जानिए, आडवाणी को क्यों पीएम बनते देखना चाहता था अफजल
संसद हमले के दोषी अफजल गुरु ने अपने लिए फांसी की मांग की। यह मांग उसने आज या कल नहीं बल्कि पांच साल पहले एक इंटरव्यू में कही थी।
नई दिल्ली। संसद हमले के दोषी अफजल गुरु ने अपने लिए फांसी की मांग की। यह मांग उसने आज या कल नहीं बल्कि वर्ष 2008 में एक इंटरव्यू के दौरान की थी। उसको इस बात का भी शक था कि तत्कालीन यूपीए सरकार उसकी फांसी की सजा पर मुहर नहीं लगा सकेगी।
2001 से ही तिहाड़ की हाई सिक्योरिटी सेल में बंद अफजल अपना एक-एक दिन बड़ी ही मुश्किल से गुजार रहा था। 2008 में उसने इस बात का खुलासा किया था कि वह इस तरह से तिल-तिल कर मरने से बेहतर एक बार फांसी पर चढ़कर मरना पसंद करता है। उसने केंद्र सरकार से मांग की थी कि वह उसकी फांसी की सजा पर जल्द से जल्द फैसला ले।
अपने इंटरव्यू में उसने यह भी मांग की थी कि जब तक केंद्र सरकार उसको लेकर कोई ठोस फैसला नहीं ले लेती है तब तक उसको कश्मीर की जेल में रखा जाए। उसका कहना था कि वह जेल में रोज मौत की जिंदगी जीने को मजबूर है। जिस वक्त संसद पर हमला हुआ था उस वक्त वह तीस वर्ष का था। उसका कहना था कि उसकी बीवी और बच्चा जेल में उससे मिलने आते हैं तो उसको पुलिस द्वारा की जा रही उनकी बेरुखी से दुख होता है। वह इसको बर्दाश्त नहीं कर पाता है।
अफजल ने शक जताया था कि यूपीए उसकी फांसी पर कोई फैसला नहीं ले सकेगी। इसलिए उसकी मंशा थी कि आने वाली सरकार भाजपा की हो और लालकृष्ण आडवाणी प्रधानमंत्री बनें। उसका कहना था कि वह एकमात्र व्यक्ति है जो उसकी फांसी पर जल्द फैसला ले सकते हैं। अफजल को सुप्रीम कोर्ट से वर्ष 2004 में सजा ए मौत मिली थी।
इस दौरान उसने न सिर्फ अपनी सजा को लेकर बेबाक बातचीत की बल्कि पाक जेल में बंद सरबजीत से भी सहानुभूति दिखाई। उसका मानना था कि सरबजीत और उसका मामला बिल्कुल अलग है। बावजूद इसके सरबजीत से उसकी सहानुभूति है। उसने कहा था कि जांच और पूछताछ के नाम पर खुफिया एजेंसियां उसकी बीवी और परिवार को परेशान कर रही हैं। उसका यह भी कहना था कि वह जेल में अपने आठ साल के बच्चे गालिब से नहीं मिल सकता है। उसका कहना था कि वह कश्मीर के लिए लड़ता है और वह अपनी फांसी को लेकर माफी की अपील नहीं करना चाहता है।
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