बोफोर्स के शोर में खत्म हुए बच्चन-गांधी परिवार के रिश्तों को नई जान दे पाएगी ये 'चिड़िया'
अब देखना होगा कि गांधी खानदान और बच्चन परिवार के जो रिश्ते एक तोप से बिगड़ गए थे उन रिश्तों के तारों को एक चिड़िया (ट्विटर) किस हद तक जोड़ पाती है।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। इतिहास और वक्त के बारे में एक बात कही जाती है कि यह खुद को दोहराते जरूर हैं। 1980 के दशक के अंत में गांधी खानदान और बच्चन परिवार के बीच जो रिश्ते कटु हो चले थे वही रिश्ते अब इंटरनेट की 'चिड़िया' के जरिए फिर परवान चढ़ते नजर आ रहे हैं। अब देखना होगा कि जो रिश्ते एक तोप से बिगड़ गए थे उन रिश्तों के तारों को एक चिड़िया (ट्विटर) किस हद तक जोड़ पाती है। 20वीं सदी के अंत में हुए एक सर्वे में अमिताभ बच्चन को सदी का सुपरस्टार चुना गया था। अमिताभ बच्चन एंग्री यंग मैन की अपनी छवि से लेकर बुढ़ापे के किरदारों तक हर रोल से अपने प्रशंसकों ही नहीं आलोचकों को भी निशब्द करते रहे। लेकिन जब-जब भी उनकी नजदीकियां किसी राजनीतिक दल से हुई, उन्हें लेकर चर्चाएं खूब हुईं। कभी कांग्रेस का करीबी रहा बच्चन परिवार जब देश के सबसे बड़े राजनीतिक खानदान से दूर हुआ तो भी सुर्खियां बनीं और जब समाजवादी पार्टी से उनकी नजदीकियां बढ़ीं तब भी उनको लेकर हेडलाइन बनी।
अब एक बार फिर वे सुर्खियों में हैं। इस बार वे सुर्खियों में इसलिए हैं क्योंकि हाल ही में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ ही कांग्रेस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल को भी फॉलो करना शुरू कर दिया है। इसके अलावा उन्होंने पी चिदंबरम, कपिल सिबल, अहमद पटेल, अशोक गहलोत, अजय माकन, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट, सीपी जोशी, मनीष तिवारी, शकील अहमद, संजय निरूपम, रणदीप सुरजेवाला, प्रियंका चतुर्वेदी और संजय झा जैसे कांग्रेस नेताओं को फॉलो करना शुरू किया है। बता दें कि टि्वटर पर अमिताभ बच्चन को 33.1 मिलियन लोग फॉलो करते हैं, जबकि वे खुद 1730 लोगों को फॉलो करते हैं।
यह कोई आम घटना नहीं है
कांग्रेस और उसके नेताओं को अमिताभ बच्चन द्वारा ट्विटर पर अचानक फॉलो करने की घटना आम नहीं है। क्योंकि एक लंबा वक्त बीत चुका है, जब कांग्रेस और बच्चन परिवार की राहें जुदा हो गई थीं। इधर भाजपा और खासकर पीएम नरेंद्र मोदी से अमिताभ बच्चन के संबंध भी मधुर हैं। एक तरफ बिग-बी कांग्रेस नेताओं को फॉलो कर रहे हैं, दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी कांग्रेस मुक्त भारत के मिशन पर हैं।
बच्चन परिवार और गांधी खानदान के बीच रिश्ते काफी पुराने रहे हैं। दोनों परिवार एक-दूसरे के काफी करीबी थे। लेकिन वक्त ने ऐसी करवट ली कि दोनों परिवारों के बीच दूरियां पैदा हो गईं। अब जिस तरह से बिग-बी ने कांग्रेस और उसके नेताओं को ट्विटर पर फॉलो करना शुरू किया है, उससे लगता है दोनों परिवारों के रिश्तों के बीच जमीं बर्फ पिघलने लगी है। चलिए जानें कैसे रहे हैं दोनों परिवारों के बीच के रिश्ते...
