अमिताभ ठाकुर के खिलाफ जांच रद करने को अखिलेश सरकार ने दी चुनौती
राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की है।
माला दीक्षित, नई दिल्ली।आइपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर के खिलाफ चल रही विभागीय जांच खत्म करने और जांच अधिकारी की नियुक्ति रद करने के फैसले के खिलाफ उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार सुप्रीमकोर्ट पहुंची है। राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की है। साथ ही अभी तक हो चुकी जांच को जारी रखने का अंतरिम आदेश भी मांगा है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने फैसले को सुप्रीमकोर्ट में दी चुनौती
उत्तर प्रदेश सरकार ने अनुशासन हीनता पद दुरुपयोग आदि के विभिन्न आरोपों में अमिताभ ठाकुर के खिलाफ विभागीय जांच शुरू की थी लेकिन केन्द्रीय प्रशासनिक ट्रिब्युनल (कैट) ने अमिताभ ठाकुर की याचिका स्वीकार करते हुए उनके खिलाफ चल रही विभागीय जांच और जांच अधिकारी की नियुक्त का राज्य सरकार का 14 जुलाई 2015 का आदेश निरस्त कर दिया था। हालांकि कैट ने राज्य सरकार को नये सिरे से जांच अधिकारी नियुक्त करने की छूट दी थी। कैट के इस आदेश पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी गत 29 सितंबर को मुहर लगा दी थी। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस फैसले को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी है।
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प्रदेश सरकार ने अपने वकील रवि प्रकाश मेहरोत्रा के जरिये याचिका दाखिल कर कहा है कि कैट और हाईकोर्ट ने आदेश में जांच और जांच अधिकारी को दुर्भावनापूर्ण कह कर निरस्त किया है जो कि गलत है। प्रदेश सरकार का कहना है कि सर्विस नियमों में विभागीय जांच सिर्फ तभी निरस्त की जा सकती है जबकि वह पक्षपाती हो। या फिर जांच अधिकारी पक्षपाती साबित हुआ हो। यहां ऐसा नहीं था। यहां तक कि याचिकाकर्ता ने भी जांच और जांच अधिकारी के पक्षपाती या दुर्भावनापूर्ण होने की दलील नहीं दी थी। सरकार ने विभागीय जांच जारी रखने का आग्रह करते हुए कोर्ट से कहा है कि शुरूआत में कैट ने विभागीय जांच पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया था और हाईकोर्ट ने भी अपने अंतरिम आदेश में जांच रोकने से मना कर दिया जिससे कि जांच चलती रही।
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जांच करीब एक साल चली इस बीच बहुत से गवाहों का परीक्षण और उनसे जिरह हुई। अब जांच करीब करीब पूरी होने वाली थी। इस समय जांच रद करना और नये सिरे से जांच अधिकारी नियुक्त कर फिर से जांच कराना ठीक नहीं होगा क्योंकि जिन लोगों की गवाही हो चुकी है उन्हें दोबारा गवाहियां देनी होंगी। सरकार का कहना है कि जांच और जांच अधिकारी को दुर्भावनापूर्ण बता कर जांच निरस्त करने के इस आदेश से विभागीय अनुशासनात्मक कार्यवाहियों के मामले में गलत नजीर बनेगी। हाईकोर्ट ने आल इंडिया सर्विस के नियम 8 की 1969 की बहुत व्यग्र होकर साथ गलत व्याख्या की है।