त्वरित टिप्पणी: नए भारत की दिशा में एक बड़ा कदम
मुस्लिम समाज में तीन तलाक जैसी घोर अनैतिक सामाजिक प्रथा का आखिरकार अंत हो गया।
प्रशांत मिश्र
मुस्लिम समाज में तीन तलाक जैसी घोर अनैतिक सामाजिक प्रथा का आखिरकार अंत हो गया। सर्वोच्च न्यायालय ने देश की आधी आबादी के बीच समानता की एक आधारशिला रख दी है। शाह बानो केस के तीस साल बाद नए भारत के निर्माण में जहां यह एक ब़़डा कदम है वहीं फैसले ने भविष्य को लेकर भी संकेत दे दिया है। यह स्पष्ट हो गया है कि समानता, गरिमा और अधिकार की ल़़डाई में धर्म और परंपरा को थो़डा पीछे हटना ही प़़डेगा। यह सवाल अब पहले से भी ज्यादा लाजिमी हो गया है कि क्या भारत के नागरिक अलग-अलग कानूनी पैमाने पर परखे जाएंगे? या भारतीय नागरिकों के लिए एक-सा कानून होना चाहिए। इस फैसले के बाद यह माना जा सकता है कि इसे लेकर भी समाज और राजनीति में चर्चा छि़डेगी। वहीं यह भी स्पष्ट हो गया है कि राजनीति को भी तुष्टीकरण के कुचक्र से बाहर आना चाहिए।
तीन तलाक का मुद्दा शुद्ध रूप से सामाजिक विषय है। पर जिस तरह ऐतिहासिक फैसला आया है उसके बाद यह पूछा जाना स्वाभाविक है कि क्या राजनीतिक इच्छाशक्ति के बिना यह सामाजिक बदलाव संभव था? जवाब है नहीं.। दरअसल पहली बार सरकार ने खुलकर बदलाव का नजरिया रखा था। कोर्ट को बताया था कि विभिन्न मुस्लिम देशों में एकसाथ तीन तलाक की परंपरा को खारिज किया जा चुका है। वहीं सायरा बानो ने समानता और गरिमा की जो जंग छे़डी थी उस भावना के पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डटकर ख़़डे थे। यह इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि चार-पांच महीने पहले भी पार्टी नेताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था- अगर कहीं कोई भी इस सामाजिक कुरीति के खिलाफ ल़़डने के लिए उठता है तो हमारा कर्तव्य है कि उनका साथ दें। वरना पहले भी और हाल के दिनों में भी यह सार्वजनिक रूप से दिखा कि तुष्टीकरण के चक्कर में कई राजनीतिक दलों ने चुप रहना ही बेहतर समझा। इसका राजनीतिक संदर्भ इसलिए भी है क्योंकि हमारे सामने ही 1985 का शाह बानो केस भी है और 1986 में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार की ओर से उसमें किया गया बदलाव भी रिकॉर्ड पर है।
मुस्लिम महिला को सुप्रीम कोर्ट से मिला समानता का अधिकार राजनीति की वेदी पर बलि च़़ढ गया था। तीस साल पहले मुस्लिम महिलाओं के साथ हुए अन्याय को पलटा जा सका है तो जाहिर है कि इसका राजनीतिक पहलू भी दिखेगा। भाजपा इसे तुष्टीकरण के बिना सशक्तीकरण का मिसाल बनाकर राजनीतिक पैठ भी बनाने की कोशिश करेगी। वैसे दावा तो यह रहा है कि मुस्लिम महिलाओं का भाजपा के प्रति रख बदलने लगा है। समानता की ल़़डाई में पहली जीत के बाद वह परिवार के अंदर भी खुलकर अपने विचार रखने में सफल होंगी। ऐसा नहीं केवल मुस्लिम महिलाएं ही कोर्ट के फैसले से गदगद हैं। पिछले दिनों में प्रोग्रेसिव मुस्लिम वर्ग खुलकर इस जंग में साथ ख़़डा था। ध्यान रहे कि शाह बानो मामले में राजीव गांधी सरकार में राज्य मंत्री रहे आरिफ मोहम्मद खान ने सरकार के उस निर्णय के खिलाफ इस्तीफा दिया था, जिसमें शाह बानो को कोर्ट से मिला अधिकार संविधान संशोधन कर सीमित कर दिया गया था।
-सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने भविष्य को लेकर भी दे दिया है संकेत
-साफ हो गया कि समानता, गरिमा और अधिकार की ल़़डाई में धर्म और परंपरा को थो़डा पीछे हटना ही प़़डेगा
जो भी हो, अब यह सवाल है कि क्या यह फैसला यहीं रकेगा। या फिर इसका असर दूरगामी होगा? तीन तलाक समान नागरिक संहिता का हिस्सा है। कोर्ट ने तीन तलाक पर फैसला दे दिया है। विधि आयोग समान नागरिक संहिता पर विचार कर रहा है। देखना होगा कि उस मुद्दे पर ऊंट किस करवट बैठता है।