नमो की खातिर मिलेंगे आडवाणी को वोट
राजनीति तमाम विडंबनाओं का खेल है। गांधीनगर में यह साफ तौर पर देखा जा सकता है। जिस नरेंद्र मोदी को पीएम प्रत्याशी बनने से रोकने के लिए वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने क्या कुछ नहीं किया, आज उन्हीं नमो की लोकप्रियता की वजह से वह अपनी सीट बचा पाएंगे। भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों में आडवा
गांधीनगर [जयप्रकाश रंजन]। राजनीति तमाम विडंबनाओं का खेल है। गांधीनगर में यह साफ तौर पर देखा जा सकता है। जिस नरेंद्र मोदी को पीएम प्रत्याशी बनने से रोकने के लिए वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने क्या कुछ नहीं किया, आज उन्हीं नमो की लोकप्रियता की वजह से वह अपनी सीट बचा पाएंगे। भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों में आडवाणी के मोदी विरोध को लेकर गुस्सा है। बावजूद इसके वे आडवाणी को ही वोट देंगे। कुछ कार्यकर्ताओं को अब भी शक है कि चुनाव जीतने के बाद आडवाणी मोदी के पीएम बनने के रास्ते में फिर रोड़े बिछा सकते हैं।
कार्यकर्ताओं के गुस्से के बावजूद गांधीनगर से पांच बार सांसद चुने गए आडवाणी के लिए इस बार भी जीत हासिल करना ज्यादा मुश्किल नहीं दिखता। वैसे वर्ष 2004 (61 फीसद) के मुकाबले पिछले लोकसभा चुनाव में आडवाणी का वोट शेयर घटा (54 फीसद) है, लेकिन कमजोर प्रत्याशी, पुराना संपर्क और मोदीलहर उनके पक्ष में है। कांग्रेस ने आडवाणी के खिलाफ किरीट पटेल को उतारा है, लेकिन वह मुकाबले से साफ बाहर दिख रहे हैं। हालिया समीकरण के मुताबिक पटेल को मुस्लिम, जैन और थोड़े बहुत पटेल वोट के अलावा और कुछ मिलता नहीं दिख रहा। पूरा का पूरा बनिया वोट आडवाणी के पक्ष में जाता दिख रहा है। नरनपुरा गांव के वीनू पटेल बताते हैं कि जब कांग्रेस के पुराने स्थानीय नेता भाजपा का समर्थन कर रहे हैं तो कांग्रेसी मतदाताओं के बारे में कौन कहे। भाजपा कार्यकर्ता और संघी मोहनलाल देसाई कहते हैं कि आडवाणी का यहां अपना वोट बैंक है, लेकिन उसका एक बड़ा हिस्सा आज की तारीख में मोदी समर्थकों में बदल चुका है। पिछले आम चुनाव से दो वर्ष पहले और गुजरात विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आडवाणी ने खुद को पीएम इन वेटिंग घोषित करा दिया था। उससे साफ हो गया था कि मोदी को फिलहाल राज्य में ही रहना होगा। इससे स्थानीय लोगों में काफी गुस्सा था, लेकिन उनके मन में यह भी संतोष था कि अगर पार्टी जीतेगी तो एक गुजराती ही पीएम बनेगा।
देसाई कहते हैं कि जब पूरी पार्टी और देश मोदी के समर्थन में सामने आया तो आडवाणी का रवैया बिल्कुल विरोधी जैसा हो गया। इसको लेकर लोगों में गुस्सा बढ़ा है, लेकिन फिर भी वे नरेंद्र मोदी की खातिर उन्हें वोट देंगे। देसाई की बात की तसदीक अगर आडवाणी की जनसंपर्क रैली से करें, तो यह सही साबित होती दिखती है। दो दिन पहले ही आडवाणी ने अहमदाबाद में रैली निकाली। रैली में मुश्किल से कुछ सौ लोग, तीन-चार दर्जन भर मोटरसाइकिलें और लगभग दो दर्जन कारें थी। इसके कुछ दिन पहले मोदी ने वडोदरा में जुलूस निकाला और उसमें एक तरह से पूरा शहर ही उमड़ आया था।