पीढ़ी बदलाव का एजेंडा अब हुआ पूरा
केंद्र सरकार का चेहरा बदला तो भाजपा का भी स्वरूप बदलने लगा है। वर्षो से लंबित पीढ़ी बदलाव का बड़ा एजेंडा अब पूरा होने की कगार पर है। भाजपा के इतिहास में सबसे युवा अध्यक्ष बने अमित शाह के काल में हर स्तर पर पीढ़ी बदलाव का चक्र तो पूरा होगा ही, सरकार और संगठन के बीच समन्वय भी ज्यादा सरल होगा। अहमदाबाद को
त्वरित टिप्पणी/प्रशांत मिश्र। केंद्र सरकार का चेहरा बदला तो भाजपा का भी स्वरूप बदलने लगा है। वर्षो से लंबित पीढ़ी बदलाव का बड़ा एजेंडा अब पूरा होने की कगार पर है। भाजपा के इतिहास में सबसे युवा अध्यक्ष बने अमित शाह के काल में हर स्तर पर पीढ़ी बदलाव का चक्र तो पूरा होगा ही, सरकार और संगठन के बीच समन्वय भी ज्यादा सरल होगा।
अहमदाबाद को-आपरेटिव बैंक को दिवालियापन से उबारने वाले अमित शाह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसे को न सिर्फ कायम रखा था, बल्कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश को भाजपा के लिए सचमुच में उत्तम प्रदेश बनाकर दे दिया। मोदी के गांव बड़नगर और शाह के गांव माणसा की नजदीकी को नजरअंदाज भी कर दिया जाए तो इस भरोसे की जड़ में वर्षो की परखी हुई अमित शाह की कार्यकुशलता व आपसी समझ थी। यह आपसी समझ अब सरकार और संगठन में भी दिखेगी। सच्चाई यह है कि अमित शाह ने अध्यक्ष की कुर्सी परिक्रमा के जरिए नहीं पराक्रम से हासिल की है। उनके नाम पर गंभीरता से उसी वक्त से विचार शुरू हो गया था, जब उन्होंने जादुई जीत दिलाई थी। उनका कद भी राष्ट्रीय अध्यक्ष के समकक्ष उसी समय हो गया था। अब औपचारिक रूप से अमित शाह को कमान सौंप दी गई है तो संगठन की सूरत, सीरत और उम्र भी बदलेगी। अमित शाह भी मोदी के 'जीरो टालरेंस और नो नानसेंस' की प्रवृत्ति वाले अध्यक्ष होंगे, इसमें कोई शक नहीं। जाहिर है कि संगठन पदाधिकारियों को भी अब उसी कसौटी पर खरा उतरना होगा, जो शाह ने अपने प्रदर्शन से साबित कर दिया है।
शाह के लिए पहली चुनौती अपने नवरत्न चुनने की होगी। वह केंद्रीय संगठन में भले ही एक साल पहले आए हों, लेकिन लगभग चार साल से दिल्ली में पार्टी की नब्ज को भली भांति महसूस कर रहे थे। उन्हें मालूम था कि भाजपा में परिक्रमा की संस्कृति घर कर चुकी है। इस जड़ता को तोड़ना उनके लिए आगे भी चुनौती है, लेकिन दो टूक और बेबाक शैली उनका सबसे बड़ा संबल है। उन्हें मालूम है कि देश भर में भाजपा के जितने सपोर्टर हैं, उन्हें वोटर में बदलना है तो उन राज्यों में पार्टी की जड़ता को खत्म करना पड़ेगा। इसके लिए संभवत: उन्हें कुछ कठोर फैसले लेने पड़ सकते हैं।
माना जा रहा है कि इसी क्रम में संसदीय बोर्ड में भी बदलाव दिखेगा। कुछ पीढ़ी के नजरिए से और कुछ सोच के स्तर पर। संभव है कि इस क्रम में उनकी आलोचना भी हो, लेकिन उसे झेलना उनकी और उनके राजनीतिक गुरु नरेंद्र मोदी के जीवन का एक पहलू रहा है। यही पहलू दोनों नेताओं के रहस्यमयी व्यक्तित्व को मिथकीय भी बनाता है।