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बूट, बुलेटप्रूफ जैकेट जैसी जरूरतों की भी किल्लत झेल रही फौज

भारत की सरहदों की हिफाजत करने वाले जांबाज सैनिकों को अगर बूट, बंदूक और बुलेटप्रूफ जैकेट जैसी मूलभूत जरूरतों के लिए भी तंगी और परेशानियां झेलनी पड़ें तो यह देश के रक्षा प्रबंधन पर गंभीर सवाल खड़े करता है। सेना के जवानों की जरूरत के मुकाबले 15 लाख से अधिक

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 22 Dec 2014 08:20 PM (IST)Updated: Mon, 22 Dec 2014 08:31 PM (IST)
बूट, बुलेटप्रूफ जैकेट जैसी जरूरतों की भी किल्लत झेल रही फौज

नई दिल्ली। भारत की सरहदों की हिफाजत करने वाले जांबाज सैनिकों को अगर बूट, बंदूक और बुलेटप्रूफ जैकेट जैसी मूलभूत जरूरतों के लिए भी तंगी और परेशानियां झेलनी पड़ें तो यह देश के रक्षा प्रबंधन पर गंभीर सवाल खड़े करता है। सेना के जवानों की जरूरत के मुकाबले 15 लाख से अधिक जूतों की कमी है। स्वदेशी इंसास रायफल में बीते 18 साल से परेशानियां झेलने के बावजूद उनका समाधान नहीं हो सका है। संसद की रक्षा मंत्रालय संबंधी समिति ने इसके लिए रक्षा प्रबंधन को कड़ी फटकार लगाई है।

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संसद में पेश समिति की ताजा रिपोर्ट में सैनिकों के लिए जूतों, मच्छरदानियों और मंकी कैप जैसी मूलभूत चीजों की कमी के मद्देनजर हैरानी व चिंता जताई गई है। समिति ने कहा है, सैनिकों की रोजमर्रा जरूरत की इन चीजों की आपूर्ति में तो किसी प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की भी जरूरत नहीं, फिर क्यों ऐसी किल्लत को बने रहने दिया जाता है। समिति ने इस बात को लेकर खासी नाराजगी जताई है कि रक्षा मंत्रालय ने इस बाबत तथ्यों को छुपाने का भी प्रयास किया। रिपोर्ट के अनुसार रक्षा मंत्रालय ने पहले समिति के सवालों को टालने का प्रयास भी किया।

हजारों सैनिकों की जान खतरे में

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) भुवनचंद्र खंडूड़ी की अध्यक्षता वाली 18 सदस्यीय संसदीय समिति ने बुलेटप्रूफ जैकेट खरीद की कवायद पर भी सवालिया निशान लगाए। समिति ने इस बात पर चिंता जताई कि इसमें ढिलाई बरतकर सरकार हजारों सैनिकों की जान खतरे में डाल रही है। रक्षा मंत्रालय के कामकाज पर सख्त नाराजगी जताते हुए समिति ने कहा है कि सैनिकों की जान से जुड़े ऐसे साजोसामान की खरीद में फास्ट ट्रैक प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए। महत्वपूर्ण है कि रक्षा खरीद परिषद ने अक्टूबर, 2009 में 1,86,138 बुलेटप्रूफ जैकेटों की खरीद को मंजूरी दी थी। लेकिन, पांच साल में भी यह कवायद पूरी नहीं हो सकी। समिति ने सवाल उठाया कि इस बीच तो आवश्यकता भी बढ़ चुकी होगी।

18 साल बाद भी दूर नहीं हुईं इंसास रायफल की खामियां

ढिलाई की ऐसी मिसाल स्वदेशी इंसास रायफलों के स्थान पर बेहतर असाल्ट रायफल मुहैया कराने के मामले में भी नजर आती है। संसदीय समिति ने इस बात पर भी मंत्रालय की खिंचाई की है कि 14 साल के इंतजार के बाद जवानों तक पहुंची इंसास रायफल में खामियां उजागर होने के 18 बरस बाद भी उन्हें दूर नहीं किया जा सका। रक्षा मंत्रालय ने हालांकि समिति को बताया कि नई और उन्नत रायफलों की खरीद के लिए ग्लोबल टेंडर जारी किया जा चुका है और खरीद की प्रक्रिया चल रही है।

जवानों को चाहिए

-2,17,388 हाई एंकल बूट

-13,09,092 कैनवास रबर सोल वाले जूते

-4,47,000 मंकी कैप

-1,26,270 मच्छरदानी

-1,86,138 बुलेटप्रूफ जैकेट

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