बेमिसाल: -40 डिग्री तापमान में भी जीवित रहता एक योगी
बर्फानी बाबा.. जैसा नाम वैसा ही कर्म। भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और तपस्या के हठ ने उन्हें हर कठिन हालात में जिंदा रहने का हुनर सिखा दिया है। शिव भक्ति की ऐसी लगन कि न तो माइनस 40 डिग्री तापमान उनके शरीर का कुछ बिगाड़ पाता है और न सात फुट बर्फ में रातभर रहने से दम घुटता है। बर्फानी बाबा ने अपने जीवन के क
चंबा, [राकेश शर्मा]। बर्फानी बाबा.. जैसा नाम वैसा ही कर्म। भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और तपस्या के हठ ने उन्हें हर कठिन हालात में जिंदा रहने का हुनर सिखा दिया है। शिव भक्ति की ऐसी लगन कि न तो माइनस 40 डिग्री तापमान उनके शरीर का कुछ बिगाड़ पाता है और न सात फुट बर्फ में रातभर रहने से दम घुटता है। बर्फानी बाबा ने अपने जीवन के कई रहस्य दैनिक जागरण के साथ खोले।
12 वर्ष की उम्र में अपना देश नेपाल छोड़ने वाले बर्फानी बाबा इन दिनों मणिमहेश छोड़ निचले इलाकों में चहलकदमी कर रहे हैं। सर्दियां शुरू होते ही वह दोबारा मणिमहेश पहुंचकर तपस्या में लीन हो जाएंगे। 1993 में पहली बार बर्फानी बाबा ने मणिमहेश पर्वत में सर्दियां काटने का निर्णय लिया था। तब से वह लगातार भारी बर्फबारी के दिनों में मणिमहेश पर्वत पर शिव आराधना में लीन रहते हैं। 2011 में जब प्रशासन को सर्दियों में मणिमहेश पर्वत पर साधु के होने की सूचना मिली तो भरमौर प्रशासन ने पुलिस भेजकर उन्हें नीचे उतार लिया था। बर्फानी बाबा होली के रास्ते दोबारा मणिमहेश पर्वत पर चले गए। मणिमहेश पर्वत पर रहते हुए बाबा ने आधुनिक कैमरे से बर्फबारी के दौरान अपनी दिनचर्या का वीडियो भी रिकॉर्ड किया है। इसमें बर्फ में दबी मणिमहेश झील को खोदकर पानी निकालते दिखाया गया है। बाबा की कुटिया जो रात में हुई भारी बर्फबारी में करीब सात फुट बर्फ के नीचे दब चुकी थी, उसमें से बाबा को जिंदा निकलते दिखाया गया है। बर्फानी बाबा मानते हैं कि वह भगवान शिव के आशीर्वाद से मणिमहेश में तपस्या कर रहे हैं।
बचपन में वह चंडीगढ़ में किसी के पास काम करते थे जहां शिव मंदिर था। वह बताते हैं कि वहां एक रात मंदिर में चार हाथ वाला आदमी नजर आया जिसके बाद उनकी जिंदगी में बदलाव आने शुरू हो गए। उनका दावा है कि उन्हें अकसर भगवान नजर आते थे। इसके बाद उन्होंने चंडीगढ़ छोड़ दिया और लाहुल को ठिकाना बनाया जहां दीक्षित होने के दौरान उन्हें भरमौर में मणिमहेश झील की जानकारी मिली। इस बीच करीब पांच साल तक लाहुल से मणिमहेश स्नान के लिए पैदल आते रहे। 1993 में उन्होंने मणिमहेश में सर्दियां बिताने का निर्णय लिया। तब से वह मणिमहेश में तपस्या कर रहे हैं। बकौल बाबा बर्फानी, वह रोज सिर्फ एक चपाती खाते हैं, नियमित योगाभ्यास और छद्म योग से अपनी ऊर्जा को प्रतिकूल मौसम में इस्तेमाल करते हैं। इससे बाहर से ऑक्सीजन की जरूरत नहीं होती है।
क्षेत्रीय अस्पताल चंबा के एमडी डा. जितेंद्र महाजन कहते हैं कि कुछ लोग खुद को माहौल के हिसाब से ढाल लेते हैं। कई वर्ष की साधना के बाद शरीर को इस लायक बनाया जा सकता है कि वह प्रकृति के अनुकूल बना रहे। चंबा में योग शिक्षक मुकेश कुमार दावा करते हैं कि योग में इतनी ताकत है कि व्यक्ति अपने अंदर की ऊर्जा को बचाकर जीवित रह सकता है।