खुले प्रेम मंदिर के द्वार
जाति, वर्ण और देश का भेद मिटाकर पूरे विश्व में प्रेम की सर्वोच्च सत्ता कायम करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण व राधा-रानी की दिव्य प्रेम लीलाओं की साक्षी वृंदावन नगरी में बने प्रेम मंदिर के द्वार शुक्रवार को श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। लोगों को आध्यात्मिक प्रेम की सर्वोच्च सत्ता स्थापित करने की प्रेरणा देने वाले इस मंदिर का लोकार्पण वैदिक मंत्रोच्चार तथा भजन-कीर्तन के साथ कृपालुजी महाराज ने किया।
वृंदावन। जाति, वर्ण और देश का भेद मिटाकर पूरे विश्व में प्रेम की सर्वोच्च सत्ता कायम करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण व राधा-रानी की दिव्य प्रेम लीलाओं की साक्षी वृंदावन नगरी में बने प्रेम मंदिर के द्वार शुक्रवार को श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। लोगों को आध्यात्मिक प्रेम की सर्वोच्च सत्ता स्थापित करने की प्रेरणा देने वाले इस मंदिर का लोकार्पण वैदिक मंत्रोच्चार तथा भजन-कीर्तन के साथ कृपालुजी महाराज ने किया। इस मौके पर आकाश में करीब 10 हजार गुब्बारे छोड़े गए।
देश-विदेश से आए सत्संगियों ने ढोल-मंजीरे की थाप पर भक्ति में सरोबोर होकर नृत्य किया। मंदिर का उद्घाटन होते ही दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। मंदिर प्रशासन के मुताबिक रोज सुबह 5.30 बजे मंदिर के पट खुलेंगे और आरती होगी। रात्रि 8.30 बजे मंदिर के पट बंद हो जाएंगे। चटिकारा मार्ग पर स्थित श्रीवृंदावन धाम का यह अद्वितीय युगलावास 11 साल के कठोर श्रम के बाद बनकर तैयार हुआ। लगभग 1,000 कारीगरों ने इसे सफेद इटालियन संगमरमर से तराशा। इस भव्य युगल विहारालय का निर्माण गुजरात के मशहूर शिल्पकार घराने सोमपुरा परिवार के दिशा-निर्देशन में तैयार किया गया है। यह अद्वितीय श्रीराधा-कृष्ण प्रेम मंदिर प्राचीन भारतीय शिल्पकला की झलक भी दिखाता है।
कृपालु महाराज परिषद के प्रचारक स्वामी मुकुंदानंद ने बताया कि प्रेम मंदिर को गढ़ने में राजस्थान व उत्तार प्रदेश के करीब एक हजार शिल्पकारों व उनके हजारों सहयोगी श्रमिकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। वृंदावन में 54 एकड़ में निर्मित यह प्रेम मंदिर 125 फुट ऊंचा, 122 फुट लंबा और 115 फुट चौड़ा है। इसमें खूबसूरत उद्यानों के बीच फव्वारे, श्रीराधा कृष्ण की मनोहर झांकियां, श्रीगोवर्धन धारण लीला, कालिया नाग दमन लीला, झूलन लीलाएं सुसज्जित की गई हैं। प्रेम मंदिर वास्तुकला के माध्यम से दिव्य प्रेम को साकार करता है। दिव्य प्रेम का संदेश देने वाले इस मंदिर के द्वार सभी दिशाओं में खुलते हैं। मुख्य प्रवेश द्वारों पर अष्ट मयूरों के नक्काशीदार तोरण बनाए गए हैं। पूरे मंदिर की बाहरी दीवारों पर श्रीराधा-कृष्ण की लीलाओं को शिल्पकारों ने मूर्त रूप दिया गया है। पूरे मंदिर में 94 कलामंडित स्तम्भ हैं, जिसमें किंकिरी व मंजरी सखियों के विग्रह दर्शाए गए हैं। गर्भगृह के अंदर व बाहर प्राचीन भारतीय वास्तुशिल्प का उत्कृष्ट प्रदर्शन करती हुई नक्काशी व पच्चीकारी सभी को मोहित करती है। यहां संगमरमर की चिकनी स्लेटों पर राधा गोविंद गीत के सरल व सारगर्भित दोहे प्रस्तुत किए गए हैं, जो भक्तियोग से भगवद् प्राप्ति के सरल व वेदसम्मत मार्ग प्रतिपादित करते हैं।
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