इलाहाबाद ने जोड़े रिश्ते
बच्चन परिवार और गांधी खानदान दोनों के रिश्ते इलाहाबाद से जुड़े हैं। अमिताभ बच्चन के पिता हरिवंश राय बच्चन और जवाहरलाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू दोनों ही इलाहाबाद से संबंध रखते थे। एक ही शहर से होने के नाते भी दोनों परिवारों के बीच अच्छी दोस्ती थी। बाद में बच्चन परिवार की यह दोस्ती जवाहरलाल नेहरू, उनकी बेटी इंदिरा गांधी से होते हुए राजीव गांधी तक चलती रही।
लड़कपन से थी अमिताभ और राजीव की दोस्ती
अमिताभ बच्चन और राजीव गांधी की पहली मुलाकात उस वक्त हुई थी, जब दोनों दोस्ती के बारे में जानते भी नहीं थे। उस वक्त अमिताभ बच्चन 4 साल और राजीव गांधी की उम्र दो साल थी। जैसे-जैसे दोनों बड़े होते गए, इन दोनों की दोस्ती भी परवान चढ़ती गई। दोनों के शौक भी एक जैसे ही थे।
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यूं मिला अमिताभ-राजीव की दोस्ती को नया मुकाम
अमिताभ बच्चन और राजीव गांधी की दोस्ती बहुत अच्छी थी। लेकिन 1960 के दौरन में यह दोस्ती और भी रंग लाई। उस समय राजीव गांधी इटली की लड़की सोनिया माइनो से शादी करना चाहते थे और उनकी मां इंदिरा गांधी का उन्हें समर्थन नहीं मिल रहा था। इंदिरा गांधी नहीं चाहती थीं कि उनका बेटा सोनिया से शादी करे। यहां अमिताभ बच्चन की मां की भूमिका अहम है। उन्होंने राजीव और सोनिया की पैरवी करते हुए इंदिरा गांधी से बात की और उनके समर्थन में तमाम दलीलें दीं। आखिरकार सोनिया माइनो, शादी करके सोनिया गांधी बन गई।
अमिताभ का राजनीति में आना
राजीव और अमिताभ के बीच ही नहीं बल्कि गांधी खानदान और बच्चन परिवार के बीच यह दोस्ती का दौर 1970 और 80 के दशक में भी जारी रहा। इस बीच अमिताभ बॉलीवुड में बड़ा नाम कमा चुके थे और उनके पूरी तरह से राजनीति में आने की अटकलें शुरू हो गई थीं। फिर वो वक्त भी आ गया, जब अमिताभ बच्चन ने एक्टिंग करियर को विराम देकर राजनीति में प्रवेश कर लिया। 1984 में उन्होंने राजनीति में कदम रखा और अपने दोस्त राजीव गांधी की मदद करने का फैसला किया। उन्होंने अपने पैतृक शहर इलाहाबाद से 8वीं लोकसभा का चुनाव लड़ा और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा को रिकॉर्ड मार्जिन से हरा दिया। उन्हें 68.2 फीसद वोट मिले। हालांकि अमिताभ का राजनीतिक करियर बहुत लंबा नहीं चला और उन्होंने राजनीति को नाबदान कहते हुए तीन साल बाद ही लोकसभा सांसद के रूप में इस्तीफा दे दिया।
गांधी खानदान और बच्चन परिवार में बढ़ी दूरियां
गांधी खानदान और बच्चन परिवार के बीच दूरियां बढ़ाने में बोफोर्स घोटाले ने भी विलेन की भूमिका निभाई। बोफोर्स घोटाले में अमिताभ और उनके भाई का नाम अखबारों में उछाला जाने लगा। हालांकि बाद में अमिताभ बच्चन इस आरोप से भी बरी हो गए। राजीव गांधी से दोस्ती के चलते अमिताभ बच्चन का नाम बोफोर्स घोटाले में उछाला जा रहा था। खुद को बोफोर्स घोटाले के दाग से दूर रखने के लिए अमिताभ बच्चन ने गांधी परिवार से दूरियां बना ली। 1990 के दशक में खासकर राजीव गांधी की हत्या के बाद दोनों परिवारों के रिश्ते काफी बिगड़ गए। गांधी परिवार को उम्मीद थी कि अमिताभ बच्चन एक बार फिर कांग्रेस में शामिल होकर सोनिया गांधी का साथ देंगे। लेकिन बिग-बी ने राजनीति में आने से साफ इनकार कर दिया। उस वक्त गांधी परिवार को लगा कि कि बच्चन परिवार ने उनके साथ धोखा किया है। इसके कुछ ही साल बाद 1996-97 में जब एबीसीएल डूबने लगी तो उस समय बच्चन परिवार को गांधी खानदान से उम्मीद थी, लेकिन उन्हें कोई सहयोग नहीं मिला। इस बार बच्चन परिवार को धोखे का एहसास हुआ।
बच्चन परिवार की अमर सिंह और भाजपा से नजदीकी
अब गांधी खानदान और बच्चन परिवार के बीच दोस्ती जैसा कुछ भी नहीं बचा था। एबीसीएल के डूबने से अमिताभ बच्चन भी टूटे हुए थे। इसी बीच अमिताभ बच्चन की दोस्ती सपा नेता अमर सिंह से हुई और यह दोस्ती धीरे-धीरे मजबूत होती चली गई। दोनों की दोस्ती के चर्चे आम होते थे। इसी दोस्ती में अमिताभ बच्चन ने उत्तर प्रदेश की सपा सरकार के लिए विज्ञापन करने भी शुरू कर दिए। इन विज्ञापनों को लेकर भी उनकी कड़ी आलोचना हुई। लेकिन अमिताभ की यह 'अमर' दोस्ती भी लंबी नहीं चली। और फिर दोनों के रिश्तों में दूरियां आने लगीं।
इस बीच अमिताभ बच्चन की नजदीकियां भारतीय जनता पार्टी से बढ़ गईं। खासकर उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ने अमिताभ बच्चन को गुजरात टूरिज्म के विज्ञापनों के लिए मना लिया। पिछले कई सालों से वे गुजरात सरकार के ब्रांड अम्बेस्डर हैं और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही केंद्र की कई योजनाओं के लिए भी अमिताभ के चेहरे का इस्तेमाल हो रहा है।