सियासी वियाबान में छोटे चौधरी
प्रदेश की सियासी कुंडली में ग्रह-गोचरों की नई करवटों ने छोटे चौधरी को सियासी बियावान में खड़ा कर दिया है। चौ. चरण सिंह की संपन्न विरासत पर राजनीतिक धुंध छा गई है। जनता दल की पुरानी जमीन में नए सिरे से सियासी खेती की तैयारी है। तमाम दिग्गजों ने मुलायम
मेरठ, [संतोष शुक्ल]। प्रदेश की सियासी कुंडली में ग्रह-गोचरों की नई करवटों ने छोटे चौधरी को सियासी बियावान में खड़ा कर दिया है। चौ. चरण सिंह की संपन्न विरासत पर राजनीतिक धुंध छा गई है। जनता दल की पुरानी जमीन में नए सिरे से सियासी खेती की तैयारी है। तमाम दिग्गजों ने मुलायम सिंह की अगुआई में मोदी लहर को भेदने के लिए एक नाव पर सवारी कर ली, किंतु अजित सिंह हाथ में पतवार लेकर किनारे खड़े रह गए। राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) की मेजबानी में चौ. चरण सिंह के बहाने तीसरे मोर्चे ने मेरठ में अंगड़ाई ली थी, ऐसे में अब सपा प्रमुख मुलायम की टीम से अजित सिंह की दूरी के तमाम मायने खंगाले जा रहे हैं। नई दिल्ली में समाजवादी जमावड़े में छोटे चौधरी फिर से भुला दिए गए। अवसरवादिता के इस जमघट में छोटे चौधरी से परहेज चौंकाने वाला है।
शहनाई से साधा एकता का सुर:
लालू यादव ने मुलायम के घर रिश्ता साधकर सियासी डोर को मजबूत कर लिया है। सियासी बेरोजगारी झेल रहे तमाम दिग्गजों ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा एवं शरद यादव सरीखे दिग्गज मुलायम को अपना नेता मान चुके हैं। जनता दल के बिखरे हुए तमाम कुनबों को एक नाम देने का मुहूर्त खोजा जा रहा है। नई दिल्ली में घनी ठंड के बीच समाजवादी सुरों ने सियासत गर्माने का फिर से दम भरा, किंतु सियासी पटकथा में अजित सिंह का किरदार नेपथ्य में भी नजर नहीं आ रहा। गत दिनों चौ. चरण सिंह के स्मारक के बहाने छोटे चौधरी ने अपना सियासी ग्राफ बढ़ाने का ख्वाब देखा। दिल्ली की अभिजात्य राजनीति में लंबी पारी खेलने वाले अजित सिंह को पैवेलियन में बैठने की आशंका कचोटने लगी थी। उन्होंने राज्यसभा में पहुंचने के लिए सपा एवं कांग्रेस का हाथ थामने की संभावनाएं तलाशीं। बात बनने की कगार पर आकर बिगड़ती गई। इन्हीं संभावनाओं को लेकर उन्होंने दो माह पहले मेरठ में बड़ी रैली कर मुलायम से नजदीकियां बढ़ाने का प्रयास किया था, किंतु अब तरकश तकरीबन खाली देखकर वह बियावान में खड़े नजर आ रहे हैं।
रालोद पर मुलायम 'सख्त':
सियासी वजूद तकरीबन खो चुके एचडी देवगौड़ा एवं शरद यादव तीसरे मोर्चे में बड़ी भूमिका निभाएंगे, जबकि छोटे चौधरी अभी तक चर्चा से भी बाहर हैं। मुलायम की अगुवाई में जनता दल अगर एक हुआ तो चौ. चरण सिंह उनके आराध्य पुरुषों में होंगे, ऐसे में छोटे चौधरी को भुलाने का क्या निहितार्थ है? सियासी पंडित मानते हैं कि गत वर्ष मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक दंगा की वजह से मुलायम सिंह की अल्पसंख्यक वोटों पर पकड़ हिल गई। जाटों की आक्रामक भागेदारी एवं बयानबाजी की वजह से सपा अजित सिंह से कन्नी काट रही है। तीसरे मोर्चे के दिग्गजों से तुलना की जाए तो छोटे चौधरी की जड़ इनमें से कइयों पर भारी पड़ेगी। शरद यादव बयानबाजी के उस्ताद है, किंतु जमीन पर हैसियत सिमट चुकी है। लोकसभा चुनावों से पहले नीतीश कुमार कांग्रेस समेत तीसरे मोर्चे की ओर से नरेन्द्र मोदी की काट के रूप में प्रधानमंत्री के उम्मीदवार बताए गए, किंतु अब घोर विरोधी लालू से हाथ मिलाकर काफी कुछ खो चुके हैं।
लालू ने वजूद पर संकट देखकर विरोधियों को गले लगाया है। भले ही उपचुनावों में सफलता से उन्हें फौरी राहत मिली है, किंतु उनमें देश की राजनीति प्रभावित करने की आभा नहीं रही। एचडी देवगौड़ा के नाम के साथ पूर्व प्रधानमंत्री का तमगा है, पर वह अपना सर्वश्रेष्ठ समय पीछे छोड़ चुके हैं। इस मोर्चे के सबसे कद्दावर सारथी मुलायम सिंह की सरकार में छोटे चौधरी साथी रहे हैं। उन्हें संप्रग और राजग से परहेज नहीं रहा।