खफा विधायक कांग्रेस के लिए बने चुनौती
राजधानी में यदि भाजपा की अगुवाई में सरकार का गठन होता है तो आम आदमी पार्टी के अलावा कांग्रेस विधायक दल में भी हलचल हो सकती है। पार्टी के प्रदेश नेतृत्व के सामने अपने सभी आठ विधायकों को पार्टी के झंडे तले एकजुट रखना बड़ी चुनौती है। सियासी हलकों में ऐसी चर्चा है कि सरकार बनाने की जारी कवायद के तह
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। राजधानी में यदि भाजपा की अगुवाई में सरकार का गठन होता है तो आम आदमी पार्टी के अलावा कांग्रेस विधायक दल में भी हलचल हो सकती है। पार्टी के प्रदेश नेतृत्व के सामने अपने सभी आठ विधायकों को पार्टी के झंडे तले एकजुट रखना बड़ी चुनौती है। सियासी हलकों में ऐसी चर्चा है कि सरकार बनाने की जारी कवायद के तहत कांग्रेस के विधायक भी निशाने पर हैं। इन्हें संभाले रखने में प्रदेश नेतृत्व को मशक्कत करनी पड़ सकती है।
केंद्र में सरकार के गठन के बाद से ही सूबे में सरकार के गठन की चर्चा लगातार हो रही है। महत्वपूर्ण यह है कि सबसे पहले कांग्रेस विधायकों के सहयोग से ही भाजपा द्वारा सरकार बनाने की चर्चा थी लेकिन करीब डेढ़-दो महीने बीतने के बावजूद जब सरकार नहीं बनी तो कांग्रेस के सभी विधायक एक साथ सामने आए और उन्होंने भाजपा से सहयोग करने संबंधी तमाम कयासों को खारिज कर दिया। जानकारों की मानें तो कांग्रेस विधायकों को लेकर दो बातें ध्यान देने वाली हैं। पहली यह कि बाकी दलों के तमाम अन्य विधायकों की तरह ही कांग्रेस के विधायक भी तत्काल चुनाव मैदान में नहीं जाना चाहते। वर्तमान परिस्थितियों में चुनाव लड़ना उन्हें फायदेमंद नहीं दिख रहा। दूसरी बात यह है कि कई विधायकों के मन में पार्टी में अपनी उपेक्षा किए जाने का मलाल अब भी बरकरार है। उन्हें लगता है कि पार्टी में जिस पद के वे हकदार हैं, वह उन्हें नहीं मिल पाया है। यह दीगर बात है कि सत्ता से बाहर होने के बाद पार्टी के पास बांटने के लिए ज्यादा पद ही नहीं हैं। बहरहाल, कांग्रेस के कुछ विधायकों की नाराजगी के मद्देनजर ही ऐसा कहा जा रहा है कि उन पर भी डोरे डाले जा सकते हैं।
याद रहे कि कांग्रेस विधायक मतीन अहमद व आसिफ मोहम्मद खान ने आम आदमी पार्टी पर यह आरोप लगाया भी था कि पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने उनसे सरकार बनाने के लिए संपर्क किया था।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली, मुख्य प्रवक्ता मुकेश शर्मा आदि नेता बार-बार यह कहते रहे हैं कि कांग्रेस का कोई भी विधायक किसी भी कीमत पर भाजपा अथवा आम आदमी पार्टी को सरकार बनाने के लिए समर्थन नहीं देगा। पार्टी द्वारा आयोजित किए जा रहे कार्यक्रमों में कुछ विधायक पहुंच भी रहे हैं। लिहाजा, प्रदेश नेतृत्व यह मानकर चल रहा है कि उसके विधायक इधर-उधर नहीं जाएंगे। लेकिन इतना तय है कि विधायकों में नाराजगी है और यदि वरिष्ठ नेताओं ने उनकी नाराजगी दूर करने के लिए उचित कदम नहीं उठाए तो मुसीबत सामने आ सकती है।
सरकार को लेकर नौकरशाहों में अटकलें तेज
दिल्ली में सरकार बनाने को लेकर चल रही सियासी उठापटक का असर जिलास्तरीय प्रशासन और उसके कामकाज पर देखने को मिल रहा है। सेंट्रल दिल्ली के अधिकारियों में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि दिल्ली में किस पार्टी की सरकार बनने जा रही है। एक अधिकारी के मुताबिक, नौकरशाह वर्ग मौजूदा सियासी उठापटक पर गहरी निगाह बनाए हुए है। वैसे, नौकरशाह भी चाहते हैं कि जल्द से जल्द दिल्ली में अनिश्चितता का माहौल खत्म हो और योजनाओं पर काम आगे बढ़े। दिल्ली में सरकार बनाने की सरगर्मी अचानक फिर से बढ़ी है। उपराज्यपाल की ओर से भाजपा को सरकार बनाने के लिए जल्द आमंत्रण मिलने के संकेत हैं। दरियागंज स्थित सेंट्रल दिल्ली के दफ्तर में कार्यरत एक अधिकारी ने बताया कि सियासी उठापटक पर अधिकारी नजर बनाए हुए हैं और उसी हिसाब से कदम उठा रहे हैं। उक्त अधिकारी ने कहा कि जब यह संकेत मिले थे कि दिल्ली में उपराज्यपाल का शासन लंबा चलेगा तो उनके दिशा-निर्देशों पर तेजी से अमल हो रहा था, लेकिन अब जबकि फिर से भाजपा की सरकार बनने को लेकर कयास तेज है तो अब फैसलों के लिए अगली सरकार के गठन का इंतजार हो रहा है। सियासी अनिश्चितता का असर दैनिक कामों पर भी पड़ रहा है। दिल्ली का 65 फीसद से अधिक बजट सामाजिक मद में है, लेकिन सरकारी सूत्रों के मुताबिक विधवा पेंशन व भोजन की गारंटी सहित अन्य योजनाओं पर तेजी से काम नहीं हो पा रहा है।