वैज्ञानिक ने 'जलचर' की तरह जानी राइन की पीड़ा
हमारे देश में भले ही वैज्ञानिक धन की कमी का रोना रोते हैं, लेकिन जर्मनी के एक वैज्ञानिक ने राइन नदी पर शोध की खातिर एक 'जलचर' की तरह अनूठी यात्रा की। यह वैज्ञानिक जल के नमूने लेने और अपने शोध के लिए पैसा जुटाने की खातिर एक 'जलचर' की
हरिकिशन शर्मा, हैम्बर्ग (जर्मनी): हमारे देश में भले ही वैज्ञानिक धन की कमी का रोना रोते हैं, लेकिन जर्मनी के एक वैज्ञानिक ने राइन नदी पर शोध की खातिर एक 'जलचर' की तरह अनूठी यात्रा की। यह वैज्ञानिक जल के नमूने लेने और अपने शोध के लिए पैसा जुटाने की खातिर एक 'जलचर' की तरह लगातार 28 दिन राइन में तैरा।
वह देखना चाहता था कि राइन कितनी साफ है और इसमें जो सूक्ष्म प्रदूषक तत्व हैं उन्हें कैसे रोका जा सकता है? इस वैज्ञानिक का नाम है डा. ऐंड्रियास फाथ, जिन्होंने राइन के उद्गम से मुहाने तक 1,231 किलोमीटर का साहसिक सफर तैरकर पूरा किया।
दक्षिण-पूर्वी स्विटजरलैंड में ग्रौबुंदेन आल्प्स से 28 जुलाई, 2014 को शुरू हुई अपनी यात्रा को फाथ ने 'स्विम फॉर साइंस' नाम दिया। वह 24 अगस्त को नॉर्थ सी में राइन के मुहाने 'हुक ऑफ हॉलेंड' पर पहुंचे। इस दौरान उन्होंने जगह-जगह नदी जल के नमूने लिए। साथ ही उनके स्विमसूट में एक खास चिप लगा था, जो राइन में मौजूद पैथोजेन की तरह के 150 माइक्रो-आर्गनिज्म का परीक्षण कर रहा था।
जर्मनी की फुर्टवागेन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर 50 वर्षीय फाथ की कहानी बहुत दिलचस्प है। वह औद्योगिक इकाइयों से नदियों में होने वाले प्रदूषण को रोकने की तकनीक पर शोध कर रहे हैं। फाथ ने 'दैनिक जागरण' को बताया कि उन्होंने 2011 में एक इलेक्ट्रो केमिकल रिएक्टर विकसित किया, जो औद्योगिक इकाइयों के गंदे पानी में मौजूद टॉक्सिक पदार्थों को निकालने में प्रभावी है।
उन्होंने इसी तकनीक से अन्य प्रदूषकों को साफ करने की तकनीक खोजने की योजना बनाई, लेकिन इसके लिए उनके पास धन नहीं था। उन्होंने कई बार सरकार से धन मांगा लेकिन नहीं मिला। आखिरकार उन्होंने तय किया कि क्यों न नदी में तैरकर शोध के लिए नमूने लिए जाएं और इस यात्रा को प्रचारित कर फंड भी जुटाया जाए।
राइन के किनारे स्पेअयर काउंटी में जन्मे फाथ ने आठ साल की उम्र से ही तैराकी शुरू कर दी थी और कई प्रतिस्पर्धाओं में भाग लिया। इससे उन्हें तैरकर राइन की यात्रा करने में मदद मिली। राइन में तैरते समय फाथ ने अपनी बाईं टांग पर एक विशेष सेंपलर पहना हुआ था, जो पानी के नमूने ले रहा था। इनका विश्लेषण करने पर राइन के जल में 128 रसायन घुले मिले। इनमें एंटीबायोटिक, कीटनाशक, स्वीटनर, औद्योगिक रसायन, दवाएं तथा विभिन्न प्रकार की सूक्ष्म प्लास्टिक शामिल थी।
फाथ कहते हैं कि 1980 की तुलना में राइन आज काफी हद तक साफ है, लेकिन सुधार की गुंजाइश है। अस्पतालों, उद्योगों और घरों से बेहद सूक्ष्म, प्रदूषक तत्व सीवेज में आ रहे हैं। इन्हें रोकने के लिए मौजूदा सीवेज प्रणाली को उन्नत बनाना होगा।
फाथ ने राइन में मिले रासायनिक प्रदूषकों को 'ब्लॉकबस्टर' नाम दिया है। इसमें गैडोलियम और डिक्लोफेनाक जैसी दवाएं हैं, जिनका व्यापक इस्तेमाल होता है। ये मछलियों के लिए घातक हैं। फाथ भारतीय नदियों को लेकर भी जिज्ञासु हैं। वह गंगा पर शोध के इच्छुक हैं। फाथ की तमन्ना एक दिन राइन की तरह गंगा में तैरने की है।