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अरावली की सुंदरता पर ग्रहण है कीकर, 1870 में लाया गया था भारत

कीकर का वैज्ञानिक नाम प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा है। यह मूलरूप से दक्षिण और मध्य अमेरिका तथा कैरीबियाई देशों में पाया जाता था, 1870 में इसे भारत लाया गया था।

By Amit MishraEdited By: Published: Tue, 23 May 2017 04:21 PM (IST)Updated: Tue, 23 May 2017 06:53 PM (IST)
अरावली की सुंदरता पर ग्रहण है कीकर, 1870 में लाया गया था भारत
अरावली की सुंदरता पर ग्रहण है कीकर, 1870 में लाया गया था भारत

फरीदाबाद [जेएनएन]। अरावली पर्वतमाला पूरी तरह कीकर (बबूल) से अटी पड़ी है। कीकर के पेड़ कम ऊंचाई के होते हैं तथा इनकी पत्तियों में अम्लीय तत्व ज्यादा होते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि कीकर के पेड़ के नीचे कुछ और पनप नहीं पाता। अरावली में यदि कीकर की जगह औषधीय पौधे उगाए गए होते तो निश्चित तौर पर अरावली का स्वरूप ही और कुछ होता। बाबा रामदेव जून 2016 में जब फरीदाबाद आए थे तो उन्होंने अरावली को कीकर मुक्त करके यहां हर्बल पार्क विकसित करने की बात कही थी।

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शहर की मुख्य सड़कों के किनारे उग आए कीकर

शहर की मुख्य सड़कों के किनारे कीकर के पेड़ उग आए हैं। सूरजकुंड रोड, सोहना रोड, फरीदाबाद गुरुग्राम रोड, पाली रोड पर कीकर के पेड़ फैल गए हैं। सड़कों के किनारे लगे कीकर वाहन चालकों के लिए मुसीबत का सबब बन जाते हैं, क्योकि कई बार झाड़ियों लटककर सड़कों के बीच में आ जाती हैं। प्रशासन की ओर से इन झाड़ियों को काटने की जहमत नहीं उठाई जाती।

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1870 में भारत लाया गया था कीकर

कीकर का वैज्ञानिक नाम प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा है। यह मूलरूप से दक्षिण और मध्य अमेरिका तथा कैरीबियाई देशों में पाया जाता था, 1870 में इसे भारत लाया गया था। वन अधिकारी बलराम बताते हैं प्रदेश में दो तरह की कीकर होती है। एक मस्कट कीकर और दूसरी देशी कीकर। वह बताते है कि अरावली की वादियों में मस्कट कीकर फैली हुई है। इनकी जड़े गहरी होती हैं, जिसके कारण यह तेजी से अंदर ही अंदर फैलती हुई चली जाती हैं। यह जमीन के भीतर से ही पानी खीच लेती है।

अरावली में वनक्षेत्र विकसित करने को नहीं हुए प्रयास

बेशक पूरे अरावली क्षेत्र में निर्माण कार्य प्रतिबंधित है मगर वन विभाग पिछले चार सालों में यहां गैर वानिकी कार्य रोकने में पूरी तरह विफल रहा। सूरजकुंड अरावली क्षेत्र में अवैध निर्माणकर्ताओं ने कीकर सहित कुछ अन्य पेड़ भी काटे, मगर वन विभाग ने इनकी एवज में यहां नए पेड़ नहीं लगाए। विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि अरावली में कीकर की जगह पहाड़ी पेड़ उगाए जाते तो पूरा फरीदाबाद ही नहीं बल्कि दिल्ली भी रेगीस्तान से चलने वाली धूल भरी आंधियों के प्रकोप से मुक्त रहती।

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