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स्विटजरलैंड के बराबर इस क्षेत्र पर कभी था भारत का कब्‍जा आज है चीन काबिज

भारत का एक इलाका ऐसा है जो क्षेत्रफल में स्विटजरलैंड की बराबर है। लेकिन चीन ने इस इलाके पर अवैध रूप से कब्‍जा कर रखा है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 29 May 2017 03:06 PM (IST)Updated: Wed, 31 May 2017 11:01 AM (IST)
स्विटजरलैंड के बराबर इस क्षेत्र पर कभी था भारत का कब्‍जा आज है चीन काबिज
स्विटजरलैंड के बराबर इस क्षेत्र पर कभी था भारत का कब्‍जा आज है चीन काबिज

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। भारत और चीन के संबंध हमेशा से ही तनावपूर्ण रहे हैं। इसकी कई वजह हैं। भारत की तरफ से यदि इस पर बात की जाए तो चीन की पाकिस्‍तान से घनिष्‍ठता भी इसकी एक बड़ी वजह है। लेकिन इन सभी के बावजूद तनाव को कम करने कोशिशें बार-बार भारत की तरफ से होती रहती हैं। लेकिन चीन है कि मानता ही नहीं। कभी अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा बताता है तो कभी वहां के छह जगहों के नाम अपने हिसाब से बदल देता है। कभी जम्‍मू कश्‍मीर पर अवैध तरीके से कब्‍जा जमाने वाले पाकिस्‍तान के साथ मिलकर आर्थिक कॉरिडोर बनाने लगता है वह भी उस जमीन पर जो कानूनन न तो उसकी है और न ही पाकिस्‍तान की। चीन और भारत के बीच सीमा विवाद काफी पुराना है। यहां यह भी ध्‍यान रखना जरूरी है कि वर्ष 1962 में चीन से हुए युद्ध में भारत को काफी नुकसान उठाना पड़ा था।

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स्विटजरलैंड की बराबर है अक्‍साई चिन

दोनों देशों में विवाद की एक बड़ी वजह अक्‍साई चिन भी जिसपर कभी-कभार बात होती भी है। क्षेत्रफल के हिसाब से यदि अक्‍साई चिन को आंका जाए तो यह दरअसल स्विटजरलैंड की बराबर है। इतने बड़े क्षेत्र पर चीन ने अवैध रूप से कब्‍जा जमाया हुआ है, जबकि इस पर भारत का कब्‍जा है और यह जम्‍मू कश्‍मीर का ही एक हिस्‍सा है। अक्साई चिन क्षेत्र समुद्र तल से लगभग 5,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित साल्ट फ्लैट का एक विशाल रेगिस्तान है।

इस इलाके पर था सिखों का कब्‍जा

1834 में पंजाब में सिखों का राज था। 1834 में वो लद्दाख तक जा पहुंचे और लद्दाख को जम्मू में मिलाने का एलान कर दिया। सिखों की फौज ने बाकायदा तिब्बत पर हमला कर दिया, लेकिन चीन की सेनाओं ने उन्हें हरा दिया और खदेड़ते हुए लद्दाख और लेह पर कब्जा कर लिया। सिख और चीनियों के बीच 1842 में एक समझौता हुआ जिसमें तय हुआ कि एक-दूसरे की सीमाओं का उल्लंघन नहीं किया जाएगा। 

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सिखों की पराजय

अंग्रेजों ने 1846 में सिखों को हरा दिया और लद्दाख पर ब्रिटिश राज कायम हो गया। उन्होंने चीन के अधिकारियों से मिलकर सरहद का मुद्दा सुलझाने की कोशिश की। तय हुआ कि प्राकृतिक चिन्हों के जरिए ही सरहद तय की जाएगी और सीमा पर बाड़ की जरूरत नहीं है। यहीं से असली सरहद गायब हो गई और कई लकीरों में दोनों देश उलझ कर रह गए।

