आला हजरत पर कोर्ट का फैसला बरेली दरगाह को नामंजूर, खानकाह को कुबूल
आला हजरत दरगाह पर आए कोर्ट के फैसले को किसी ने सही ठहराया है तो कोई इसकी मुखालफत कर रहा है। इस मामले में बरेली की दरगाह और खानकाह में भी दो राय है।
बरेली (जागरण संवाददाता)। मुंबई हाईकोर्ट के दरगाह हाजी अली में महिलाओं को जाने की इजाजत देने पर शहर की दो प्रमुख दरगाह और खानकाह के अलग मत सामने आए हैं। सुन्नी बरेलवी मुसलमानों के मरकज दरगाह आला हजरत के सज्जादानशीन ने एलान किया है कि मामला सुप्रीम कोर्ट जाता है तो वहां बहस के लिए अपना वकील खड़ा करेंगे। उधर, खानकाह नियाजिया ने महिलाओं के दरगाह व खानकाह पर जाने को सही ठहराया है।
दरगाह आला हजरत के सज्जादानशीन का कहना है कि शरीयत महिलाओं कोदरगाह आने की इजाजत नहीं देती। इसके लिए आला हजरत ने फतवा भी जारी किया है। महिलाओं की हाजिरी को नाजायज करार दिया है। आला हजरत ने इस पर किताब भी लिखी है, जिसमें दरगाह आने से रोकने की वजहें भी साफ की हैं। इस सिलसिले में अल्लाह के रसूल की हदीस भी है। सज्जादानशीन कहते हैं कि पर्दा और पब्लिक पैलेस पर जहां कि बहुत ज्यादा भीड़ होती है, महिलाओं का जाना सही नहीं है।
खानकाह को फैसला कुबूल
दूसरी तरफ ख्वाजा गरीब के रूहानी जानशीन कुतबे आलम हजरत शाह नियाज अहमद रहमतुल्ला अलैह की खानकाह नियाजिया में महिलाओं के आने पर कोई रोक नहीं है। खानकाह के प्रबंधक कहते हैं कि महिलाएं खानकाह पर अदब व एहतराम के साथ आ सकती हैं। किसी तरह की कोई रोक नहीं लगाई गई है। न ही खानकाह व दरगाह पर आने से महिलाओं को रोकना चाहिए। महिला-पुरुष का भेदभाव होना भी नहीं चाहिए।
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किसने क्या कहा
मुस्लिम वकील हाजी अली की दरगाह से जुड़े मामले को सुप्रीम कोर्ट में मजबूती से उठाएं। इस मामले में दरगाह भी अपने अधिवक्ता अब्दुल रशीद को खड़ा करेगी। साथ ही मां और बहनों से भी अपील है कि वे शरीयत का एहतराम करते हुए दरगाहों पर नहीं जाएं।
-मौलाना अहसन रजा कादरी, सज्जादानशीन, दरगाह आला हजरत
मजहब और मुल्क का कानून अलग। यह दारुल हरम है, जहां शरई कानून लागू नहीं होता। लिहाजा यहां का कानून मानना चाहिए। जहां तक महिलाओं को दरगाह पर आने से रोक का सवाल है तो ऐसा नापाकी की वजह से कुछ जलाली बुजुर्गो ने मना किया था। उसे नजीर नहीं बनाया जा सकता।
- शब्बू मियां नियाजी, प्रबंधक, खानकाह नियाजिया