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ऑक्सीजन की चिंता दूर, अब कार्बन डाइऑक्साइड से तैयार होगी शुद्ध हवा

ग्लोबल वॉर्मिंग और वायु प्रदूषण से लड़ने की दिशा में अमेरिकी वैज्ञानिकों को अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल हुई है।

By Digpal SinghEdited By: Published: Thu, 27 Apr 2017 03:38 PM (IST)Updated: Thu, 27 Apr 2017 03:49 PM (IST)
ऑक्सीजन की चिंता दूर, अब कार्बन डाइऑक्साइड से तैयार होगी शुद्ध हवा
ऑक्सीजन की चिंता दूर, अब कार्बन डाइऑक्साइड से तैयार होगी शुद्ध हवा

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क/जेएनएन]। धरती पर जीवन के लिए जितनी जरूरी ऑक्सीजन है, उतनी ही कार्बन डाइऑक्साइड भी है। ऑक्सीजन के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती, इसी तरह कार्बन डाइऑक्साइड भी धरती पर जीवन के लिए जरूरी है। लेकिन कार्बन डाइऑक्साइड को सांस के साथ अंदर नहीं लेकर जा सकते। ऑक्सीजन कम होने और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ने पर सांस लेना भी दूभर हो सकता है। इसलिए इसकी मात्रा को नियंत्रित रखने के लिए दुनियाभर के पर्यावरणविद् चिंतित हैं।

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इसी चिंता को दूर करने में अमेरिकी वैज्ञानिकों को एक सफलता हासिल हुई है। आईए जानें आखिर कैसे कार्बन डाइऑक्साइड को साफ किया जा सकता है।

कार्बन डाइऑक्साइड से तैयार होगी शुद्ध हवा

ग्लोबल वॉर्मिंग और वायु प्रदूषण से लड़ने की दिशा में अमेरिकी वैज्ञानिकों को अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल हुई है। यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट्रल फ्लोरिडा के शोधकर्ताओं ने कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण से वातावरण की कार्बन डाइऑक्साइड को जैविक पदार्थ में बदलने में सफलता हासिल की है। इस प्रक्रिया में जैविक पदार्थ और शुद्ध हवा उन्मुक्त होते हैं। इस जैविक पदार्थ का इस्तेमाल बिजली पैदा करने में किया जा सकता है।

पर्यावरण को फायदा 

- संश्लेषण के लिए वैज्ञानिक मेटल ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क का इस्तेमाल करते हैं। 

- मेटल ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क आयन का समूह है, जिससे रसायनिक प्रक्रिया शुरू की जाती है।

- प्रक्रिया के जरिए कार्बन डाइऑक्साइड को जैविक पदार्थ में तोड़ दिया जाता है।

- रासायनिक प्रक्रिया कार्बन डाइऑक्साइड को फारमेट और फॉर्माइड्स में तब्दील कर देती है। सूर्य की रोशनी के अभाव में इनका इस्तेमाल कर बिजली पैदा की जा सकती है।

- इसी के साथ ऑक्सीजन अवमुक्त होती है

प्रकाश संश्लेषण 

इसके जरिए पेड़-पौधे सूर्य की रौशनी का इस्तेमाल कर अपना भोजन तैयार करते हैं। इस प्रक्रिया के लिए वह ईंधन के तौर पर पानी और कार्बन डाइऑक्साइड का इस्तेमाल करते हैं। प्रक्रिया के दौरान वे वातावरण में ऑक्सीजन छोड़ते हैं। वैज्ञानिकों के इस प्रयोग में अंतर सिर्फ इतना है कि यहां भोजन की जगह जैविक पदार्थ बनते हैं। 

ग्लोबल वॉर्मिंग की काट

कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड जैसी गैसों को ग्रीन हाउस गैसों के नाम से जाना जाता है। इन गैसों के चलते सूर्य की इंफ्रा रेड किरणें धरती पर आ तो जाती हैं पर निकल नहीं पाती। इससे धरती का औसत तापमान बढ़ता है, जिससे गर्मी बढ़ती है। इसी को ग्लोबल वॉर्मिंग कहते हैं। इसी के चलते धरती का मौसम चक्र गड़बड़ा रहा है। तमाम प्रतिकूल प्रभाव दिख रहे हैं। 

साल 2015 में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन

82 फीसद कार्बन डाईऑक्साइड

10 फीसद मीथेन

5 फीसद नाइट्रस ऑक्साइड

3 फीसद फोरिनेटेड गैसें


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