विमान हादसों से संबंधित राहत व बचाव नियमों में संशोधन
पिछले कुछ सालों में विमानों के अचानक आसमान से गायब होने अथवा दुर्घटना के बाद लापता होने के कई मामले सामने आए हैं।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सरकार ने विमान दुर्घटना की स्थिति में विमान व यात्रियों की खोज तथा राहत एवं बचाव कार्यो से संबंधित सिविल एविएशन नियमों में संशोधन किया है। इसके तहत अब खोज, राहत एवं बचाव केंद्रों के लिए अपने तकनीकी कर्मचारियों की संख्या एवं प्रशिक्षण का रिकार्ड रखना आवश्यक होगा।
भारत में विमान दुर्घटना की स्थिति में राहत और बचाव कार्यो के समन्वय की जिम्मेदारी केंद्रीय स्तर पर दो संगठनों - एयरपोर्ट अथारिटी और कोस्ट गार्ड के पास हैं। इसके अलावा राज्य सरकारें अपनी आपदा राहत मशीनरी को मौके पर उतारती हैं।
भारत ने रीजनल एयर नेवीगेशन प्लान, इंटनेशनल सिविल एविएशन आर्गनाइजेशन (आइसीएओ), ग्लोबल सिविल एविएशन रूल्स तथा इंटरनेशनल मेरीटाइम आर्गनाइजेशन (आइएमओ) द्वारा तय नियम-कायदों के अनुसार अपने यहां खोज, राहत एवं बचाव का तंत्र विकसित किया है। भारत के हवाई और समुद्री क्षेत्र के भीतर होने वाली किसी भी विमान (चाहे विमान और उसके यात्री किसी भी देश के हों) के दुर्घटनाग्रस्त होने की स्थिति में खोज, राहत और बचाव अभियान चलाने की जिम्मेदारी भारत सरकार होती है। जिसका नियंत्रण विमानन सचिव की अध्यक्षता वाली नेशनल एरोनाटिकल सर्च एंड रेस्क्यू कोआर्डिनेशन कमेटी तथा इंडियन कोस्ट गार्ड के महानिदेशक की अध्यक्षता वाले नेशनल मेरीटाइम एसएआर बोर्ड के हाथ में होता है।
पिछले कुछ सालों में विमानों के अचानक आसमान से गायब होने अथवा दुर्घटना के बाद लापता होने के कई मामले सामने आए हैं। इनमें मलेशियन एयरलाइंस के गायब होने का मामला प्रमुख है। जिस तरह विमान यातायात में बढ़ोतरी हो रही है, और आतंक का साया पूरी दुनिया पर मंडरा रहा है, उसे देखते हुए सभी देश अपने विमानन राहत व बचाव तंत्र को और मजबूत बना रहे हैं।
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