बने यूपी टॉपर, नीट में ऑल इंडिया नौवीं रैंक
याचियों के अधिवक्ता ने कार्यकाल पूरा होने से पहले सदस्यों को हटाए जाने को असंवैधानिक ठहराते हुए कहा कि मुख्य सचिव के 20 मार्च के एक आदेश के आधार पर नामित सदस्यों को हटा दिया गया, जबकि इन सदस्यों का कार्यकाल निश्चित समय के लिए था। बिना कार्यकाल पूरा किये सदस्यों का हटाये जाना असंवैधानिक है।
उधर, सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता रमेश कुमार सिंह ने भी स्वीकार किया कि सदस्यों को हटाने से पहले उन्हें सुनवाई का मौका नहीं दिया गया।
यह भी पढ़ें: उत्तर प्रदेश में अगले हफ्ते दस्तक देगा मॉनसून
अपर महाधिवक्ता ने फिर से याचियों के खिलाफ नियमानुसार कार्यवाही शुरू करने की अनुमति दिए जाने का आग्रह इस तर्क के साथ किया कि याचियों के खिलाफ गंभीर अनियमितता का मामला है और सरकार के पास पर्याप्त सुबूत भी हैं। मामले पर विचार करने के बाद बेंच ने 16 जून का आदेश तो रद कर दिया, लेकिन सरकार को फिर से कार्यवाही को नियमानुसार आगे बढ़ाने की छूट भी दे दी। इन सभी को सीएम के आदेश के बाद हटाया गया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के बाद इन सभी की बोर्ड में वापसी होनी तय मानी जा रही है।