अरुणा के गुनहगार ने कहा, मेरे पापों की सजा परिवार को न दो
जिंदगी के 67 में 42 साल कोमा में गुजार देने वाली अरुणा शानबाग और उनसे जुड़े लोगों की पहाड़ जैसी पीड़ा के सामने उनके गुनहगार का प्रायश्चित कोई सहानुभूति नहीं पैदा कर पाता। शनिवार को गांव से गायब हुआ आरोपी सोहनलाल रविवार को फिर वापस अपने गांव पारपा पहुंच गया।
ओमपाल राणा, हापुड़। जिंदगी के 67 में 42 साल कोमा में गुजार देने वाली अरुणा शानबाग और उनसे जुड़े लोगों की पहाड़ जैसी पीड़ा के सामने उनके गुनहगार का प्रायश्चित कोई सहानुभूति नहीं पैदा कर पाता। शनिवार को गांव से गायब हुआ आरोपी सोहनलाल रविवार को फिर वापस अपने गांव पारपा पहुंच गया। जागरण संवाददाता ने पूछा कि कहां गए थे तो बोला कि टीवी वाले ले गए थे, वहां से एक रिश्तेदार के यहां चला गया था।
अरुणा का जिक्र आते ही सोहनलाल हाथ जोड़ देता है और कहता है कि भगवान उसकी आत्मा को शांति दे। मैं अपने पापों की सजा भुगत रहा हूं, लेकिन मेरी सजा मेरे परिवार को न मिले। आज इतने दयनीय दिख रहे मन में 42 साल पहले ऐसी क्रूरता क्यों थी? इस सवाल पर कहता है मुझसे गलती हुई, उसकी सजा भी काट चुका हूं। फिर सोहनलाल की आवाज में थोड़ा तनाव आता है और वो सफाई पेश करने लगता है।
कहता है, मेरे बारे में कही जा रही सारी बातें सही नहीं हैं। जैसे मुझ पर गलत काम और अस्पताल में जाकर दोबारा अरुणा को मारने की कोशिश करने की बात झूठ है। उसने बताया कि वह मुंबई के किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल में सफाई कर्मचारी था। अरुणा वहीं नर्स थीं। साफ-सफाई को लेकर उससे झगड़ा होता रहता था। वह चोरी का आरोप भी लगाती थीं। एक दिन विवाद बढ़ने पर मैंने उसे धक्का दे दिया और उसके बाद यह सब हो गया। अब मेरा परिवार मेरे किए का दंश झेल रहा है।
अगर मेरे ठेकेदार को पता चल गया तो... सोहनलाल के परिवार मेंं उसके बेटे रविंद्र, कृष्ण, बेटी आरती, पुत्रवधु पूनम व कविता हैं। बेटे कहते हैं कि सोहनलाल ने उन्हें इस प्रकरण के बारे में कभी नहीं बताया, लेकिन पता तो चल ही जाता है। गांव में सोहनलाल की आम शोहरत ठीक है। लोग उसे 70 साल की उम्र में भी परिवार के लिए मजदूरी करने वाले ऐसे इंसान के रूप में देखते हैं, जो परिवार का पेट पालने के लिए रोज स्टील का टिफिन लेकर दादरी जाता है।