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भाजपा-कांग्रेस: शादी के निमंत्रण और फोन कॉल ने घटाई दूरियां

यह तस्वीर ऐतिहासिक है...एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगी हाथ जोड़कर खड़े हैं तो दूसरी सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह अभिवादन स्वीकार कर रहे हैं। मोदी ने चाय पर बुलाया तो दोनों ने सहज निमंत्रण स्वीकार कर लिया।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Published: Sat, 28 Nov 2015 05:40 PM (IST)Updated: Sat, 28 Nov 2015 05:46 PM (IST)
भाजपा-कांग्रेस: शादी के निमंत्रण और फोन कॉल ने घटाई दूरियां

नई दिल्ली। यह तस्वीर ऐतिहासिक है...एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगी हाथ जोड़कर खड़े हैं तो दूसरी सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह अभिवादन स्वीकार कर रहे हैं। मोदी ने चाय पर बुलाया तो दोनों ने सहज निमंत्रण स्वीकार कर लिया।

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2002 के गुजरात दंगों से जारी सियासी कटूता के बाद पहली बार ऐसा मौका आया। एक नजर पूरे घटनाक्रम से जुड़ी दस अहम बातों पर -

शादी का निमंत्रण: बिहार चुनाव परिणाम के ठीक बाद अरुण जेटली निजीतौर पर राहुल गांधी से मिले थे और उन्हें अपनी बेटी की शादी का निमंत्रण दिया था।


फिर यह ऐतिहासिक पल: बीते गुरुवार को रात नौ बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोनिया गांधी को फोन कर चाय केे लिए आमंत्रित किया। पहली बार ऐसा हुआ।


पूरी तरह मोदी का फैसला: सूत्रों के मुताबिक, सोनिया, मनमोहन को चाय पर आमंत्रित करने का फैसला पूरी तरह से मोदी का था। निर्णय लेने से पहले उन्होंने खुद को भी इसके लिए तैयार किया।


7, रेसकोर्स रोड से 10, जनपथ: राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास 7, रेसकोर्स रोड और सोनिया गांधी के आवास 10, जनपथ में चंद किमी की दूरी है, लेकिन सियासत ने इस दूरी को कई गुना बढ़ा दिया।


कांग्रेस का दावा: अब पार्टी का कहना है कि बिहार चुनाव के बाद मोदी सरकार को जमीनी हकीकत पता चली है और उन्हें विपक्ष के साथ वार्ता का फैसला करना पड़ा है।


सरकार का आभास: जानकारों के मुताबिक, सरकार को आभास हो गया है कि हाथ से वक्त निकलता जा रहा है और निकट भविष्य में राज्यसभा में बहुमत हासिल होने की कोई संभावना नहीं है। इसलिए विपक्ष की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया।


सकारात्मक राजनीतिक का दबाव: कांग्रेस ने मोदी के निमंत्रण को एक सुनहरे मौके के रूप में देखा है। अगर सोनिया-मनमोहन मिलने नहीं जाते तो संदेश जाता कि कांग्रेस टकराव की राजनीति से ऊपर नहीं उठ पा रही है।


2002 से थी कड़वाहट: मोदी और सोनिया के रिश्तों में 2002 के गुजरात दंगों के बाद से भारी कड़वाहट घुली है। 2010 में यह उस वक्त चरम पर पहुंच गई थी, जब यूपीए के शासनकाल में एसआईटी ने गुजरात के तत्कालीन सीएम मोदी से पूछताछ की थी। मोदी ने इसके पीछे सोनिया का हाथ बताया था।


मनमोहन सिंह भी बेहद खास: मनमोहन सिंह की मौजदूगी भी अहम रही। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने उनसे अच्छे संबंध बनाए रखे हैं।


दूर की कौड़ी: मोदी के इस कदम को दूर की कौड़ी करार दिया जा रहा है। हालांकि यह तो वक्त ही बताएगा कि सियासीतौर पर इसका ज्यादा फायदा किसे हुआ।


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