जॉनसन लाइन

नक्शे पर बनी सरहद की पहली लकीर -जॉनसन लाइन है। 1865 में सर्वे ऑफ इंडिया के अफसर डब्लू एच जॉनसन ने एक दिमागी रेखा खींची जिसके मुताबिक अक्साई चिन का इलाका जम्मू कश्मीर में आता है। जॉनसन ने नक्शे पर उकेरी ये रेखा जम्मू कश्मीर के महाराजा को दिखाई। लेकिन जॉनसन के काम की आलोचना हुई। उसे ब्रिटिश राज ने नौकरी से निकाल दिया, चीन ने कभी इसे नहीं माना और भारत ने हमेशा अपनाया।

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चीन की करतूत

1947 में भारत की आजादी के बाद से ही सरकार ने जॉनसन लाइन को ही आधिकारिक सरहद माना जिसमें अक्साई चिन भारत का हिस्सा था। उधर, चीन ने जिनजियांग और पश्चिमी तिब्बत को जोड़ने वाला 1200 किलोमीटर लंबा हाइवे बना डाला, इसका 179 किलोमीटर का हिस्सा जॉनसन लाइन के दक्षिणी हिस्से को काटते हुए अक्साई चिन से होकर गुजरता था। 1957 तक तो भारत को ये तक पता नहीं चल सका कि चीन ने अक्साई चिन के इसी विवादित हिस्से में सड़क तक बना ली है। 1958 में चीन के नक्शे में पहली बार इस सड़क को दर्शाया गया।

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जॉनसन आरदाग लाइन

जॉ़नसन-आरदाग लाइन नक्शे पर बनी सरहद की दूसरी लकीर है। 1897 में ब्रिटिश फौज के अफसर सर जॉन आरदाग ने कुनलुन पहाड़ों से गुजरती हुई एक और सरहद खींची। इस दौर में ब्रिटिश राज के लिए रूस सबसे बड़ा खतरा बन रहा था क्‍योंकि दुनिया में उसका प्रभुत्‍व लगातार बढ़ रहा था। आरदाग ने ब्रिटिश राज को समझाया कि ये सरहद फायदेमंद होगी। लेकिन हकीकत में यह सिर्फ कागजों तक ही सिमट कर रह गई। 

मैक्कार्टनी-मैक्डॉनल्ड लाइन

नक्शे पर बनी सरहद की तीसरी लकीर मैक्कार्टनी-मैक्डॉनल्ड लाइन है। 1890 में ब्रिटेन और चीन के रिश्‍तों में काफी करीबी देखने को मिली। वहीं ब्रिटेन को चिंता थी कि कहीं रूस अक्‍साई चिन के इस क्षेत्र पर अपना अधिकार न जमा ले। 1899 में चीन के इस ओर झुकाव के चलते ब्रिटेन ने सरहद में बदलाव करने का इरादा किया। लिहाजा जॉर्ज मैककार्टनी ने अक्साई चिन का ज्यादातर इलाका चीन की तरफ कर दिया।

मैकमोहन लाइन

मैकमोहन लाइन नक्शे पर बनी सरहरद की चौथी लकीर है। 1913-14 में सीमा विवाद को लेकर शिमला में ब्रिटेन, चीन और तिब्बत के प्रतिनिधियों की एक बैठक हुई। ब्रिटिश अफसर हेनरी मैकमोहन ने समझौते के साथ एक नक्शा पेश किया। जो तिब्बत और भारत की पूर्वी सरहद तय कर रहा था। लेकिन चीन इस पर तैयार नहीं हुआ। इस लाइन का आधार हिमालय था।

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चीन के साथ दूसरा सीमा विवाद

भारत और चीन के बीच सरहद के झगड़े का दूसरा मोर्चा भारत के पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश भी है। ये वो इलाका है जहां से काल्पनिक मैकमोहन लाइन गुजरती है और दोनों मुल्कों को अलग करती है। नक्शे पर उकेरी गई यही लकीर दरअसल 1996 में LAC यानि वास्तविक नियंत्रण रेखा के तौर पर देखी गई। जिसे भारत चीन के साथ अपनी सरहद मानता है। पहले इस इलाके को नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी कहा जाता था यानि आज का अरुणाचल प्रदेश। लेकिन चीन अरुणाचल प्रदेश को भी अपना इलाका करार देता है और सिक्किम में भी दखलंदाजी करता रहता है।

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