सपा से परिवारवाद का ठप्पा हटाने को अखिलेश बेचैन
समाजवादी पार्टी पर पूरी तरह से काबिज होने के बाद अखिलेश यादव ने पार्टी पर लगे कुनबापरस्ती के धब्बे को हटाने की कोशिशें भी तेज कर दी हैं।
हरिशंकर मिश्र, लखनऊ। समाजवादी पार्टी पर लगभग पूरी तरह से काबिज होने के बाद अखिलेश यादव ने पार्टी पर लगे कुनबापरस्ती के धब्बे को हटाने की कोशिशें भी तेज कर दी हैं। इसकी पहली कड़ी के रूप में उन्होंने पत्नी डिंपल यादव को अगला लोकसभा चुनाव न लड़ाने की घोषणा कर दी है। इस फैसले से अखिलेश ने जहां भाई शिवपाल के लिए सेक्युलर मोर्चा के गठन में जुटे मुलायम सिंह यादव को एक तरह से जवाब दिया है, वहीं, आगे के लिए अपनी सियासी जमीन के विस्तार की गुंजाइशें भी बनाने की पहल कर दी है। अखिलेश की पत्नी डिंपल कन्नौज से सांसद हैं और बीते विधानसभा चुनाव में उन्होंने पार्टी के प्रचार की कमान भी संभाल रखी थी। हालांकि शनिवार को लखनऊ में हुए पार्टी के राज्य सम्मेलन में वह नहीं नजर आई। सम्मेलन के दूसरे ही दिन अखिलेश ने छत्तीसगढ़ के रायपुर में एक कार्यक्रम में शामिल होने के बाद यह ऐलान किया है कि डिंपल अगला चुनाव नहीं लड़ेंगी। इसके बाद से ही इसके सियासी निहितार्थ निकाले जाने लगे।
गौरतलब है कि सपा में परिवारवाद का सबसे अधिक आरोप मुलायम सिंह यादव पर लगता रहा है। 2012 में अखिलेश को प्रदेश की सत्ता सौंपने के बाद यह आरोप और गहराया था। 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कुनबे की कलह में जब पिता-पुत्र के बीच दूरी बढ़ी तो अखिलेश ने अपनी लकीर अलग से खींचने की कोशिश शुरू कर दी थी। अब यह लकीर साफ है। एक तरफ जहां मुलायम अपने भाई शिवपाल के लिए सियासी जमीन बनाने के लिए प्रयासरत हैं, तो वहीं अखिलेश ने डिंपल को चुनावी मैदान से बाहर करके यह संकेत देने की कोशिश की है कि पार्टी के लिए उनकी सोच का दायरा अपने पिता से अलग है और वह सबको साथ लेकर चलने की कोशिश करेंगे।
पार्टी सूत्रों के अनुसार कन्नौज से लगातार दो बार सांसद रहीं डिंपल को अब संगठन के काम में लगाया जा सकता है और पांच अक्टूबर को आगरा में होने वाले राष्ट्रीय सम्मेलन में इसकी भूमिका तय हो सकती है।