ICJ के फैसले से हैरान-परेशान पाकिस्तान को सताने लगा है इस बात का डर
कुलभूषण जाधव पर दिए आईसीजे के फैसले के बाद पाकिस्तान बड़े धर्म संकट में फंस गया है। वो न आगे बढ़ सकता है और न ही पीछे हटने की स्थिति में है।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। कुलभूषण जाधव की फांसी पर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस द्वारा लगाई गई रोक के बाद भारत को जहां बड़ी कामयाबी मिली है वहीं अब पाकिस्तान को यह डर सता रहा है कि यदि इस आदेश का उल्लंघन किया जाता है तो वह एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग पड़ सकता है। इससे पहले उसको भारत ने उसको उड़ी के आर्मी कैंप पर हुए हमले के बाद बेनकाब किया था और उसको अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग करने में कामयाब रहा था। उस वक्त भारत की वजह से ही उसको सार्क सम्मेलन तक रद करना पड़ा था जिससे उसकी किरकिरी हुई थी। एक बार फिर पाकिस्तान को यही डर सता रहा है।
पाकिस्तान ने हालांकि इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के फैसले को मानने से इंकार कर दिया है। उसका कहना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसलों पर वह अंतरराष्ट्रीय कोर्ट के आदेश को नहीं मानते हैं। इसका अर्थ यह भी है कि वह पूर्व में दिए गए आर्मी कोर्ट के फैसले पर आगे बढ़ने को तैयार है। लेकिन यह उसके लिए सबसे बड़ी समस्या बन गया है। यदि वह इस फैसले के खिलाफ आगे बढ़ता है तो एक बार फिर उसको अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में शर्मसार होना पड़ेगा। यहां पर एक बात और समझने की है। वह यह है कि यदि आईसीजे के आदेश का उल्लंघन करते हुए वह अपने निर्णय पर आगे बढ़ता है तो इसके कई स्तर पर दूरगामी परिणाम उसको भुगतने होंगे।
यह भी संभव है कि भारत और पाकिस्तान की बीच तनाव सभी सीमाओं को पार कर जाए। यह भी संभव है कि भारत कोई ठोस कदम उठाते हुए अपने रिश्ते तक खत्म कर ने की बात कर दे। लेकिन यह सब अभी दूर की कौड़ी है। फिलहाल इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के फैसले से भारत खुश है और अपनी अगली रणनीति पर काम कर रहा है। इंडियन सोसायटी ऑफ इंटरनेशनल लॉ की प्रोफेसर सुरेंदर कौर वर्मा मानती हैं कि ज्यादातर मामलों में देशों ने आईसीजे के आदेश का उल्लंघन नहीं किया है। लेकिन यदि पाकिस्तान इसका उल्लंघन करता है तो उसको न सिर्फ शर्मसार होना पड़ेगा बल्िक वह विश्व समुदाय में अलग-थलग भी पड़ जाएगा, जिसके दुष्परिणाम उसको आने वाले समय में दिखाई दे सकते हैं।
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प्रोफेसर वर्मा के मुताबिक, भारत की तरफ से इंटरनेशनल कोर्ट का दरवाजा खटखटाना काफी बड़ा फैसला था। वह जाधव को बचाने के प्रयासों के तहत लिया जाने वाला यह अंतिम विकल्प मानती हैं। उनका कहना है कि क्योंकि पाकिस्तान में जाधव को अपने बचाव का कोई मौका नहीं दिया गया, इसलिए आईसीजे में जाने विकल्प भारत के पास था। उनका कहना है कि जाधव मामले में पाकिस्तान की आर्मी कोर्ट ने मानवाधिकारों को जिस तरह से ताक पर रखा उसका उदाहरण कोई और नहीं हो सकता है।
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प्रोफेसर कौर का कहना है कि किसी भी कोर्ट का यह दायित्व होता है कि वह मानवाधिकारों का उल्लंघन न करे भले ही आरोपी विदेशी हो या फिर उसी देश का नागरिक हो। हालांकि वह यह भी मानती हैं कि आईसीजे अपने आदेश को मनाने के लिए किसी देश को बाधित नहीं कर सकता है। लेकिन सही मायने में किसी भी देश में आदेश को लागू करने काम वहां के प्रशासन और पुलिस का हाेता है। वही नियम यहां पर भी लागू होता है।
पाकिस्तान द्वारा आईसीजे का फैसला नकारने की सूरत में भारत के पास संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जाने का विकल्प मौजूद है। संयुक्त राष्ट्र का चार्टर कहता है कि हर यूएन सदस्य अंतरराष्ट्रीय पंचाट के फैसलों को मानने को बाध्य है, और यदि कोई पार्टी या पक्ष आईसीजे के फैसले का क्रियान्वयन करने में विफल रहता है, तो दूसरा पक्ष या पार्टी सुरक्षा परिषद का रुख कर सकता है, जहां सुरक्षा परिषद फैसले का क्रियान्वयन करवाए जाने के उपायों पर विचार करेगी।
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