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जानें, एयर पॉकेट ने कैसे 6 दिन तक बर्फ में बचाई हनुमनथप्पा की जान

25 फीट बर्फ के नीचे छह दिनों तक जिंदा बचे रहने को किसी चमत्कार से कम नहीं कहा जा सकता है। लेकिन एक तरकीब है जिसकी वजह से हनुमनथप्पा इतने दिनों तक जिंदा रह सके। उसका नाम है बर्फ में एयर पॉकेट का निर्माण्‍ करना। जानें इसके बारें में :-

By Kamal VermaEdited By: Published: Thu, 11 Feb 2016 10:42 AM (IST)Updated: Thu, 11 Feb 2016 11:02 AM (IST)
जानें, एयर पॉकेट ने कैसे 6 दिन तक बर्फ में बचाई हनुमनथप्पा की जान

नई दिल्ली। विशेषज्ञों के मुताबिक हिमस्खलन में फंसे किसी भी व्यक्ति के लिए घटना के समय परिस्थितियों के अनुसार कई एहतियाती कदम हो सकते हैं, लेकिन बर्फ में पूरी तरह दब जाने के समय एयर पॉकेट का निर्माण सबसे कारगर तरीका हो सकता है। इसके लिए व्यक्ति को निम्नलिखित कदम उठाने होते हैं। इसी तरह के एयर पॉकेट ने छह दिनों तक बर्फ में 25 फीट नीचे दबे जवान हनुमनथप्पा को जिंदा रखा।

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क्या होता है एयर पॉकेट

हिमस्खलन के समय जब भारी मात्रा में बर्फ किसी व्यक्ति पर गिरती है तो गिरने के तुरंत बाद कंक्रीट की तरह वज्र हो जाती है। लेकिन कई बार गिरने के क्रम में व्यक्ति के मुंह- नाक के पास स्वाभाविक रूप से या व्यक्ति की होशियारी से एक छोटा सा खाली स्थानबन जाता है। इसे ही एयर पॉकेट कहते हैं।

हिमस्खलन में फंसने पर बचाव की तरकीब

जैसे ही कोई बर्फ के अंदर दबता है तो उसे अपने बाएं हाथ को सीधा ऊपर रखना चाहिए। जिससे आसानी से चिह्नित कर बचाव हो सके। दाएं हाथ से मुंह के पास की बर्फ को हटाकर एक खाली स्थान शीघ्र बनाने की कोशिश करनी चाहिए। देर होने पर यह बर्फ कंक्रीट सरीखी सख्त हो जाती है तब शरीर के किसी अंग को हिलाना भी बेहद मुश्किल होता है। यह खाली स्थान जीवन रक्षक चैंबर की तरह होता है। एक छोटे से स्थान में भी इतनी हवा होती है कि व्यक्ति 30 मिनट तक आराम से सांस ले सके।

अब व्यक्ति को इस कम वायु के अधिकतम इस्तेमाल के बारे में सोचना चाहिए। बर्फ के सख्त होने से पहले एक लंबी सांस लेकर उसे रोक लें। इससे आपका सीना फैलेगा जिससे बर्फ के सख्त होने की स्थिति में भी सांस लेने की जगह मिलती है। अनमोल सांसों को बर्फ तोड़ने में जाया नहीं करना चाहिए। निढाल पड़े रहकर कोई भी ज्यादा देर तक सांसें बरकरार रख सकता है।

मौत को मात

ऑस्ट्रिया की यूनिवर्सिटी ऑफ इंसब्रक के एक अध्ययन के मुताबिक हिमस्खलन में फंसे व्यक्ति को अगर पहले 15 मिनट में निकाला जाता है तो उसके जीवित बचने की उम्मीद 92 फीसद होती है। लेकिन 130 मिनट बाद निकाले जाने पर यह संभावना महज एक फीसद रह जाती है। ऐसे में हनुमनथप्पा द्वारा मौत को मात देना महज संयोग नहीं है।

तस्वीरों में देखें: क्या होता है एयर पॉकेट, जिसने बचाई हनुमनथप्पा की जान

इसके वैज्ञानिक आधार भी हैं। दबने के बाद बने एयर पॉकेट ने उन्हें प्राणवायु तो दी ही साथ ही उनके शरीर की गर्मी ने उस छोटे से स्थान के तापमान को -50 डिग्री से बढ़ाकर -7 डिग्री कर दिया। इससे उन्हें हाइपोथर्मिया जैसी दिक्कत से नहीं जूझना पड़ा। अंतत: स्वस्थ कद-काठी और अदम्य साहस से हनुमनथप्पा को जीवन का वरदान मिला।

सियाचिन घटनाक्रम

तीन फरवरी को हनुमनथप्पा की दस सदस्यीय टीम समुद्र तल से 21 हजार फीट ऊंचे सियाचिन पर गश्त कर रही थी। अचानक हुए भयंकर हिमस्खलन में सभी सदस्य बर्फ के अंदर दब गए।

एक दिन पहले तक जहां था मातम, वहां बाद में बटी मिठाइयां

खोज अभियान

दो सौ लोगों का बचाव दल आधुनिक रडार, बर्फ काटने एवं मेडिकल उपकरणों के अलावा थर्मल डिटेक्टर और खोजी कुत्तों के साथ मौके पर पहुंच अभियान शुरू किया।

करिश्मा

लगातार पांच दिनों तक चले बचाव अभियान के बाद भी किसी के जिंदा होने की कोई संभावना नहीं बची थी। अचानक बर्फीली कब्रगाह में 35 फीट नीचे -50 तापमान में जीवन की सांसें सुनी गई। ये सांसें हनुमनथप्पा की थीं। उन्हें नई दिल्ली के सैन्य अस्पताल लाया गया।

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