तदर्थ शिक्षकों पर गिरी गाज, सोम को नियुक्ति, मंगल को बाहर
तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति से संबंधित विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का पत्र बेअसर रहा। दिल्ली विश्वविद्यालय के कई कॉलेजों ने पत्र के आधार पर नए सत्र के पहले दिन शिक्षकों की नियुक्ति तो कर ली, लेकिन दूसरे दिन उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया।
नई दिल्ली [अभिनव उपाध्याय]। तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति से संबंधित विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का पत्र बेअसर रहा। दिल्ली विश्वविद्यालय के कई कॉलेजों ने पत्र के आधार पर नए सत्र के पहले दिन शिक्षकों की नियुक्ति तो कर ली, लेकिन दूसरे दिन उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। यही नहीं कुछ कॉलेज ने शिक्षकों की नियुक्ति बस एक माह के लिए की है। कई कॉलेजों में जो तदर्थ शिक्षक विगत वर्ष पढ़ा रहे थे, वहां इस वर्ष वह कोर्स ही नहीं है। कॉलेजों का कहना है कि आखिर किस आधार पर उनकी नियुक्ति की जाए।
मिरांडा हाउस कॉलेज में 10 शिक्षकों को सोमवार को ज्वाइन कराकर मंगलवार को बाहर कर दिया गया। इन शिक्षकों को ग्रीष्मकालीन वेतन तो मिलेगा, लेकिन उनकी नौकरी नहीं रहेगी। राजधानी कॉलेज सहित कई अन्य कॉलेजों में शिक्षकों को केवल एक माह की नौकरी के लिए पत्र मिला है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी कॉलेज में भी कुछ तदर्थ शिक्षकों को निकालने का मामला सामने आया है। दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट एंड कॉमर्स में गत सत्र में चार वर्षीय पाठ्यक्रम के तहत लाइफ एंड साइंस विषय पढ़ाने वाले अभिषेक कुमार सिंह ने मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी और यूजीसी के चेयरमैन को इस संबंध में पत्र लिखा है। उनका कहना है कि सैकड़ों तदर्थ शिक्षकों के समक्ष रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है, क्योंकि अब कॉलेजों में वह कोर्स ही नहीं पढ़ाए जा रहे हैं जो गत सत्र तक पढ़ाए जा रहे थे। दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ की अध्यक्ष डॉ. नंदिता नारायण ने बताया कि कॉलेज वर्कलोड के आधार पर तदर्थ शिक्षकों को निकाल रहे हैं, यह तर्क सही नहीं है। वर्क लोड घटता-बढ़ता रहता है। हम निकाले गए शिक्षकों के लिए संघर्ष करेंगे।
नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट के प्रवक्ता प्रमोद शास्त्री ने बताया कि हम कॉलेजों के प्रिंसिपल से कह रहे हैं कि जब तक स्थाई शिक्षकों की नियुक्ति न हो तब तक तदर्थ शिक्षकों को बाहर न निकाला जाए। उधर, एकेडमिक फॉर एक्शन एंड डेवलेपमेंट के प्रवक्ता डॉ. राजेश झा का कहना है कि यह पत्र पूरी तरह बेअसर रहा है। इससे तदर्थ शिक्षकों की परेशानी कम नहीं हुई है। कई विभागाध्यक्षों ने कहा कि यह हम पर लागू नहीं होता है। यह मात्र राजनीति पत्र बनकर रह गया है, तदर्थ शिक्षकों की समस्या जस की तस है।